आत्मा की बेचैनीः-
आज रविवार है, कविता पोस्ट करने का दिन । मैने रविवार को कविता पोस्ट करने का दिन इसलिए रखा कि यह छुट्टी का दिन है, आराम से कविता पोस्ट करूँगा और दूसरे के ब्लाग में जाकर दिनभर कमेंट टिपटिपाता रहूँगा लेकिन हाय री किस्मत 'बिजली रानी' मेरे इस कवित्त प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर पाई। सौतन बन कहने लगी, "अच्छा तो यह बात है, मैं तेरे जगते ही दिनभर के लिए चली जाउंगी ! वो मेरे निश्चय का दिन और ये बिजली रानी का कातिलाना व्यवहार, मेरे शहर में बिजली सुबह ९ बजे से दिनभर गायब रहती है और देर शाम ढले ६ बजे के बाद मुंह चिढ़ाते हुए आ जाती है ! बेशर्मी से पूछती है, "क्यों बेचैन आत्मा, क्या किया दिन भर ? बड़े आए थे ब्लाग-ब्लाग घूमने....उहं !
मैं भी कहाँ मानने वाला था। मैने भी तय कर लिया कि ब्रह्म-मुहूर्त में ही जागकर कम से कम अपनी कविता तो जरूर पोस्ट कर दुंगा। देखता हूँ ये 'बिजली रानी' मेरा क्या बिगाड़ लेती है ! तब से हर इतवार ब्रम्हमुहूर्त में ही उठकर कविता पोस्ट करता हूँ। लेकिन आज ? हाय !! लगता है सभी सरकारी विभाग मेरी ब्लागरी के दुश्मन बन गए हैं। आज सुबह ४ बजे जब मैने नेट आन किया तो देखा, लिंक ही नहीं मिल रहा है ! फोन की नाड़ी टटोली तो अवाक रह गया एक भी धड़कन सुनाई नहीं दी ! आत्मा बेचैन हो गई। अरे,.. यह तो डेड है ! तो लिंक कैसे मिलेगा ? अरे, करमजले बी०एस०एन०एल, तू ने कब से बिजली रानी से दोस्ती कर ली..? वह तो अभी है, तू कहाँ मर गया ? अब इतनी सुबह कौन आए मेरी मदद करने ! फिर सोंचा, मैं ही चला जाता हूँ किसी साइबर में बैठकर कविता पोस्ट कर दुंगा.. लेकिन इतनी सुबह कौन साइबर खुलेगा !
अब आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं सुबह से कितना बेचैन था। साइबर खुला तो आ गया कविता पोस्ट करने लेकिन बेचैनी में कविता की डायरी घर ही भूल गया ! अब मैं क्या करूँ ? सोंचा यही लिख दूँ जो हुआ है। बाकी सब आपकी दुआ है। ईश्वर से मनाइए कि बी०एस०एन०एल० अच्छी सेवा देने लगे, बिजली रानी दिनभर रहे और बेचैन आत्मा की बेचैनी कुछ कम हो।
भूखा भेड़ियाः-
अभी एक बात और याद हो आई। ताउ डाट काम के फ़र्रुखाबादी विजेता (159) पहेली में एक चित्र था....एक जानवर की चार टांगों के बीच छुपा दूसरा भूखा जानवर । जब मैने चार टांगे देखीं तो दिमाग पर जोर दिया, कहीं यह भारत का लोकतंत्र तो नहीं ! सुना है कि लोकतंत्र की भी चार टांगे होती है। दिमाग में कीड़ा रेंगा- कहीं यह गधा तो नहीं !! ध्यान से देखा.. गधा ही था। अब प्रश्न शेष था कि इन चार टांगो के बीच भूखा जानवर कौन हो सकता है ? मेरे आँखों के सामने बहुत से चित्र आ-जा रहे थे। शरारती दिमाग ने तुरंत पहचान लिया......भूखा भेड़िया !! मैने तुरंत उत्तर लिखा - "गधा और भूखा भेड़िया" । कहना न होगा कि दूसरे दिन मैं ही विजेता घोषित हो गया। क्यों ? है न मजेदार बात ! इसी पर एक कविता लिखने का प्रयास करता हूँ देखिए क्या होता हैः-
भूखा भेड़िया
पहेली में चित्र था
बहुत बढ़िया
गधे की चार टांगों के बीच
भूखा भेड़िया !
