12.10.15

लोहे का घर...3


आज भी ट्रेन छुक-छुक, छुक-छुक चलती है ।  नहीं बन पाई धड़-धड़, धड़-धड़ चलने वाली बुलेट। एक सपना देखा है हमारे प्रधान मंत्री जी ने, एक सच से सामना होता है रोज। पूरे 7 घण्टे लेट कोटा-पटना मेरे लिए सही समय बन कर मिली जौनपुर के भंडारी स्टेशन पर। अपनी किसान भी लेट है, वह किसी दुसरे के लिए सही समय बन कर आयेगी। बाकी दूर के यात्रियों का क्या, उनके लिए तो लेट पर लेट, लेट पर लेट। 

भारत में ट्रेन के यात्रियों को यात्रा के समय अपने साथ 'सिंदबाद की साहसिक यात्राएँ' वाली पुस्तक रख लेनी चाहिये। पुस्तक को पढ़ते हुए उन दिनों को याद करना चाहिए जब यात्रा करना दुरूह कार्य हुआ करता था। साहसी ही कर पाते थे यात्रा। जवान बेटा बूढ़ा बन कर लौटता था घर। इससे मनोबल बढ़ता है और 7, 8 घण्टे का विलम्ब नहीं खलता।

ट्रेन में पर्याप्त जगह है। ऐसा लगता है कि यात्री विलम्ब से घबड़ा कर बीच में ही साथ छोड़ गए! एक चाय वाला बड़ी तेजी से चाय-चाय बोलते हुए निकल गया। ऐसा लगा जैसे उसे भी प्रधान मंत्री बनने की जल्दी थी! इसके प्रधान मंत्री बनने तक तो अवश्य चलने लगेगी भारत में बुलेट ट्रेन। सह यात्री ट्रेन को कोसते हुए सर से पाँव तक चादर ओढ़कर निश्चिन्त भाव से लेट गया। इसे तो शुक्रगुजार होना चाहिए भारतीय रेल का जो उसे एक दिन के भाड़े पर दो दिन सोने के लिए बर्थ उपलब्ध कराती है।

ट्रेन की चाल अभी बहुत तेज है। ऐसा लगता है जैसे पति के कटाक्ष से तंग आकर किसी की पत्नी घर छोड़कर सरपट भाग रही है! भारतीय रेल कब भागने लगे, कब ठुनक कर खड़ी हो जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। 

लो! रूठ कर खड़ी हो गई!! इतनी तेज चली कि 50 मिनट में शिवपुर आ गई। जब बनारस एक स्टेशन रह गया तो रुक गई। लगता है रूठ कर घर छोड़ मायके जा रही पत्नी को याद आ गया कि क्या-क्या जरूरी हिदायतें पति को देना भूल गई। रुक कर फोन लगा रही होगी। कहीं उलटे पाँव भागना न शुरू कर दे! 

बहुत देर हो गई। पता नहीं क्या चल रहा है इस ट्रेन के मन में! मुझसे महाभारत लिखायेगी क्या!!! एक गाना गाता हूँ ...चल री सजनी अब का सोचे? कजरा न बह जाये रोते-रोते। चल री सजनी अब क्या सोचे? ... 

सह यात्री भी चादर से मुँह निकाल कर मोबाइल चला रहा है। लगता है इसके मोबाइल में नेट पैक भरा है। यह मेरे किसी पुराने स्टेटस को फेसबुक में पढ़ कर लाइक कर रहा होगा। मेरे में नेट पैक नहीं है वरना मैं ये सब पोस्ट कर देता और इसे पढ़कर वह उछल कर बैठ जाता। रुकी ट्रेन पर नींद उचट ही जाती है।  ट्रेन रुक जाए तो लगता है कोई बुरी घटना घटने वाली है। सरकार गिरने वाली है और चुनाव होने वाला है। ट्रेन चलती रहे तो लगता है देश भी चल रहा है। 

ट्रेन चल दी!  वाह! मतलब अभी देश के हालात बहुत बुरे नहीं हुए। अभी छुक-छुक के बुलेट बनने की पूरी संभावना है। चाय पीने का मन कर रहा है। वह चाय वाला लड़का न जाने कहाँ चला गया जिसमें प्रधान मंत्री जैसी तेजी थी!

11.10.15

रौशनी और अंधेरा

रौशनी है
लोहे के घर में
अँधेरा है
खेतों में, गाँवों में
जब कोई छोटा स्टेशन
करीब आता है
खेतों की पगडंडियों में
दिखने लगते हैं
टार्च
माटी के घरों में
ढिबरी
पक्के मकानों में
शेफल
और...
मुझे स्टेशन का नाम पढ़ते देख
अँधेरे में डूबा स्टेशन
खिलखिला कर हंसने लगता है।
.............................................. 

