5.2.16

लोहे के घर से-10


आज सभी ‪#‎ट्रेनें‬ दगा दे गईं। अपनी भी, पराई भी। हे प्रभु! ये हो क्या रहा है!!! 49अप और दून, किसान सभी डाउन ट्रेनें कैंसिल। अपन को तो 60 किमी जाना है, बस पकड़ लिया मगर जिसे लम्बी यात्रा करनी हो, उनका क्या हाल हुआ होगा! कोई खूब बढ़िया मुहूर्त निकाल कर शादी की बरात ले कर जा रहा हो और पता चला कि ट्रेन ही कैंसिल हो गई! अब इतनी जल्दी दूसरी में रिजर्वेशन भी कैसे मिल पायेगा? बिचारा कुंआरा रह जाएगा। उधर कन्या पक्ष वालों की चेहरे की हवाइयाँ उड़ेंगी सो अलग। इस राज में तो शादी के कार्ड में छपाना चाहिए-तिथि और समय ट्रेन दर्शन से परिवर्तित हो सकते हैं।
लोग ये भी कर सकती हैं कि नकली बराती ले कर आएं। दूल्हे-दुल्हन के पुतले बनाकर शादी के मण्डप में बिठा दिये जांय। विवाह हो जाय फिर जब प्रभु की कृपा हो, दूसरी ट्रेन में रिजर्वेशन मिले तो दूल्हा आ कर दुल्हन से कोर्ट में रजिस्ट्रेशन करा कर, मंदिर में जयमाल डालकर शादी का सर्टिफिकेट और दुल्हन को साथ लिवा ले जाय!
‪#‎लोहेकेघर‬ की खिड़की से धूप नहाये सरसों के फूलों को देखते हुये यह गीत दिमाग में कौंधता है पर मारे संकोच बाहर नहीं निकलता-गड्डी चली रे छलांगा मार दी, मैंनू तेरी याद आई...
आज सही समय चल रही है ‪#‎ट्रेन‬। बाबतपुर स्टेशन करीब आ रहा है। खेतों की पगडंडियों पर दिख रहे हैं स्कूल जाते बच्चे। एक माल गाड़ी हारन बजाती गुजर रही है। उसके जाते ही फिर से चल दी अपनी रुकी ट्रेन। चाय वाला चाय-चाय चीख रहा है। सर्वेश भाई वाट्सऐप पर आये भारत और इण्डिया का फर्क बताती कोई कविता पढ़ कर सूना रहे हैं। मैं कान से सुन कुछ रहा हूँ, आँख से देख कुछ रहा हूँ मगर उँगलियों से लिख वही रहा हूँ जो सोच रहा हूँ।
मन कितना चंचल होता है! छन छन छितराता जाता है। बड़े जतन से एक चित्त होता फिर अगले ही पल भटक जाता है। पिण्डरा हाल्ट में लाल-पीली साड़ी धोती पहने, चबूतरे पर बैठी, धूप सेंकती महिलाओं पर नजर ठहर सी गई मगर अगले ही पल #ट्रेन चल दी। खुशियों वाले पल कितने छणिक होते हैं न?
ट्रेन और सरसों के खेतों के बीच फिर आई पतली सड़क। तीन बच्चियाँ धीरे-धीरे आपस में बातें करतीं जा रही हैं स्कूल। उड़ने से पहले ठुमक-ठुमक फुदक रही हैं चिड़ियाँ खेत की मेढ़ पर। बाबतपुर से आगे सूखे खेत फिर अरहर और पीले सरसों के बड़े-बड़े खेत।
जफराबाद के बाद 50 डाउन बड़े रंग में चलती है। लगता है आज सही समय पर पहुंचा कर ही मानेगी। बड़ी तेज़ रफ़्तार है इसकी। जलाल गंज का पुल काँप चुका। स्टेशन करीब आ रहा है। खालिसपुर से पहले नहीं रुकेगी यह ‪#‎ट्रेन‬। जितनी भी तेज चले बनारस पहुँचने का समय है 6.55 है। इससे पहले तो पहुँचने से रही। मनमर्जी नहीं कर सकती। घर कभी मनमर्जी नहीं करता, मनमर्जी तो घर में रहने वाले ही करते हैं।
इस ‪#‎लोहेकेघर‬ में भाँति-भांति के यात्री सफ़र करते हैं। हम जहां बैठ जाते हैं, उसी को दुनियाँ समझ लेते हैं। आसपास के गुमसुम चेहरों को देख यह नहीं समझ बैठना चाहिये कि सभी तंग हाल हैं। जाति-धर्म के लफ़ड़े यहां नहीं हैं मगर अनजान यात्रियों से सावधान रहने वाली बात घुट्टी में समाई हुई लगती है। यात्रा में कब कोई चूना लगाकर उतर जाय, कहा नहीं जा सकता। जीवन यात्रा में कभी न कभी विश्वास सभी करते हैं, कभी न कभी धोखा सभी खाते हैं। कोई बचपन में, कोई जवानी में और कोई जीवन के आख़िरी पड़ाव पर। इसी ठोकर से उपजा होगा ज्ञान। अनजान यात्री से सावधान! मगर सोचिये विश्वास न हो तो दोस्ती कैसे हो? दोस्ती न हो तो जीवन साथी कैसे बनें? साथी न हो तो संसार कैसे चले?
