हम सभी को मिली है
दृष्टि संजय की!
देख सकते हैं दशा
कुरुक्षेत्र की।
धृतराष्ट्र बन पूछते
कितने मरे?
आज तक घायल हुए
कितने बताओ?
चल रहे हैं सड़क पर
मजदूर सारे
लड़ रहे हैं निहत्थे
क्रूर पल से।
ठीक है किंतु अब तुम
यह बताओ?
क्या कोई, अपना/सगा
घायल पड़ा है?
दूर है काल फिर तो
भय नहीं है
दृष्टि बदलो अब जरा
गाना सुनाओ।
दृष्टि संजय की!
देख सकते हैं दशा
कुरुक्षेत्र की।
धृतराष्ट्र बन पूछते
कितने मरे?
आज तक घायल हुए
कितने बताओ?
चल रहे हैं सड़क पर
मजदूर सारे
लड़ रहे हैं निहत्थे
क्रूर पल से।
ठीक है किंतु अब तुम
यह बताओ?
क्या कोई, अपना/सगा
घायल पड़ा है?
दूर है काल फिर तो
भय नहीं है
दृष्टि बदलो अब जरा
गाना सुनाओ।
आज के वक्त का कटु यथार्थ, हम ही यदि संजय हैं और हम ही धृतराष्ट्र तो सड़क पर घायल मजदूर भी हम ही हुए न
ReplyDeleteजी
Deleteसटीक प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteगहरा कटाक्ष है ... और आज का कटु सत्य जो शब्दों में उभरा ...
ReplyDeleteआप सभी का आभार।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-05-2020) को "फिर होगा मौसम ख़ुशगवार इंतज़ार करना " (चर्चा अंक-3707) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteगाना सुनाना ही सबसे सरल रास्ता है।
ReplyDeleteसही कहा, मुंदहूँ आँख कतौ कछु नाहीं।
Delete