सुबह की बातें-1


20 सितम्बर, 2015 

धमेख स्तूप सारनाथ के सामने बेंच पर लेटा बिन चश्मे के लिख रहा हूँ। 3-4 किमी सड़क पर और कुछ देर घास पर चलने के बाद यहाँ लेटने में खूब आनंद आता है। स्तूप पर बैठे तोतों के झुण्ड बेंच के ऊपर घने नीम के भीतर बैठ खूब टांय-टांय कर रहे हैं। बुलबुल,कोयल और भी दुनियां भर के पंछियों के कलरव के आलावा कुछ देसी आवारा कुत्तों की झाँव-झाँव भी सुनाई पड़ रही है। टहलने वालों की संख्या बहुत कम है। यहां आने के लिए 5 रुपिया टिकट का लगता है इसलिए सभी नहीं आते। तोतों का झुण्ड अभी उड़कर फिर स्तूप पर जा कर चिपक गया। हर तरफ आनंद ही आनंद बिखरा पड़ा है। कुछ मन में उतार रहा हूँ, कुछ आपसे बांट रहा हूँ। शुभ प्रभात।

धूप निकल आई है। घने नीम के वृक्षों से छन छन कर हरे घास में चिपके ओस कणों को चुपके-चुपके पी रही है। एक तिब्बत्ती लड़की अपनी छोटी बहन के साथ मेरी बेंच और स्तूप के बीच में लॉन पर बैठी योगा कर रही है। हर आसन के बाद देर तक अपनी छोटी चोटी को खींचती/  संवारती जा रही है। छोटी बहन लगातार टिपिर-टिपिर आँख हाथ नचा नचा कर तिबती भाषा में जाने क्या बतिया रही है। बड़ी भी खुश है। धूप तेज हो रही है। अब चलता हूँ। कुल्हड़ वाली मस्त चाय की तलाश में। सन्डे सारनाथ की सुबह आनंद दायक रही।

25 सितम्बर, 2015 

घने नीम के नीचे लेटना ही सुखद है, यहाँ तो नीम के कई वृक्ष हैं। दायें बाएं, दूर और दूर। नीम की शाख में तोतों के झुण्ड के झुण्ड तंय-टांय कर रहे हैं। और भी कई पंछियों के कलरव गूँज रहे हैं।  मैं घूमने, ओस में डूबे घांस में नंगे पाँव टहलने के बाद यहां धमेख स्तूप सारनाथ के लॉन में बने लम्बे चबूतरे पर लेटा हूँ। काफी देर हो चुकी है लेकिन यहां से उठने का मन नहीं कर रहा। 

एक पंछी ने जल तरंग छेड़ा है। मैं इनका नाम नहीं जानता। तोता, मैना, कौआ,कोयल,बुलबुल बस यही सब गिने चुने नाम ही जानता हूँ। जल तरंग के बीच कोयल की कूक और कौओं की काँव-काँव भी सुनाई पड़ रही है।सतियानास!  धमेख स्तूप के पीछे बने जैन मंदिर से लाऊड स्पीकर से भजन बजने लगा! उनका ईश्वर प्रसन्न हो रहा होगा लेकिन मेरे आनंद में अब खलल पहुँच रहा है। सवा सतियानास! पीछे बुध्द मंदिर से भी लाउडस्पीकर बजने लगा! बुद्धम शरणम् गच्छामी! जय हो... बुद्ध कितने प्रसन्न हो रहे होंगे! 
अब चलता हूँ। सुप्रभात।

27 सितम्बर, 2015

पंडी जी पिंजड़ेे के तोते को रटा दिए हैं-गोपी कृष्ण कहो। लाउडस्पीकर में रोज बजता रहता है लेकिन धमेख स्तूप सारनाथ के तोते नहीं कहते -"बुद्धम शरणम् गच्छामी"। गुलामी और आजादी के बीच कितना फर्क है! लॉन में दिखा भक्तों का झुण्ड। ये कह रहे थे-बुद्धम शरणम् गच्छामी।

4 अक्टूबर, 2015 

सुबह-सुबह घने नीम के वृक्षों से धमेख स्तूप तक अनवरत उड़ते रहने वाले तोते सन्डे नहीं मनाते। कोई ऑफिस नहीं, कोई छुट्टी नहीं। ये जब स्तूप से उड़कर वापस नीम की शाखों पर बैठते हैं तो कुछ कौए काँव-काँव करने लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे नास्तिक पितृपक्ष में ब्राह्मणों के भोजन का उपहास उड़ा रहे हों! तोते भी टांय-टांय कर प्रतिरोध करते हैं। 