मूँगफली वाला गया है। इससे पहले मीठा केक बेचती मंहिला गई थी। चाय वाला भी आकर अभी-अभी गया है। सिर्फ एक यात्री ने एक पुड़िया मूँगफली खरीदी। मूँगफली खाने में कोई खतरा नहीं है। फोड़ो, छीलो, देखो फिर खा लो। मगर जीवन में हर समय इतनी सुरक्षित खरीददारी कहाँ हो पाती है!
बाबतपुर स्टेशन आ गया। हवाई अड्डे की बिजलियाँ अँधेरे में खूबसूरत लग रही हैं। एक अनजान यात्री बगल में आ कर बैठ गया। सर गन्जा है। काली फ्रेम का चश्मा, फुल काली स्वेटर पहने है मगर सफेद दाढ़ी बढी हुई है। अविश्वास करने का कोई कारण समझ में नहीं आता। आम आदमी लगता है। गाड़ी चली तो उसके चेहरे पर सन्तोष के भाव जगे। आम आदमी किसी अनजान यात्री का का क्या बिगाड़ सकता है भला! जब भी बिगाड़ेगा किसी अपने का ही बिगाड़ेगा। किसी अपने से कमजोर को ही धोखा देगा।
ट्रेन अब शिवपुर पहुँचने वाली है। शिवपुर से बनारस कैन्ट की दूरी मुश्किल से 3 से 5 किमी होगी मगर इसके पास अभी पूरे 50 मिनट हैं। यह या तो शिवपुर में आराम करेगी या कैन्ट के आउटर पर। तेज चलने वाले मंजिल के करीब आ कर हाँफने लगते हैं। कभी-कभी सो भी जाते हैं। इसी स्वभाव के चलते कछुये से हार गया होगा खरगोश! समय से पहले मंजिल नहीं मिलती। न तेज दौड़ने से न आलस करने से मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। यह शरीर भी हाड़ मांस का बना एक घर है जिसमे आत्मा रहती है। मन बेचैन इसे कभी तेज चाल से हांकता है और कभी अपाहिज होने पर कोसता है। घर को दुरुस्त रखने पर तभी मजबूर होता है जब बीमार पड़ जाता है।
ट्रेन शिवपुर आ कर इत्मीनान से खड़ी हो गई। अब यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनेगी। दस मिनट बाद वे इसे कोसना शुरू कर देंगे बगैर यह जाने कि अभी इसके छूटने का समय नहीं हुआ! निर्धारित समय के हिसाब से बिफोर आई है। रोज के यात्री जानते हैं। कुछ उतर कर प्लेटफॉर्म पर घूमने चले गये। कुछ आपस में मुखर हो घर के काम को याद करने लगे। किसी को तिलक में जाना है तो किसी को अपना जैकेट पॉलिश कराने देना है। पत्नी की फरमाइश कोई बता नहीं रहा। सब पुरुषार्थ वाले काम ही साझा कर रहे हैं। जो चढ़ते ही निढाल हो कर ऊपर बर्थ पर चढ़कर सो गए थे वे बनारस पास आ गया जानकर उठ बैठे हैं। घर जा कर इन्हें अधिक तरोताज रहना होगा। थका-मांदा कहलाया जाना इनको पसन्द नहीं होगा।
बाहर अंधेरा है। बिजली नहीं है। छोटे-मोटे स्टेशन पर बिजली होना कौन जरूरी है! छोटे अँधेरे में रहेंगे तभी तो बड़े रौशन होंगे!!! अतिरिक्त ऊर्जा क्या आसमान से टपकती है?
चलने का निर्धारित समय पूरा हो चुका मगर ट्रेन कुछ ज्यादा इत्मिनान से खड़ी है। लोगों ने अब इसे कोसना शुरू कर दिया है। अभी तक की इसकी वफाई, बेवफाई में बदल गई। जीवन में भी यही होता है। आप लाख अच्छा काम करो मगर एक गलती सब किये धरे पर पानी फेर सकती है।

