10.1.23

लोहे का घर 65

दून आज खूब लेट आई। 5 बजे आने वाली थी आते-आते शाम के 6.30 के आसपास आई। अभी एक स्टेशन आगे बढ़ी है, लगता है 9 बजाएगी। खूब भीड़ भी है लोहे के घर में। हम लोगों को बैठने की जगह मिल गई यही बहुत है। हम लोग मतलब मेरे अलावा 5 और धैर्यवान रोज के यात्री साथ हैं। स्टेशन के पास खड़े-खड़े ठंड मिटाने के लिए भले कई मुर्गी का और बतख का अंडा हजम कर लेंगे लेकिन ट्रेन से ही जाएंगे, बस से नहीं जाएंगे। जब एक महीने का टिकट बनाएं हैं तो कौन बस का 83 रुपिया खर्च करे! और यह भी कि जो आनन्द ट्रेन यात्रा में है, बस में कहाँ!!!

पीछे के कूपे में कलकत्ता जाने वाले यात्रियों की एक मंडली बैठी है जो खूब भजन कीर्तन कर रही है। लगातार उनके भजन गाने की आवाजें आ रही हैं। चलता हूँ, उनसे अनुमति लेकर एक वीडियो बनाता हूँ। 

सभी मस्त यात्री लग रहे हैं, आनन्द लेना जानते हैं। ट्रेन के लेट होने का मातम नहीं मना रहे, लगता है, जश्न मना रहे हैं। बीच-बीच में वेंडर भी आ/जा रहे हैं। 

ट्रेन अभी भण्डारी से एक स्टॉपेज चल कर जफराबाद में देर से रुकी है। लगता है ट्रेन ने कोहरे के बहाने लेट करने का अधिकार प्राप्त कर लिया है, जबकि अभी कोई कोहरा नहीं है। इस ट्रेन में और देश मे भी उन्हीं का गुजारा हो सकता है जो भक्ति भाव से भजन गाते हुए यात्रा करें। मातम मनाने वालों का न देश में गुजारा है न लोहे के घर में।
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नोट: यह वीडियो का लिंक है। यहाँ पोस्ट नहीं हो पाया।

https://youtu.be/aDHTdMQSdv4

3 comments:

  1. भक्तिभाव से भजन जो गा सकता है उसने जीवन का आनंद लेने की कला सीख ली है

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  2. बहुत दिन बाद लोहे का घर सीरीज का लेख आया।

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