22.4.23

सोने के सिक्के

जहां वह खड़ा था वहां दूर-दूर तक, जिधर निगाह जाती, मिट्टी गीली थी। हल्की-फुल्की जमीन धंस भी रही थी लेकिन कहीं दलदल नहीं दिखा। आराम-आराम से धंसते-उठते चल पा रहा था। एक नया अनुभव था, रोमांच हो रहा था! जब चलना प्रारंभ किया, शुरू शुरू में डर लगने लगा लेकिन अब कोई भय नहीं था, उल्टे मजा आ रहा था।


एक स्थान पर मिट्टी से सने कुछ सिक्के दिखाई दिए, लपक कर उठा लिया और रूमाल निकाल कर मिट्टी पोंछने लगा। मिट्टी गीली थी, सिक्के जल्दी ही चमकने लगे। सिक्के देखकर मन ही मन खुशी से चीख पड़ा,"अरे! ये तो सोने के हैं!!!" 


लालची मनुष्य! इतने से संतुष्ट नहीं हुआ। चारों तरफ निगाह दौड़ाने लगा, 'शायद कहीं कुछ और हों!' चलते-चलते आखिर एक स्थान पर कुछ सिक्के और मिल गए, वे भी सोने के थे!! अब लालच और बढ़ गया। अनुमान लगाने लगा, 'यह पूरा इलाका ही सोने के सिक्कों से भरा होगा, मिट्टी गीली है इसलिए नहीं दिख रहा!"


अब वह चलते-चलते, सिक्के बीनते-बीनते पूरी तरह थककर चूर हो चुका था। उसके दोनो जेब सोने के सिक्कों से भर चुके थे। गीली मिट्टी की कोई सीमा नहीं दिख रही थी! अभी भी जहां तक दृष्टि जाती, मिट्टी ही मिट्टी! अब तो उसे यह भी याद नहीं रहा कि उसने कहां से चलना शुरू किया था? पलटकर पीछे देखता, दाएं देखता, बाएं देखता, जिधर देखता गीली/ धंसती मिट्टी ही मिट्टी! 


धंसते-उठते पैरों ने अब चलने से इनकार करना शुरू कर दिया था। जब थोड़ा रुकता, थोड़ा और धंसने लगता, जल्दी से वापस पैर खींच कर भागने लगता, अब रोमांच, लालच सब खतम हो चुका था। मेहनत से बीने सिक्के भी बोझ लगने लगे थे! अब उसे सिर्फ भूख और जान बचाने की चिंता थी। 


सोने के सिक्के हाथों से छूटकर वापस मिट्टी में मिलने लगे! सिक्के क्या, अब तो वह भी मिट्टी में धंसने लगा!!तभी अचानक चमत्कार हुआ। लंबी गरदन, बड़ी चोंच और पूरी तरह मिट्टी से सने 8 पैरों वाला एक पंछी सामने आया और पूछने लगा, "सोना चाहिए या अभी और जीना चाहते हो?" रोते हुए उसके मुख से एक ही वाक्य निकला, "मुझे बचाओ! लंबी गरदन वाले पंछी ने दया दिखाई, उसे अपनी चोंच से पकड़ कर पीठ में बिठाया और पलक झपकते ही उड़ चला। 


आदमी की नींद खुली तो उसने अपने आपको गंगा किनारे गीली मिट्टी में पड़ा पाया। यहां सोने के सिक्के नहीं थे लेकिन सामने रेत पर ककड़ी/खरबूजे/ तरबूजे बिखरे पड़े थे जो सोने के सिक्कों से अधिक अच्छे लग रहे थे और यहां की मिट्टी भी नहीं धंस रही थी! सामने मेहनती पुरुष और महिलाएं खेतों में काम कर रही थीं। 

..........

11 comments:

  1. केजरीवाल भी मुफ्त में सोने का सिक्का बांटने का वादा कर रहा है उसको खेतों में काम करते मजदूर अच्छा नहीं लगता, बहुत सुंदर,अक्षय तृतीया पर सोना पाने की बधाई हो

    ReplyDelete
  2. यह तो सपना था सो सब ठीक हो गया, सोने के पीछे भागते लोगों को तो वक्त रहते कोई पंछी भी बचा नहीं पाता

    ReplyDelete
  3. इसे सपना ही रहना चाहिए ,मेहनत से उत्तम और कुछ नहीं ।

    ReplyDelete
  4. जीवन की सच्ची बयां करती बहुत अच्छी प्रेरक कहानी। सच है इंसान लालच में जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. पढ़ने और प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत धन्यवाद।

      Delete
    2. संदेशप्रद, गहन अर्थ समेटे सराहनीय कहानी सर।
      सादर।
      -----
      जी नमस्ते,
      आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ अप्रैल २०२३ के लिए साझा की गयी है
      पांच लिंकों का आनंद पर...
      आप भी सादर आमंत्रित हैं।
      सादर
      धन्यवाद।

      Delete
  5. एक सोए हुए नायक के सोने और दलदल के सपने वाली प्रतीकात्मक कहानी हमारे मानव समाज के हम जैसे लोगों की भौतिक सुख की मृग-मरीचिका में जागे हुए भटकने की लालसा का स्पष्ट दर्पण लगा .. शायद ...
    बचपन में सुनी एक कहानी की भी हठात् याद आ ही गयी, जिसमें तथाकथित वरदान देने वाले किसी ने एक आम इंसान से खुश हो कर कहा कि जमीन की जितनी दूरी दौड़ते हुए सूर्योदय से सूर्यास्त तक तय कर के पुनः वहीं वापस आ जाओगे, तो सारी जमीन तुम्हारी हो जाएगी। बेचारा आम इंसान हवस में सूर्यास्त तक आगे की ओर ही दौड़ता रहा, पर शर्तानुसार पुनः उस स्थान तक वापस लौटने के लिए ना तो उसके पास समय बचा और ना ही ऊर्जा, पूरी तरह पस्त हो कर निढाल गिर पड़ा .. और हाथ कुछ भी ना आया, बल्कि अपनी काया को थका भी लिया ... बेचारा इंसान .. बस यूँ ही ...

    ReplyDelete
  6. काश इस लघु कथा से कुछ प्रेरणा ले पाएँ । लालच इंसान को क्या से क्या बना देता है । संदेशपरक लेखन ।

    ReplyDelete
  7. लालच मौत तक ले गया जिजीविषा ने प्राण बचाए।
    बहुत सुंदर कथा ।

    ReplyDelete