इसके रहते कोई नया विचार आने से रहा। एक बार इसकी कहानी क्या लिखी थी फेसबुक में कि अब लिखना दूभर कर दिया। पढ़कर थोड़ा शांत हुआ। गुमसुम बैठा है।
देर शाम जब दफ्तर से चले तो गोदिया के अलावा और किसी ‪#‎ट्रेन‬ की उम्मीद न थी। भंडारी पहुंचे तो भोला दिख गया। बोला-'कोटा-पटना आ रही है!' सुखद आश्चर्य हुआ। किसी के 8 घण्टे लेट होने का दुःख मेरे लिये सुख में बदल गया। ऐसे ही मेरा दुःख भी किसी को सुख पहुंचाता होगा! और भी 50 डाउन के छूटे हुए रोज के यात्री मिले। आज सही समय पर निकल गई। वे फिफ्टी के सही समय पर आ जाने से दुखी थे। मैं कोटा-पटना के लेट होने से दुखी यात्रियों के बीच सुखी हूँ। सुख-दुःख भी क्या चीज है!
मुझे बिठाने के बाद ट्रेन मस्त चाल से चल रही है। रास्ते में आने वाले पुल असहाय आशिक की तरह झटके खा रहे हैं! पूरी बोगी खाली-खाली है। ऐसा लग रहा है जिन्होंने इसके बर्थ में पट्टा लिखवाया था वे ही रह गये बाकी इसकी बेवफाई सहन न कर पाने के कारण रास्ते में ही इसे छोड़कर उतर चले गये। किसी के साथ पट्टा लिखवाने में कई लफ़ड़े हैं। उसकी वफाई से खुशी और बेवफाई से दुखी होना होता है। लेकिन लम्बी यात्रा बिना रिजर्वेशन कराये कहाँ हो पाती है!
रोज के यात्रियों को बहुत दिनों के बाद लेट कर जाने का मौक़ा मिला है। अधिकतर आराम कर रहे हैं। कोई-कोई मोबाइल में फ़िल्म भी देख रहे हैं। अँधेरे में डूबे किसी छोटे स्टेशन पर ट्रेन धीमी हो कर फिर चल दी। बनारस तक यह नान स्टॉप ट्रेन है। इसकी छोटे स्टेशन पर धीमी होने की अदा से कितनों की जान चली जाती होगी! कितने मजनू तो दौड़ कर चढ़ने के चक्कर में पटरी पर आ जाते हैं! दुसरे दिन अखबार में मोटी हेड लाइन के साथ अंग-भंग तस्वीर छपती है-'ट्रेन भी नहीं मिली, जिंदगी भी चली गई।' कंकरीट के घर के लिये लोहे के घर से मुहब्बत की बहुत बड़ी सजा मिलती है। ट्रेन चीख-चीख कर सावधान करती है कि जब मैं खड़ी रहूँ तभी चढ़ा-उतरा करो मगर रोज के यात्री जुए में बंधे बैल की तरह ऑफिस से छूटते ही जल्दी से घर पहुँच जाना चाहते हैं और गलती कर बैठते हैं। कई बार तो मैं भी उतरा हूँ धीमी होती चलती ट्रेन से और उतरने के बाद यह ख़याल आया है कि नहीं उतरना चाहिये। 
आज 49अप कैंसिल है। रोज के अधिकांश यात्री बस में बैठे हैं। बस में इतनी भीड़ कि बैठने के लिये भी सीट नहीं। खड़े-खड़े लगभग पूरी यात्रा हो गई। मैंने खड़े रहने के इतने लाभ बताये कि जलाल गंज आते-आते अशोक जी उठकर खड़े हो गये और मुझे बिठा कर बोले-बैठकर बोलिये! मैं बोला-वाह! खड़े रहने के बाद बैठने में तो और भी आनंद है!!!
बस में ड्राइवर की सीट के पीछे टीन का बैग टँगा है। इस पर लिखा है-यात्रा दर्पण! मैंने कंडक्टर से पूछा-इसका क्या मतलब? वो बोला-पढ़िये! फिर अपने बोला-अरे! जो पढ़ना है उसी के ऊपर लगा दिया है!!!
जनहित में जारी शासनादेश का कितनी ख़ूबसूरती से पालन किया गया है!