धूप तेज हो चली है। घने नीम से अनवरत एक-एक कर पीले पत्ते झर रहे हैं। कोयल के साथ पेड़की ने खूब समा बांधा है।  ये क्या कहते हैं, कुछ समझ में नहीं आता पर यह तो तय है कि बिहार के चुनावी दंगल में लालूजी और मोदी जी की तरह कोई राग नहीं छेड़ रहे।  गिलहरियों का फुदकना बदस्तूर जारी है। लॉन में कई प्रकार के पौधे हैं मगर कोई आपस में नहीं झगड़ते। कोमल लताएँ सूखे वृक्ष के सहारे ऊपर तक चढ़ जाती हैं। कोई किसी की टांग नहीं खींचता। 

झाडू लगाने वाला आ चुका है। अब चलना चाहिए। आज की सुबह रोज की तरह आनंद दायक रही।

5 अक्टूबर, 2015 
आज एक लड़का सारनाथ में हिरणों को ब्रेड खिला रहा था। एक बड़ा पैकेट ब्रेड लिए था और तोड़-तोड़ कर खिलाये जा रहा था। हिरण ब्रेड के लिए धीरे-धीरे जमा हो रहे थे। सुप्रभात।


6 अक्टूबर, 2015
आज सुरुज नारायण रोज की तरह लालम लाल, गोलमटोल निकले। मैंने देखा उन्हें खण्डहरों के उस पार धमेख स्तूप के पीछे। फूलों ने मेरी तेज चाल को देखकर छेड़खानी करी-हैलो! आज फ़ोटू नहीं खींचोगे? बांस के की पत्तियाँ थोड़ी सजग हुईं। मैं सबको मुस्कुराकर देखते हुए आगे बढ़ चला। देसी कुत्ते झुण्ड बनाकर सरसराते हुए बगल से गुजरे। अनार के पौधों के पीछे कुत्तों के जोड़े प्यार करने लगे। तोते टांय-टांय करते नीम से उड़ चले फिर स्तूप की ओर। हिरणों के झुण्ड उदास थे। आज नहीं दिखा उनको ब्रेड खिलाने वाला लड़का। मैं जल्दी में था। सबको देख मुस्कुराते हुए चलता बना। सुप्रभात।

7 अक्टूबर, 2015 

आज न फूलों से कोई बात हुई न चिड़ियों से। कुत्ते भी नहीं दिखे। पहली बार सुना सारनाथ मृगदाव के चीतलों को बोलते हुए। बाउंड्री की जालियों के पास जा कर देखा सभी एक लाइन में सावधान की मुद्रा में खड़े हो कर जोर-जोर से बोल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि ये अपने राज्य का राष्ट्र गान गा रहे हैं! ध्यान से देखने पर समझ में आया कि ये अपने किसी भटके हुए साथी को आवाज लगा कर बुला रहे हैं। मैंने उनके आवाज की नकल की तो सब झटके से मेरी ओर देखने लगे। जब तक मैं फ़ोटू खींचता, मुँह फेर लिया।सूरुज नारायण लाल-लाल आँखे तरेरते हुए मुझ पर धूप की वर्षा करने लगे।



धमेख स्तूप पर तोते.कबूतर रोज की तरह उड़ रहे थे। मॉर्निंग वॉक वाले तेज-तेज चल रहे थे। तेज-तेज सीटी बजने की आवाज सुनाई दी तो देखा दो लड़के घास पर चलने वालों को मना कर रहे थे। पता चला इनकी ड्यूटी लगाई गई है कि लोग घास पर न चलें। सही भी है, लोगों के घास में चलने से उसकी ख़ूबसूरती बिगड़ जाती है। ख़ूबसूरती देखभाल मांगती है। यह दूर से देखने और आनंद लेने की चीज है। छेड़खानी किया तो ख़राब हो जायेगी। लोग फूलों को तो क्या, मिलने पर कलियों को भी अपने क्षणिक स्वार्थ में तोड़ कर मसल देते हैं।

इन्ही सब में खोया रहा। अभी घर आया तो याद आया कि आज तो न फूलों से कोई बात हुई न चिड़ियों से! न जाने क्या सोच रही होंगी मेरे बारे में!


