29.8.18

परिंदे

दिन के शोर में
गुम हो गए
भोर के प्रश्न
अपने-अपने
घोसलों से निकल
फुदकते रहे
परिंदे।

शाम की शिकायत
सुनते सुनते
रात बहरी हो गई
बोलते-बोलते
गहरी नींद सो गए
थके-मांदे
परिंदे।

परिंदों में
काले भी थे
सफेद भी
कबूतर भी थे
गिद्ध भी
लेकिन
सब में एक समानता थी
सभी परिंदे थे
और..
सभी के प्रश्न/
सभी की शिकायतें
सिर्फ पेट भर
भोजन के लिए थीं।
......

19 comments:

  1. कविराज के अनुसार संसद रोटी पर बहस चल रही है, सब्र कर!

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  2. यथार्थ ! कम शब्दों में बहुत अच्छा चित्रण ।

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  3. परिंदों ने माध्यम से बहुत कुछ कह गए आप ...
    यथार्थ सच सार्थक ...
    शुभकामनाएँ ...

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    1. ब्लॉग से निरंतर जुड़े रहने और मुझे उत्साहित करते रहने के लिए आभार आपका।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (31-08-2018) को "अंग्रेजी के निवाले" (चर्चा अंक-3080) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
    ---

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  5. सारी कवायत पेट से, पेट के लिए, लेकिन यह है भरता ही नहीं कभी ......
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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    1. Blog से जुड़े रहने के लिए आभार।

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  6. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गाँव से शहर को फैलते नक्सली - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  7. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है जन्माष्ट्मी की हार्दिक शुभकामनाएं...!

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  8. Awesome article! It is in detail and well formatted that i enjoyed reading. which inturn helped me to get new information from your blog.
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