किशन लाल परेशान थे। हों भी क्यों न? बेटी जवान हो चुकी और अभी तक शादी के लिए योग्य तो क्या अयोग्य वर भी नहीं मिला! बेटी पढ़ी लिखी, खूबसूरत थी मगर हाय! दोनों पैरों से अपाहिज ही बड़ी हुई थी अभागन। लड़के की तलाश में रिश्तेदारों, परिचितों के दरवाजे-दरवाजे माथा टेकते कई दिन बीत चुके थे। आज का मोबाइल और नेट का जमाना होता तो शायद इतना व्यर्थ न दौड़ना पड़ता। सब इनकार ऑन लाइन ही मिल जाता। कोई सकारता तो चल जाते उसके घर।
सब ओर से निराश हो अपने गांव लौट जाने की सोच रहे थे किशन लाल। भोर का समय था और राधे चाय वाले ने पहली केतली धरी ही थी आंच पर। भट्टी से अभी धुंआ निकल रहा था। चाय देखी तो पीने की चाह में रुक गए। जय रम्मी के बाद राधे ने बेंच पर बैठने का इशारा क्या किया, थच्च से बैठ कर अपना दुखड़ा रोने लगे। चाय पीते-पीते जैसे ही उन्होंने अपना वाक्य पूरा किया…अब कौन करेगा अभागन से शादी? वहीं पास खड़ा हो, नीम के दातून से दांत रगड़ रहा एक युवक पास आया और झुक कर चरण छूने के बाद बोला.. बाऊजी! मैं करूंगा आपकी बेटी से शादी! मैं बहुत देर से आपकी बातें सुन रहा हूं। आप ही के जाति बिरादरी का हूं। आपको अपने गांव में कोई परेशानी नहीं होगी। सेना में सैनिक हूं। आज ही डयूटी ज्वाइन करने का आदेश है। इसलिए अभी तो नहीं लेकिन आज से 6 माह बाद इस तारीख को मैं अपने पूरे परिवार और मित्रों के साथ आपके घर आऊंगा। आप शादी की तैयारी शुरू कीजिए! इतना कह कर उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना लड़का मोटर सायकिल स्टार्ट कर वहां से चला गया।
किशन लाल को लगा किसी ने उसके साथ बड़ा भद्दा मजाक किया है! मैं ही पागल हूं जो हर जगह अपना दुखड़ा सुनाता रहता हूं। राधे चाय वाले ने किशन लाल को समझाने का खूब प्रयास किया कि मैं लड़के को जानता हूं। पास ही के गांव का है। सेना में मेजर है, कहा है तो आएगा लेकिन किशन लाल को यकीन नहीं हुआ। बिना लड़की देखे, मेरे बारे में जाने, दहेज की बात किए कैसे कोई अपाहिज लड़की से शादी करने को तैयार हो जाएगा? लड़के ने मेरे साथ बड़ा भद्दा मजाक किया है। रोते कोसते किशन लाल चाय की दुकान से भारी मन लिए बड़बड़ाते लौट गए.. लड़के ने मेरे साथ...।
अपने गांव/घर आ कर भी किशन लाल कई दिनों तक बेसूध से घूमते नजर आते। अब इत्ती बेइज्जती की बात किससे कहें? क्या विश्वास करें और क्या तैयारी करें? बिटिया तो पहले से ही कहती है कि उसे किसी से शादी नहीं करनी। मास्टरनी बन जाऊंगी और ढेर सारे बच्चों को पढ़ाऊंगी।
कहे भी तो किससे कहे? अंत में कई दिनों बात उनके मन का लावा शर्मा नाऊ के पीढ़े पर बैठे दाढ़ी बनाते समय निकल ही गया! सब बात बता कर किशन लाल बोले... यह यकीन करने की बात है? छोरे ने मेरे साथ बड़ा भद्दा मज़ाक किया है। शर्मा नाऊ ने हंसते हुए कहा.. क्या जाने तुम पर भगवान को दया आ गई हो और भेज दिया हो किसी को तुम्हारी भलाई करने! तारीख याद रखियो, कहीं सच में आ गया तो का करोगे? वैसे लड़का देखने में कैसा था? किशन लाल को लगा शर्मा भी मेरा मजाक उड़ा रहा है। है ही ऐसी बात कि सभी मजाक उड़ाएंगे। इत्ते दिनों से दिल में जब्त था, नाहक मुख से फिसल गया।
इधर शर्मा नाऊ को अपने ग्राहकों को सुनाने के लिए नया मसाला मिल गया! धीरे धीरे कुछ ही दिनों में किशन लाल की छोड़, पूरा गांव जान गया कि किशन लाल के घर फलां दिवस बारात आने वाली है।
