(1)
झूठ
.......
दिल का
थोड़ा थोड़ा
टूटना
मन का
थोड़ा थोड़ा
गिरना
जिस्म को
थोड़ा थोड़ा
मारता है
लोग झूठ बोलते हैं
वो
अचानक चला गया।
.................
(2)
अंतिम स्टेशन
....................
हे ईश्वर!
झूठ
.......
दिल का
थोड़ा थोड़ा
टूटना
मन का
थोड़ा थोड़ा
गिरना
जिस्म को
थोड़ा थोड़ा
मारता है
लोग झूठ बोलते हैं
वो
अचानक चला गया।
.................
(2)
अंतिम स्टेशन
....................
हे ईश्वर!
रेलवे का गार्ड
हर स्टेशन पर
ट्रेन को हरी झंडी दिखाता है
तू मुझे दिखा!
बचपन,
जवानी तो ठीक था
आगे
बुढ़ापा है।
...................
(३)
सत्य
.............
हर स्टेशन पर
ट्रेन को हरी झंडी दिखाता है
तू मुझे दिखा!
बचपन,
जवानी तो ठीक था
आगे
बुढ़ापा है।
...................
(३)
सत्य
.............
मानते, चीखते
सत्य बोल, गत्य है
घर से मरघट तक,
राम नाम सत्य है।
सत्य बोल, गत्य है
घर से मरघट तक,
राम नाम सत्य है।
आदमी है मगर
भूख से नंगा है।
रात गई, बात गई।
काम है, धंधा है।
.....................
भूख से नंगा है।
रात गई, बात गई।
काम है, धंधा है।
.....................
(४)
डूब गया सूरज
..…..............
..…..............
खुली थी
लोहे के घर की खड़की
दूर घने वृक्षों की फुनगियों के ऊपर
गेंद की तरह उछलता
डूब रहा था
सूरज
लोहे के घर की खड़की
दूर घने वृक्षों की फुनगियों के ऊपर
गेंद की तरह उछलता
डूब रहा था
सूरज
गोमती आई
तो लगा
नहाएगा डूब कर
मगर नदी में
अपनी परछाईं देख
भाग गया!
तो लगा
नहाएगा डूब कर
मगर नदी में
अपनी परछाईं देख
भाग गया!
छू भी नहीं पाए उसे
ईंट भट्टे की ऊंची चिमनी से भख-भख निकलने वाले धुएं
हल्की और हल्की होने लगी
सुनहरी छाप
ईंट भट्टे की ऊंची चिमनी से भख-भख निकलने वाले धुएं
हल्की और हल्की होने लगी
सुनहरी छाप
मिमियाते हुए
खेत की मेड़ पर बैठे
दद्दू के पास
भाग-भाग आने लगी
बकरियां
खेत की मेड़ पर बैठे
दद्दू के पास
भाग-भाग आने लगी
बकरियां
चमक खोने लगे
गेहूं के खेत
अंधेरे की चादर ओढ़
आराम के मूड में
आने लगी धरती
लंबी होने लगी
परछाइयां
गेहूं के खेत
अंधेरे की चादर ओढ़
आराम के मूड में
आने लगी धरती
लंबी होने लगी
परछाइयां
ट्रेन को देख
ठिठक कर रुक गईं
घास का बोझ सर पर लादे
पगडंडी पगडंडी जा रही
वृद्ध महिलाएं
और...
देखते ही देखते
डूब गया सूरज।
....
ठिठक कर रुक गईं
घास का बोझ सर पर लादे
पगडंडी पगडंडी जा रही
वृद्ध महिलाएं
और...
देखते ही देखते
डूब गया सूरज।
....
(5)
मुर्गा
........
मुर्गा
........
मुर्गे ने बांग दी
कवि की नींद खुली
नींद खुली तो
कवि ने लिखी कविता
कविता सुनकर
सबकी नींद खुली
नींद से जागे लोगों ने
पहला काम यह किया कि
नींद से जगाने के अपराध में
पंचायत बुलाई
कवि ने पाला बदला
भक्ति के गीत गाए
मुर्गे ने
अपना स्वभाव नहीं बदला
मारा गया।
कवि की नींद खुली
नींद खुली तो
कवि ने लिखी कविता
कविता सुनकर
सबकी नींद खुली
नींद से जागे लोगों ने
पहला काम यह किया कि
नींद से जगाने के अपराध में
पंचायत बुलाई
कवि ने पाला बदला
भक्ति के गीत गाए
मुर्गे ने
अपना स्वभाव नहीं बदला
मारा गया।
आज भी
स्वभाव न बदलने के कारण
नींद से जगाने के अपराध में
मारा जाता है
मुर्गा।
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स्वभाव न बदलने के कारण
नींद से जगाने के अपराध में
मारा जाता है
मुर्गा।
....................
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दादा साहब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-05-2018) को
ReplyDelete"रूप पुराना लगता है" (चर्चा अंक-2958)) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
झूठ और मुर्गा बहुत मार्मिक है.
ReplyDeleteजबरदस्त लिखा है ..... भावमय करती प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह ! मनभावन क्षणिकाएँ..
ReplyDeleteक्या लफ्ज़ पकडे है आपने शानदार....मन फ्रेश हो गया सभी क्षणिकाएं सुन्दर है !!
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