धीरे-धीरे
कम हो रहा था
नदी का पानी
नदी में
डूब कर गोता लगाने वाले हों या
एक अंजुरी पानी निकाल कर
तृप्त हो जाने वाले,
सभी परेशान थे..
बहुत कम हो चुका है
नदी का पानी!
बात राजा तक गई
जाँच बैठी
नदी से ही पूछा गया...
पानी क्यों कम हुआ?
नदी ने
राजा को देखा
कुछ बोलने के लिए होंठ थरथराए पर...
सहम कर सिल गए!
राजा ने
नदी किनारे
सिपाही तैनात कर दिए
बोला..
अब देखें
कैसे कम होता है
नदी का पानी?
हाय!
नहीं रुका
पानी का घटना
नदी
सूखने के कगार तक पहुँच गई
एक दिन
हकीकत जानने के लिए
साधारण ग्रामीण का भेष बना कर
राजा स्वयं
नदी के किनारे घूमने लगा
अरे! यह क्या!!!
सिपाही मेंढक को क्यों मार रहे हैं?
सुनो भैया!
आप राजा के आदमी होकर
इन निरीह मेढकों को क्यों मार रहे हो?
सिपाही बोले...
ये मेंढक
नदी का पानी पी कर भाग रहे थे!
देखो!
ये जब भी फुदकते हैं
दो बूंद पानी
झर ही जाता है!!!
राजा ने
प्रत्यक्ष देखा था
शक की कोई गुंजाइश नहीं थी
मेंढकों का अपराध
सिद्ध हो चुका था।
सजा के तौर पर
मेंढक के पैरों में कील ठोंककर
उसका कलेजा निकाला जाना था
यह सब सुनकर
बिलों में छुपे साँप
बाहर निकल आए और..
तट किनारे खड़े
बरगदी वृक्ष की शाखों पर चढ़कर
कानों में
राजा का फैसला सुनाने लगे
खबर सुनकर
बरगद हँसने लगा...
यही होता आ रहा है सदियों से
हमारा कुछ न बिगड़ेगा
तुम सब निश्चिंत रहो।
..................
20.10.20
हमारा कुछ न बिगड़ेगा
12.10.20
मुझे आकाश चाहिए
तुम
हवा, जल और धरती का प्रलोभन देते हो
इन पर तो मेरा
जन्मसिद्ध अधिकार है!
तुमने
सजा रखे हैं
रंग बिरंगे पिजड़े
और चाहते हो
दाना-पानी के बदले
अपने पंख
तुम्हारे हवाले कर दूँ?
अपने सभी पिजड़े हटा दो,
मेरे पंख मुझे लौटा दो
मुझे आकाश चाहिए।
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