1.5.20

मजदूर एकता एक भद्दा मजाक है।

हम
नारे लगाते रहे..
'कर्मचारी एकता जिंदाबाद'
'इंकलाब जिंदाबाद'
'दुनियाँ के मजदूरों एक हो'

वे समझाते रहे...
तुम हिन्दू हो
मुस्लिम हो
अगड़े हो
पिछड़े हो
दलित हो
अतिदलित हो...।

हम चीखते..
हम मजदूर हैं!
वे कहते...
हां, हां,
हम तुम्हारे सेवक हैं!!!

उनमें
सेवक बनने
और सच्चा, सबसे अच्छा,
दिखने की होड़ लग गई

वे रोटी फेंकते
हम
खाने के साथ साथ
गिनते भी...
किसे अधिक मिला, किसे कम!

अब हम
सिर्फ मजदूर नहीं हैं
हिन्दू हैं
मुस्लिम हैं
अगड़े हैं
पिछड़े हैं
दलित हैं
अतिदलित हैं और
मजदूर एकता!
एक भद्दा मजाक है।

9 comments:

  1. मजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  2. सच कह रहे हैं आप। यूँ भी दर्द को भुनाने की कोशिश तो हमेशा से होती ही रही है इस समाज में।

    ReplyDelete
  3. ऐसे भद्दे मजाओं में घुल मिल गये हैं हम। सुन्दर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मजाओं की जगह मजाकों पढ़ें।

      Delete
  4. कटु यथार्थ

    ReplyDelete
  5. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. सभी मित्रों का आभार। ब्लॉग में इतने मित्र सक्रीय होने लगे यह खुशी की बात है।

    ReplyDelete
  7. बहुत सामयिक कविता।

    ReplyDelete