अखिरकार गोदिया की बोगी में नीचे की दो खाली बर्थ मिल ही गई। एक में Ajay Srivastava लेट गये दुसरे में हम। इससे पहले भी दूसरी बोगी में दो बर्थ मिली थी। क्या टाँगे फैलाकर, खिड़की के शीशे गिराकर लेटे थे हम लोग! तभी आ गया था एक परिवार। पूरी 6 बर्थ हमारी है कहते हुये और हम मायूस से जूते के फीते बांधकर बड़े बेआबरू होकर उस कूपे से निकले थे। जिंदगी हमेशा सरल नहीं होती लेकिन ऐसा भी नहीं कि प्रयास करो और सफलता न मिले। दूसरी खाली बर्थ मिल ही गई। अब तो अजय जी के खर्राटे भी सुनाई पड़ रहे हैं! मौका मिलते ही आदमी क्या बेपरवाह हो जाता है!
पटरियों पर रेंगते इस लोहे के घर में सभी यात्री अपनी-अपनी बर्थ पर सो रहे हैं। हार्न बजाती‪#‎ट्रेन‬ की स्पीड अब तेज़ हो चुकी है। बन्द खिड़कियों से भी ठंडी हवा आती तो है! धरती भी क्या तेज-तेज घूमती है जब तूफ़ान तूफ़ान आता है? नहीं, विज्ञान इसका कोई और ही कारण बताता है।
शोर बता रहा है कि जलालगंज का पुल आ गया। पटरियों की खटर-पटर बता रही है कि स्टेशन भी गुजर गया। Sanjay Singh का फोन आया था-हम बनारस पहुँच गये पैसिंजर से। जल्दी चले थे तो जल्दी पहुंचे, हम भी पहुँच ही जायेंगे। जीवन के सफर में ये मुकाम भी आता है जब कोई जल्दी पहुँचने से खुश या देर से घर पहुँचने पर दुखी नहीं होता। पहुँचने पर भोजन मिल ही जाता है फिर काहे की हाय-हाय, काहे कि किच-किच! चलते-फिरते घर में सभी शराफत से लेटे तो हैं।
ट्रेन इत्मिनान से खड़ी हो गई है! अजय जी की नींद टूट गई है। शाल से गरदन निकालकर पूछ रहे हैं-कहाँ खड़ी कर दिया हो? अब हम का बतायें! ट्रेन हमेशा निर्धारित समय और स्थान पर थोड़ी न खड़ी होती है। ई कोई यूरोप है जो लेट होने पर पैसिंजर को हर्जाना देना पड़ेगा! भारतीय रेल है, अधिक देर सोने देने का अधिक किराया नहीं मांगती यही क्या कम है? और भी सोये दिख रहे यात्री जाग कर अपनी-अपनी गाथा सुनाने और एक दूसरे को ढांढस बंधाने में जुटे हैं-'कोई क्रासिंग होगी।' कितने ‪#‎सहिष्णु‬ हैं हम!
हारन बजा। सभी खुश हो गये। चुप भी हो गये! लगता है खड़े घर में इन्हें नींद न आने और आपस में बोलते रहने की बीमारी है!!! घर के रफ़्तार पकड़ते ही सब खामोश हो गये। गाड़ी जब तक पटरी पर चलती रहती है जिंदगी सुकून से कटती है। विश्वास रहता है कि मंजिल आ ही जायेगी। ढलती शाम में यात्री अक्सर यह भूल जाते हैं कि मंजिल तो आएगी मगर सुबह उठकर फिर सफर में चलना है, दूसरी ट्रेन पकड़नी है। पड़ाव को मंजिल समझने का लुत्फ़ कोई छोड़ना नहीं चाहता।
smile emoticon

10 comments:

  1. नित्य एक अनुभव ट्रेन का, संग्रहणीय हो जायेगा आपका अनुभव सूत्र।

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    1. सच! वाकई कुछ काम का लिख पा रहा हूँ?

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-02-2016) को "हँसता हरसिंगार" (चर्चा अंक-2245) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुपरस्टार कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग नहीं रहे - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. u r well going in describing the different aspects of life by ur daily trips in iron home or Indian trains.

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  5. जैसे हर दिन एक नया संदेश लेकर आता है वैसे आपका यह यात्रा वृतांत..नये-नये अनुभवों से रूबरू करा जाता है

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    1. आप का पढ़ना, मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है।

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