12.6.16

बरखा रानी! तुम कब आओगी?



बरखा रानी! तुम कब आओगी? अभी चार दिन पहले की बात है. रात का समय था. धूल भरी आँधी में वृक्ष की शाखों से झर-झर झर रहे थे सूखे पत्ते. बिजली चमकी थी. बादल गरजे थे. क्या अदा से आई थी तुम! मैंने तुम्हारे स्वागत में गीत भी लिखे थे.. पहली बारिश में. तुम एक घंटे के लिए आई और मैं पूरी रात भीगता रहा. पहली के बाद फिर दूसरी नहीं हुई. हाय! तुझे किसकी नजर लग गई? तुझे याद करते हैं अभी तक मेरी गली के गढ्ढे. तू फिर कब आयेगी मेरी दामिनी?
मेरे शहर में सूरज इतना आग उगल रहा है कि दो दिन की छुट्टियाँ घर में कैद हो बीत गईं. सुबह ज़रा सी आँख क्या लगी, सबेरा उड़न छू हो गया! आँख खुलते ही देखा मार्निंग, गुड बाय करता भगा जा रहा है और घरों की लम्बी परछाइयां उसे पकड़ने का असफल प्रयास कर रही हैं. जल्दी-जल्दी तैयार हो कर साइकिल निकाला तो सूरज हंसने लगा...अब निकले हो बच्चू! अभी तुम्हें पसीने से ऐसा नहलाता हूँ कि सारी मार्निंग वाक भूल जाओगे. गई तुम्हारी मार्निंग, रात के संग. अब मेरा साम्राज्य है!
मैंने बादलों की ओर कातर भाव से देखा दूर-दूर तक नीला आकाश और खिलखिलाता सूरज. मुझे गुस्सा आया...ठहरो! इतना आग मत उगलो. अभी असाढ़ है, आगे....सावन, भादों . तुम्हें कीचड़ में डुबो कर गेंद की तरह खेलेंगे गली के बच्चे. मेरे देश में किसी की तानाशाही नहीं चलती. सूरज और ठठाकर हंसने लगा. मैं सकपका कर साइकिल और तेज चलाने लगा.
चाय-पान की दूकान पर मेरी साइकिल खड़ी हुई तब तक मैं पसीने से नहा चुका था. मार्निंग वाक का नशा उतर चुका था. पान वाला मुझे देख हंसने लगा-पंडित जी! दुपहरिया में मार्निंग वाक होला? मैंने उसे चुप कराया...पढ़ल-लिखल त हउआ नाहीं. विटामिन डी लेवे बदे दुपहरिया में घूमल जाला. वो भी कहाँ मानने वाला था... जाड़ा में विटामिन डी लिया, अभहिन चा.. पीया और घरे जा के सूता. लू लग जाई त कुल भुला जाई.
हे बरखा रानी! वो सुबह थी और यह शाम होने का समय. पारा वैसे ही चढ़ा हुआ है. कमरे से बाहर निकलते ही लगता है जैसे आग जल रही है. जांयें तो कहाँ जाएँ ? इतनी विशाल धरती के होते हुए भी हम घर में कैद हो कर रह गए. तुम कब आओगी? आओ तो अपनी भी सांस आये. सूख रहे पौधों में जान आये. पंछियों का कलरव गान आये. बच्चे वाट्स एप में कितना लिखेंगे..मिस यू, लव यू, ? आओ तो फिर हसीन शाम आये. मेंढक-झींगुरों की जुगलबंदी में राग बरसाती सुने पूरे एक बरस हुये. आओ बरखा रानी! केरल को छोड़, अपने पूर्वी उत्तर प्रदेश में आओ..यहाँ तुम्हारे स्वागत में नव अंकुरित होने वाले कवियों की पूरी फ़ौज मिलेगी. तालाब भले ही भू-माफियाओं ने हड़प लियें हों, बीच सडक में बड़े-बड़े गड्ढे तो हैं ही. नयी बनी कालोनियों के हसीन आँगन-दरवाजे तुम्हारी राह तक रहे हैं. आओ! जो मान तुम्हें केरल में न मिला, हमारे उत्तम प्रदेश में मिलेगा.

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