1.7.18

ब्लॉगरों साथ एक काल्पनिक रेल यात्रा

सुपर फास्ट #ट्रेन की ए सी बोगी है। कहां से चली? कहां जाएगी? कुछ नहीं पता। बस इतना पता है कि लगातार चल रही है। स्टेशन आते हैं, यात्री चढ़ते/उतरते हैं, ट्रेन चलती रहती है लगातार। 

अपनी बर्थ साइड अपर है। यहां से सातों बर्थ पर बैठे यात्रियों की कारगुज़ारियों का नजारा लिया जा सकता है। सुबह के आठ बज रहे हैं। सामने के दोनों मिडिल बर्थ को गिराकर दो दो महिलाएं सामने सामने बैठी, अपने अपने मोबाइल पर कुछ लिख पढ़ रही हैं। एक छोटी बच्ची चारों के सामने कभी योगा करती है, कभी अपनी नानी के कहने पर कोई गीत गाने लगती है। मैं गहरी नींद में सोया था लेकिन बच्ची की खटर पटर से अपनी नींद उचट गई है और उंनीदी पलकों से लिखने का प्रयास कर रहा हूं। मेरे सामने के दोनो अपर और नीचे के एक साइड लोअर बर्थ पर तीन पुरुष यात्री सफेद चादर ओढ़े खर्राटे भर रह रहे हैं। 

चारों महिलाएं आपस में बातें कर रही हैं...

ये पुरुष सोते ही खर्राटे भरने लगते हैं! 
और जगते हैं तो मानते भी नहीं।
जब कुछ लिखने का मन करती हूं, खर्राटों से ध्यान भटक जाता है। /
एक बढ़िया कविता है, सुनोगी?
तीनों महिलाएं चहकने लगीं.. सुनाइए! सुनाइए न दीदी!!!

कविता का शीर्षक है.. #अनकही
वह कहता था, 
वह सुनती थी,
जारी था
कहने, सुनने का खेल
......
अरे! यह कविता तो मैंने पढ़ी है। Sharad Kokas की कविता है। 
मैंने भी पढ़ी है, वाकई बहुत अच्छी कविता है।
सदियों से महिलाओं पर हो रहे शोषण को कितने सरल शब्दों में अभिव्यक्त किया गया है!
अंत में कवि ने क्या कमाल किया है..
उसके हाथ कभी नहीं लगी वह पर्ची 
जिसमें लिखा था..कहो!

सही बात है।
फेसबुक के अपने मित्र सूची में कई अच्छे लेखक हैं न?
तुम अभी क्या पढ़ रही हो?
मैं तो #लोहेकाघर पढ़ रही हूं.. #मायरा! गिर जाओगी। चलो बैठो शांति से। हो गया योगा। ट्रेन में शीर्षासन नहीं करते।

मयरा! लोहे का घर! शरद काेकास!!! अब मेरी नींद पूरी तरह उचट चुकी थी। अचकचा कर उठ कर बैठ गया। नीचे बैठी चारों महिलाओं को आंखें फाड़ कर देखने लगा..अर्चना चावजी, वंदना अवस्थी दुबे, Rashmi Prabha दी, Usha Kiran ओह! माई गॉड! ये क्या देख रहा हूं मैं!!!

वो दाएं ऊपर बर्थ पर नाक पर चश्मा चढ़ाए, सीने में खुली किताब धरे, खर्राटे भर रहे सलिल भैय्या! बाएं Taau Rampuria!! ये नीचे किसका झोला टंगा है? इसमें तो किताबें ही किताबें रखी हैं! ये किसके मुखड़े पर मूर्खता का सौन्दर्य बिखरा पड़ा है? कहीं ये अपने अनूप शुक्ल तो नहीं! हां, हां वही हैं कितने जोरदार खर्राटे! क्या मैं ब्लॉगरों की किसी बारात में सफ़र कर रहा हूं? 

उस तरफ, रामचरित्र मानस के कथाकार DrArvind Mishra जी एक झौआ आम की टोकरी खोले किसे आम पकड़ा रहे हैं? इधर सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी दोनों हाथों से आम चूस कर गुठली खिड़की से बाहर फेंकते उधर मिश्रा जी दूसरा आम लिए तैयार..यह और मीठा है! सिद्धार्थ सर मना कर रहे हैं.. अरे नहीं, बहुत हो गया। 

उनके सामने, बगल के साइड लोअर पर गले में कैमरा लटकाए टी एस दराल जी किसकी फोटू खींच रहे हैं? उधर वो कौन बोल रहा है...एक लाइन लिख दिया, पोस्ट कर लेने दो। जानते हो? मैं एक लाइन ही लिखता हूं। संतोष त्रिवेदी की तरह बड़े बड़े पोस्ट नहीं लिखता। ये तो Ali सा हैं! Rajesh Utsahi जी भी उनके हां में हां मिला रहे हैं.. मैं भी लघुकथा लिखता हूं। आजकल चौपाल लगाता हूं। कविता भी लिखता हूं तो छोटी छोटी। 

ये कौन सी ट्रेन है? कहां से चला हूं? कहां जा रहा हूं? यह कौन सा स्टेशन है? ये कौन दो आदमी चढ़े हैं? एक के हाथ में कार्टून के कैनवास, दूसरे के हाथ में कैमरा! ये तो Kajal Kumar और सफेद घर के मालिक Satish Pancham लगते हैं! ये हो क्या रहा है? ट्रेन चल चुकी।  वो कौन दौड़ा भागा चला अा रहा है! ये तो मैराथन Satish Saxena लगते हैं। ये हो क्या रहा है!!! कोई बताएगा मुझे? ये हम कहां जा रहे हैं?

6 comments:

  1. आप भोपाल आ रहे थे. रवि रतलामी के घर :)

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    1. ओह! अब भोपाल आएंगे तो मिलेंगे सर आपसे भी।

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  2. वाह, जबरदस्त बारात निकाली है आपने बलागरों की, बहुत लाजवाब लिखा आपने.
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग
    रामराम

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  3. गज़ब ... इस लोहे की बक्से में क्या क्या हो रहा है ...
    जो न हो कम है ... बहुत लाजवाब ...

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  4. वाह ! कमाल की यात्रा है यह..

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