24.8.18

सत्ता

चांद
दिन में
सूरज से
कोई प्रश्न नहीं करता
जानता है
सही वह
जिसके पास है
सत्ता।

सूरज
रात में 
चांद पर रोशनी लुटा कर 
मौन हो जाता है
जानता है
सही वह
जिसके पास है
सत्ता।

आम आदमी 
चिड़ियों की तरह
चहचहाता है..
वो देखो
चांद डूबा,
वो देखो
सूर्य निकला!
वो देखो
सूर्य डूबा,
वो देखो
चांद निकला!
......

10 comments:

  1. बढ़िया। अब शायद कुछ बदलाव आयेगा पाँच साल चाँद दिखेगा सूरज गायब हो जायेगा ।

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  2. सभी बदलाव सुखद नहीं होते..

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  3. आम आदमी चिड़ियों की तरह फड़फड़ाता है

    बहुत अच्छी और सुंदर रचना

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  4. आम आदमी
    चाँद और सूरज के पाटों में रखा
    अनाज है
    जिसे सत्ता के
    भूख के हिसाब से
    बेहिसाब
    पीसा जाता है।
    ---
    बेहतरीन अभिव्यक्ति सर
    सादर।

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  5. सुंदर सराहनीय रचना ।

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  6. सही !!बैचेन आत्मा अकेली नहीं भीड़ है पूरी।
    सुंदर सृजन।

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  7. सही कहा आम जनता ने यही हिसाब किताब का ठेका लिया है...सही गलत सब होके निकल जाते हैं...बस हिसाब किताब लगाते लगाते...
    बहुत सुन्दर सृजन।

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  8. बहुत सुन्दर रचना

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  9. सच है सारी दुनिया तो चाँद आया -सूरज आया जानती है | उसके पीछे की राजनीति से उसका क्या लेना-देना ? सटीक हलकी -फुलकी सार्थक रचना |सादर

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