सभी ने कहा
गधा,
बंधा है.
परतंत्र है.
मैने कहा
नहींऽऽ
यह
आधुनिक भारत का लोकतंत्र है !
दुःख इस बात का है
कि मेरी बात को आपने
अधूरे मन से माना
लोकतंत्र की चार टांगे तो पहचान लीं
भेड़िये को
अभी तक नहीं पहचाना !
भेड़िये को
अभी तक नहीं पहचाना !
बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना, अब काम की बात हम सब गधे है गरीब, नरीह ओर यह नेता है भुखे भेडिये जो हर समय हमे नोच रहे है, हमारा मंस खा रहे है, आओ इन्हे दुल्लती मारे
ReplyDeleteभाई, पहले तो इतनी मेहनत से पोस्ट लिखने की बधाई।
ReplyDeleteसचमुच ये तो बड़ा बहादुरी का काम किया इस ठण्ड में।
फोटो में गधे के टांगों के बीच बैठा भेड़िया पहचान कर आपने कमाल कर दिया ।
यही नहीं फिर लोकतंत्र में छुपा भेड़िया--- क्या खूब कहा है।
अति सुन्दर।
Kuch nahi kahungaa....Aap ne aaj Bechain kar diya.
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी ....... ये भेड़िया अपनी खाल बदलता रहता है ........ कभीं लोकतंत्र, कभी भोगतनत्र, कभी समाजवाद, कभी सांप्रादायक, तो कभी साम्यवाद का चोला ......... कभी ग़रीबी हटाओ का नारा, कभी दूर दृष्टि, पक्का इरादा तो कभी शाइनिंग इंडिया का नारा, ......... लोग पहचानें भी तो कैसे .......... शुक्र है आप अपनी पोस्ट तो डाल सके नही तो इनको पता चलता तो वो भी न करने देते ........
ReplyDeleteaapkeee pahchan lene kee kshamta ko daad denee hee padegee !
ReplyDeleteबेहद पसंद आई।
ReplyDeleteवाह अब समझ आया कि आपके ब्लॉग काअ नाम बेचैन आत्मा क्यों है..बिजली का हाल ऐसा है कि अगर कबीरदास भी ब्लॉग पोस्ट करने की आपकी समस्या से जूझते तो यही कहते ’बिजली महा ठगिनि हम जानी’..खैर आप चाहे तो पोस्ट को ब्लॉग पर पहले ही डाल कर रविवार की सुबह के लिये शेड्यूल कर सकते हैं.. तो वह आपके नियत समय पर स्व्यं प्रकाशित हो जायेगी.
ReplyDeleteऔर लोकतंत्र के बारे मे आपने सही पहचान की है..मगर जैसा कि चित्र मे है कि गधे की किस्मत तो भेड़ियों के हवाले ही है सो क्या होगा..और गधे की यही नियति भी है.
waaah ji aaj apki baichain rachna ne kya baichaini ka sama bandha...kamaal ho gaya. bsnl ki baichaini bhi khoob kahi aur anterjaal ki bhi ham to padhte hi reh gayi aur uspar gadha aur uski char tange aur us per turra ki niche chhupa bhediya...kya dimag daudaya hai ji...filhaal to ye bhediya mujhe loktantr me Mehengaayi hi lag rahi hai jo aam janta ko khaye ja rahi hai....bahut khoob acchhi rachna. badhayi.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteअजी चिंता न करें पहचान लिया है पहचान लिया.बहुत जबरदस्त कटाक्ष बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteअच्छी रचना के लिए
ReplyDeleteबधाई कुबूल करें ...........
pehchan liya... aur mujhe lagta hai sab pehchan lenge... par kaun apna munh ganda kare...
