हम जब छोटे थे तो कक्षा में गुरुजी और घर में बाउजी दंडाधिकारी थे। दोनों को सम्पूर्ण दंडाधिकार प्राप्त था। स्कूल में गलती किया तो मुर्गा बने, घर में गलती किया तो थप्पड़ खाए। एक बार जो कक्षा में मुर्गा बन गया, दुबारा गलती करने का विचार भी मन में आता तो उसकी रूह कांप जाती। अच्छे अच्छे शरारती और मिजाज के टेढ़े लड़के बाबूजी के घर में आने की आहट भांप कर सीधे हो जाते थे! तब गलती करने पर माँ के आँचल के अलावा दोनो जहां में कहीं माफी नहीं मिलती थी।
अब नदी में बहुत पानी बह गया। इधर गुरुजी ने लड़के को चपत भी लगाई उधर उसका पूरा खानदान स्कूल के दरवाजे पर खड़ा मिलेगा...मेरे गधे को डंडा क्यों मारा? गुरुजी देर तक गधे के पूरे खानदान से माफी मांगते नजर आएंगे….वो क्या है कि मैंने तो इसलिए लड़के को चपत लगाई कि लड़का गलत संगति में न पड़े, पढ़ लिख ले..। तब तक गधे का बाप शेर की तरह दहाड़ेगा.. चौप! जानते नहीं हो! मैनेजर से कह कर नौकरी से निकलवा दुंगा!!! अब तदर्थ या संविदा पर नियुक्त वित्तविहीन अध्यापक के पास इतनी हिम्मत कहां! वह तो नौकरी जाने के भय से गधे को भी बाप कहेगा।
इधर बाबूजी ने लड़के को थप्पड़ लगाया तो लड़का जोर से चीखा... मम्मी ssss और बाबूजी की सिट्टी पिट्टी गुम! देर तक मम्मी से सॉरी सॉरी बोलते नजर आएंगे। लड़का पापा को तिरछी निगाहों से ताकेगा..हो गया? फिर बुलाऊं मम्मी को?
न तो पहले घरेलू हिंसा का कानून था, न मध्यम वर्गीय घरों के लड़के अंग्रेजी कान्वेंट स्कूल में पढ़ पाते थे। वह समय अभी ज्यादा दूर नहीं गया जब माफी वही मांगता था जो गलती करता था। उसे माफी नहीं मांगनी पड़ती थी जो गलत काम करने से रोकता है।
अब ऐसे हालात में सज्जन पुरुष माफी नहीं मांगेगा तो और क्या करेगा? अपनी यह जो पीढ़ी है न? बहुत सताई हुई पीढ़ी है। जब तक बच्चे थे स्कूल में गुरुजी और घर में बाउजी तोड़ते रहे। जब बड़े हुए तो बैल मरकहे हो गए और गधों के सींग जम गए!
नेता जी के माफी मांगने से आप अधिक उत्साहित हैं तो यह आपकी भूल है। कुछ लोग गलती इसीलिए करते हैं कि फंस गए तो माफी मांग लेंगे। हमारे देश में सज्जनों और उदार हृदय वालों की कोई कमी भी नहीं। जहां देखो, वहीं दयालू गुरु मिल जाते हैं। यदि कानून का रटा रटाया निश्चित नियम कानून न होता तो क्या पता वर्षों बाद किसी घोटाले में फंसे नेता जी को जज साहेब दया कर के छोड़ ही दें! बुड्ढा बेचारा! अब कहां जाएगा जेल! जनता का वश चले तो शायद माफी मिल ही जाय! बड़ी दयालु और सहिष्णु है भारत की जनता। नेता जी भी जनता की इस कमजोरी को ताड़ चुके हैं। जब उन्हें टीवी में हाई लाइट होने का मन करता है तड़ से ऐसा बयान जारी करते हैं कि विरोधी गुट शोर मचाने लगता है... तुमने गलती करी, बहुत बड़ी गलती करी। हमारी मान हानी हुई। तुम्हारे खिलाफ मानहानी का मुकदमा करेंगे! पानी जहां सर के ऊपर गया, नेताजी झुककर माफी मांग लेते हैं..मेरे कहने का मतलब यह नहीं था, मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया फिर भी किसी को दुःख पहुंचा हो तो हमको माफी दई दो!
एक झटके में सबका भला हो गया। जिसकी मान हानी हुई थी व वह अब मान लाभ की स्थिति में पहुंच गया! जो नेता जी भीड़ में गुम हो चुके थे फिर से अखबार और टी वी चैनलों पर चमकने लगे। समाचार चैनलों को अच्छी खासी टी आर पी मिल गई। देश की चिंता करने वालों को फेसबुक और वाट्स एप पर बहस का नया मुद्दा मिल गया। जुगलबंदी बना कर व्यंग्य ठेलने वालों को एक नया विषय मिल गया। एक नेता जी ने गलती क्या करी मानों देश की सोई चेतना ही जाग गई!
अब किसी को मेरी किसी बात पर कोई ठेस पहुंची हो तो .. सॉरी! माफी मांगने का यह अंग्रेजी तरीका मुझे अतिशय प्रिय है। माफी भी मांग लो और गिल्टी फील भी न हो! और इसके बाद कोई फिर कुछ कहे तो जोर से भिड़ लो..बोला न सॉरी! अब जान लोगे क्या?
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-03-2018) को ) "घटता है पल पल जीवन" (चर्चा अंक-2923) पर होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
धन्यवाद
Deleteआपका चस्पा लिया लिंक खुल नहीं रहा। सॉरी बोल रहा।
Deleteबढ़िया....सॉरी तो सबसे बेहतरीन चीज इजाद हुई है....
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