13.1.19

ये पतंगें

तेरी नीयत
तेरे मंझे
तू ही जाने
मैं साथ रहना चाहता हूँ
इन पतंगों के!
ये पतंगें
बादलों में
धूप लिखना चाहती हैं।

आकाश में
छाई है बदली,
हो रही है
हल्की-फुल्की
बूंदाबांदी
और फिर
बह रही
कातिल हवाएं!
प्रतिकूल हैं
रंग सारे
मगर फिर भी
ये पतंगें
बादलों को चीरकर
किरण लिखना चाहती हैं।

ये पतंगें
बादलों में
धूप लिखना चाहती हैं।

ये पतंगें
हौसलों की बातियाँ हैं,
ये पतंगें
इस धरा की थातियाँ हैं,
ये पतंगें
आग की चिंगारियाँ हैं।
चलो साथी!
साथ दें
इन पतंगों का
ये पतंगें
इस धरा में
सुबह लिखना चाहती हैं।


10 comments:

  1. उम्दा। शानदार शब्द संचयन।

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  2. आशा का संदेश देतीं प्रभावशाली पंक्तियाँ !

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन शुभकामनायें प्रथम अंतरिक्ष यात्री को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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