ReplyDeletehaan, B.S.N.L - Bhai Sahab Nahi Lagega.
बहुत सुन्दर लिखा है आपने! आपका ये पोस्ट मुझे बेहद पसंद आया!
ReplyDeleteआज का दिन तो बड़ा प्यारा है
ReplyDeleteघर में बिजली है नेट हमारा है
आज अभी जब घर आया तो देखा नेट चालू है बी०एस०एन०एल० के कर्मचारियों ने मेरी गुहार एक दिन में सुन ली. चमत्कार हो गया ...! कमेन्ट पढ़ कर संतोष हुआ की मेरी मेहनत व्यर्थ नहीं गयी.
अपूर्व जी को धन्यवाद की उन्होंने एक बढ़िया सलाह दे दी.. उस पर अमल करूँगा.
सर जन्म दिन की अग्रिम बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद . आपका ब्लॉग देखा , बहुत अच्छी प्रस्तुती है .
ReplyDeleteगधे को तो आपने देश के लोकतंत्र का प्रतिक बना दिया मगर दूसरा जानवर किसका प्रतिक है?
ReplyDeleteदो दिन से अपने साथ भी कुछ ऐसा ही हुया और मैने भी ऐसे ही पोस्ट लिखी आपको पहेली जीतने पर बहुत बहुत बधाई।लोहडी की भी बधाई पोस्ट बहुत रोचक लगी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने! आपका ये पोस्ट मुझे बेहद पसंद आया....हा...हा...हा.......!!
ReplyDeleteपहेली जीतने पर बधाई ।कविता भी बहुत अच्छी बनाई ।पर ये बात मेरी समझ मे न आई ।मुझे परेशान करने वाली बिजली आपको भी परेशान करने चली आई
ReplyDeleteआपने हमारे लिए पहेली खड़ी कर दी है, एक तरफ बी.एस.एन.एल. तो दूसरी तरफ बिजली, इधर पहेली में लोकतंत्र रूपी गधे की टांगों में बैठे भेड़िए की शिनाख्त तो उसके बाद कविता. अब किसकी प्रशंसा करें, किसे छोड़ दें. यह पहेली आपके लिए छोडी.
ReplyDeleteमकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया देवेन्द्र जी सच कहा आपने हमारी भारत की जनता बहुत ही नादान है जो अभी तक भेड़िए को पहचान नही पा रही है जो धीरे धीरे हमारे इस लोकतंत्र को टुकड़े टुकड़े कर के खाते जा रहे है....एक सुंदर कविता और उसमें निहित एक बेहतरीन विचार...ग़ज़ल की बात कही...बहुत अच्छा लगा...धन्यवाद देवेन्द्र जी
ReplyDeletewah , behatareen, loktantra men chhipa bhedia. bahut badhia.
ReplyDeleteजी हाँ साहिब...
ReplyDeleteभेदिया ही है...और भूखा तो वो हमेशा ही रहता है...
हमेशा..
आपकी लेखनी बहुत सशक्त है...
ReplyDeleteआपकी बात कहने की कला प्रभावशाली है...
और चित्र तो आज के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक है...
गधों का साम्राज्य भेड़ियों के हाथों ही तो चल रहा है....वो भी किसिम किसिम के भूखे भेड़िये...
बहुत रोचक आपबीती...
आभार..
निश्चय ही जो कहते हैं , ढंग से । कलाकारी है प्रविष्टि में ।
ReplyDeleteआभार ।
में सनतोस, मेंरे स1त 4,आत्मा र्अह्ति हे.
ReplyDeleteमें आत्मा के बअरे में स्अब बात बता सकता हूँ -मो-09810773638.
gazzab.... :)
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