21.9.18

बेटियों को पढ़ाने से पहले...


बेटियों को पढ़ाने से पहले
सोच लो तुम
पढ़ गयीं तो
ज्ञान की बातें करेंगी रोज तुमसे
सुन सकोगे?

सूर्य को देवता कहते हो तुम तो
आग का गोला कहेंगी!
मान लोगे? 

चांद को देवता कहते हो तुम तो
धरती का पुछल्ला कहेंगी!
मान लोगे?

तुम कहोगे
हम सवर्ण!
ढूंढकर पात्र को ही
दान देंगे!
वे कहेंगी
आदमी तो आदमी है
क्या है हिन्दू, क्या है मुस्लिम
शूद्र औ ब्राह्मणों में फ़र्क क्या है?
मान लोगे?

भारत का संविधान
हमने भी पढ़ा है
दान का अधिकार तुमको
किसने दिया है?
क्या तुम्हारी संपत्ति हैं हम?
मान लोगे?

हो गई शादी तो पति की
हर बात को स्वीकार वे कैसे करेंगी?
व्रत धरो, पूजा करो,
हम परमेश्वर! मालिक तुम्हारे!
क्या सहज ही मान लेंगी?
या कहेंगी..
मूर्ख हो तुम!
हक यह तुमको किसने दिया है?
मित्र बन कर रह सको तो रह लो वरना
तलाक देती हूं तुम्हें,
राह कोई और देखो!
साथ फिर भी बेटियों का
दे सकोगे?

बेटियों को पढ़ाने से पहले
मजबूत कर लो अपना कलेजा
खोल लो
आंखें भी अपनी
सोच लो
जान जाएंगी बड़ी होकर
बेटियां
सत्य क्या, अधिकार क्या है!

बेटियों को पढ़ाने से पहले
धर्म और जाति की
दीवारें गिरा दो
पीढ़ियों से आ रही
कुरीतियां मिटा दो
आदमी को बाटने वाले सभी
नारे मिटा दो

छूटते ही कैद से
क्या रुकेंगी?
पंख उनको मिल गए तो
क्या थमेंगी?
नई हवा में झुलस कर
जब गिरेंगी
दर्द उनका फिर भला
कैसे सहोगे?

बेटियों को पढ़ाने से पहले
सोच लो तुम
ज्ञान की बातें करेंगी रोज तुमसे
सुन सकोगे?
.............


42 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 22 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. कविता आज के आधुनिक समय में समय से कुछ पीछे रह जाने वाले माता पिता की मानसिकता को प्रकट करती है कुछ सवाल पूछने के बहाने...
    मन के बहुत करीब लगी...
    साधुवाद!

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    1. आभार आपका कविता से जुड़ने के लिए।

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  3. सही कहा आपने। हमारे यहाँ भी गाँव में सब यही कहते हैं कि लड़कियां पढ़कर तोर-मोर करती हैं, जिससे शादी की जाय उसमें खोट निकालती हैं। इसलिए पढ़ाओ तो बिलकुल ही नहीं।

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    1. उसी को लेकर लिखने के लिए प्रेरित हुआ।

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  4. कन्या को शिक्षित करने का अर्थ है - नारी-उत्थान. और नारी-उत्थान का अर्थ है - पुरुष द्वारा स्त्रियों को कुचलने के युग का अंत. और पुरुष द्वारा स्त्रियों को कुचलने के युग के अंत का अर्थ है - लैंगिक-असमानता का अंत, सृजन, सृजन और सृजन !

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    1. शिक्षा और सामर्थ्यवान होने के बाद भी उत्थान के लिए कठिन संघर्ष देखता हूं।

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/09/2018 की बुलेटिन, जन्मदिन पर "संकटमोचन" पाबला सर को ब्लॉग बुलेटिन का प्रणाम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. बिल्कुल सटीक ...बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

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  8. बेटियों को पढ़ाने से पहले
    सोच लो तुम
    पढ़ गयीं तो
    ज्ञान की बातें करेंगी रोज तुमसे
    सुन सकोगे?

    सूर्य को देवता कहते हो तुम तो
    आग का गोला कहेंगी!
    मान लोगे?

    अनुपम कविवर waahhhhhh।।

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  9. वाह बहुत सुंदर रचना

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    1. कविता से जुड़ने के लिए धन्यवाद।

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  10. वाह ! बेटियों के दिल की बात कितनी सरलता से कह दी आपने..बेटियों के बहाने हर स्त्री के मन की बात..

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  11. सार्थक रचना

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  12. बहुत ख़ूब ...
    इस समाज की बेड़ियों जो नहि काट सकते वो बेटियों को पढ़ा लिखा कर इतना मज़बूत कर देंगे की वो अपने आप इन बेड़ियों को तोड़ देंगी
    प्रभावी तरीक़े से रखा है विषय को ... लाजवाब ...

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  13. आभार आपका। कल देखते हैं।

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  14. तगड़ी कविता. सो गया था, फिर याद आया कि दिन में आपकी ये पोस्ट बादमें पढ़ने के लिए छोड़ी थी, तो जागकर पढ़ने आया :)


    इन पंक्तियों को हटा भी दिया जाय या इन्हें एडिट किया जाय तो काम टंच हो जाय !
    तोड़ना चाहते हो कफ़स को
    तो पहले
    इस धरा से प्रदूषण मिटा दो

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    1. अरे वाह! इत्ते मेहनत से पढ़ने के लिए धन्यवाद। आपके सुझाव पर विचार करता हूं।

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  15. आग का गोला हो तो भी जीवनदाता ही है, देवता तो रहेगा ही

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    1. कविता से जुड़ने के लिए आभार।

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  16. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  17. अच्छी कविता सोच को विकसित करने के लिए ...कम से कम आँखें तो खुल जी जायेंगीं बेटियों की पढ़ाई के बहाने

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  18. सचमुच एक एक वाक्य सत्य है सत्य के सिवा कुछ नहीं।
    लाज़वाब रचना सर
    सादर।

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  19. हो गई शादी तो पति की
    हर बात को स्वीकार वे कैसे करेंगी?
    व्रत धरो, पूजा करो,
    हम परमेश्वर! मालिक तुम्हारे!
    क्या सहज ही मान लेंगी?
    या कहेंगी..
    मूर्ख हो तुम!
    हक यह तुमको किसने दिया है?
    मित्र बन कर रह सको तो रह लो वरना
    तलाक देती हूं तुम्हें,
    राह कोई और देखो!
    साथ फिर भी बेटियों का
    दे सकोगे?
    जैसे मेरे ही मन की बात…बहुत सुन्दर कविता- उषा किरण

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  20. बुद्धिमान नारी को सम्भाल्रना उसके साथ जीवन बिताना आसान नहीं 🙏🙏

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  21. वाह! बहुत सुंदर सराहनीय 👌

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  22. सत्य वचन, बेहतरीन सृजन 🙏

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