29.3.25

बेचैन आत्मा से...

सुबह हुई! गंगा नहायें

तुम हमें घुमाओ, हम तुम्हें घुमायें


सड़क छोड़ पगडंडी पकड़ें

जौं, गेहूँ की बाली देखें

उगता सूरज दिख जाए तो

धरती माँ की लाली देखें 


दूर बह रही गंगा जी हैं

चलो नहायें, तैरें, गायें

रस्ते में कोई मिल जाए

'जै गंगा जी' कहते जायें


कर्मों की सूची लम्बी है

भरे पड़े हैं दुःख के किस्से

अंधियारी रात कटी है

नई सुबह फिर अपने हिस्से


तेरे घर में रहता हूँ मैं

तुझे घुमाना फर्ज है मेरा

मेरे कारण तू जिन्दा है

मुझे घुमाना फर्ज है तेरा


हम-तुम साथी इक दूजे के

किसको ढूढ़ें? पास बुलाएँ!

ईश्वर यहीं-कहीं रहता है

चलो, चलें! उससे मिलवायें


सुबह हुई! गंगा नहायें

तुम हमे घुमाओ, हम तुम्हें घुमायें।

.........

5 comments:

  1. तुम और हम का कोई नाम पता भी है या बस यूँ ही

    ReplyDelete
  2. तुम हमें घुमाओ तक ठीक है |

    ReplyDelete
  3. खुद से खुद (आत्मा) का ही सुंदर संवाद।

    ReplyDelete