निर्धारित तिथि पर सच में आ गई बारात! गांव में हल्ला मच गया..बारात आ गई, किशन लाल के घर बारात आ गई। पगला सो चुका होगा खा पी कर। उसे जगाओ। बिटिया को सजाओ। शादी का मंडप तैयार करो। आग लगाओ, भट्टी सुलगाओ और देखते ही देखते पूरे गांव ने बारात को हाथों हाथ ले लिया। मंडप सजा, पण्डित आए.. बारात किशन लाल के घर तक तभी पहुंच पाई जब सारी तैयारी पूरी हो गई।
वर्षों बाद लड़के के गांव के पास राधे चाय की दुकान पर चर्चा होती है...
इस गांव में जब पहली बार आईं, वैशाखी पर आईं । अब तो आप देख ही रहे थे, कैसे आराम से कार चला कर जा रही थीं प्रिंसिपल मैडम? पीछे वाली सीट पर उनके दो बेटे थे और बगल में मेजर साहब। कित्ते सुंदर बच्चे थे न?
वाह....
ReplyDeleteएक सैनिक का वादा
सादर
पढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद.
Deleteअविश्वसनीय! पर ऐसा होता भी है..
ReplyDeleteधन्यवाद.
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, विश्व हास्य दिवस, फरिश्ता और डी जे वाले बाबू “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteसच है न ?
ReplyDeleteजी। सच है। आज सुबह गांव में बस रहे नई कालोनी और गांव के लोगों के जीवन शैली चर्चा हुई। गांव वालों का कालोनी वालों पर सीधा आरोप था कि कालोनी वालों का जीवन कमरे में रखे फ्रिज की तरह है। किसी से कोई मतलब नहीं। कमाया,खाया, मर गए। गांव के लोग अभी भी एक दूसरे के लिए जान छिड़कते हैं। इसी चर्चा के दौरान यह यह बात भी सामने आई और मैंने इसे एक कहानी में पिरोकर प्रस्तुत करने का साहस किया। कहानी ज्यों की त्यों है सिर्फ पात्र काल्पनिक हैं। ..सादर।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2017) को "घर दिलों में बनाओ" " (चर्चा अंक-2964) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका।
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आपका।
Deleteसुंदर कहानी लेखन।
ReplyDeleteकई दिनों बाद अच्छी कहानी पढ़ने को मिली
पढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद।
Deleteसुन्दर रचना, हार्दिक बधाई|
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteवाह ! बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteआदरणीय देवेन्द्र जी -- बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी | गाँव की बेटी हूँ तो जानती हूँ गाँव के लोग किस तरह एक दूसरे से आज भी बहुत सहयोग करते हैं | शहर में औपचारिक रिश्ते ही रह गये हैं पर गाँव में सब लोग अनौपचारिक रूप से दुःख सुख सांझा करते हैं आज भी | एक सैनिक की गरिमा और निर्धन का सम्मा बढाती रचना बहुत प्रेरक है | सादर
ReplyDeleteपढ़ने और कहानी से जुड़ने के लिए आभारी हूं।
Deleteरोचक और प्रेरक ...
ReplyDeleteमन कह रहा कि यह हकीकत ही हो !
हकीकत है।
Deleteमन को छूती हुई एवं सराहनीय कहानी ..... बधाई अनुपम सृजन के लिए
ReplyDeleteपढ़ने और सराहने के लिए धन्यवाद।
Deleteवाह ! जीवन की कटु यथार्थ के मध्य जैसे सुरीली तान छेड़ दे कोई..
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteधन्यवाद। आज नजर पड़ी। 😊
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