12 अक्टूबर, 2015 घर से मात्र 20 मिनट कदम चाल की दूरी पर है सारनाथ बुद्ध मंदिर। प्रातः भ्रमण के साथ लोग मंदिर मे,  मैं मंदिर के बाहर चारों ओर बिखरी प्राकृतिक सुंदरता में भगवान् बुद्ध के दर्शन करता रहता हूँ। मंदिर के सामने लान में एक बड़ा सा चबूतरा है जिसमें चढ़ने के लिए बनी सीढ़ियों की रेलिंग पर बच्चे झूल रहे थे। उनकी फ़ोटू खींची तो वे खुश हो गए। चबूतरे पर प्लास्टिक बिछा कर लोग योगा कर रहे थे। बहुत से लोग थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी भंडारे की भीड़ हो! यहाँ लोग सामूहिक योगा कर के तन की चर्बी घटा रहे थे और मन की भूख मिटा रहे थे।


वहां से चलकर धमेख स्तूप के खण्डहरों वाले पार्क में आये तो मुझे देख फूलों के चेहरे प्रसन्न हो गए या सूर्यदेव की सुनहरी किरणों के प्रभाव से खूबसूरत हो गए, ठीक-ठीक कह नहीं सकता। मैंने जब एक फूल से कहा तुम बहुत खूबसूरत हो लेकिन मुझे तुम्हारा नाम नहीं मालूम! तो वह खिलखिलाकर हंसने लगा। तुम लोग हमारा नाम भी रखते हो!!! मैं उन्हें हँसता छोड़ आगे बढ़ गया। इन्हें क्या मालूम कि मनुष्य जिसे देखता है पहले उसका नाम ही रखता है और जिससे डरता है उसे भगवान मान लेता है।

घूम कर थक गया तो अब मैं लान के पत्थर पर लेटा अपना योगा कर रहा हूँ। सुन रहा हूँ चिड़ियों की बोली,  लिख रहा हूँ मोबाइल से फेसबुक पर। सामने नीम के शाख पर एक गिलहरी काले कौए से फल के लिए झगड़ रही है। सामने दूसरे पेड़ पर एक तोता और एक तोती आपस में चोंच लड़ा रहे हैं। तोता मैना की प्रेम कथाएँ तो खूब पढ़ीं पर उनको चोंच लड़ाते मैंने तो नहीं देखा। अभी एक तोतों का दूसरा झुण्ड टें टें टें टें करते हुए घने नीम में घुस गया। उसमें कितने तोते कितनी तोती होंगे,  मैं नहीं जान पाया।

घर लौटते हुए खंडहरों पर नजरें टिकीं तो ऐसा लगा जैसे इन खण्डहरों में घूमती होंगी और भी  बेचैन आत्माएँ!  लेकिन मुझे कोई दूसरा या दूसरी नहीं मिली या यह भी हो सकता है कि मिली हों, साथ-साथ घूमी हों और हमने इक दूजे को पहचाना ही न हो!



धूप तेज हो गई, अब चलना चाहिए। आनंद दायक रही संडे की सुबह। सुप्रभात खतम हो गया। अब तो शुभ दिन बोलना पड़ेगा।





नोट: फेसबुक में लिखे कुछ स्टेटस को मिलाकर यह पोस्ट बना दिया। 

4.10.15

मोबाइल

सभी जानते हैं कि मोबाइल की बैटरी खत्म होती है तो मोबाइल स्विच ऑफ हो जाता है सिवाय उनके जिनको काम के समय आपका मोबाइल  स्विच ऑफ मिलता है।  देर शाम  घर पहुँचने से पहले मोबाइल स्विच ऑफ हो जाय तो खाली-खाली, भयावह-सा लगने लगता है। ऐसा लगता है जैसे चलते-चलते यकबयक कहीं भटक गए हों। मन तमाम आशंकाओं से घिरने लगता है। अधिकारी ने किसी जरूरी काम से फोन किया और मोबाइल स्विच ऑफ पाया तो? घर वाले फोन कर रहे हों और बात न होने से परेशान हो रहे हों तो ? आपसी विश्वास का जमाना गया। स्विच ऑफ मतलब आप बहाने बना रहे हैं, काम से जी चुरा रहे हैं और सही भी कह रहे हैं तो क्या, आप 'एक नंबर के लापरवाह' तो हैं ही। 

एक वर्ष पहले दिल्ली वाले मित्र ने मोबाइल बैकअप का सुझाव दिया था। ऑनलाइन तुरत मंगा भी लिया। कुछ दिन सुख से चली जिंदगी फिर बैकअप भी खराब। अब कितनी बार खरीदा जाय बैकअप ! और किस-किस का रखा जाय बैकअप! मैं यह हर्गिज नहीं कह रहा कि मोबाइल की बैटरी खतम होना मतलब जिंदगी समाप्त होना है लेकिन कुछ समय के लिए जिंदगी के रुक से जाने का आभास तो हो ही जाता है।  

एक दिन तो हद ही हो गया । मोबाइल को ऐसे साँप सूंघ गया जैसे किसी बड़े आदमी को हार्ट अटैक हो जाता है! न बोले, न बतियाये। कितना भी प्रेम से टच करो, कोई संवेदना नहीं।  बैटरी पूरी तरह से चार्ज थी। मोबाइल की गर्मी बता रही थी कि मरा नहीं है, जिंदा है। दौड़े-दौड़े मोबाइल डाक्टर के पास भागे तो पता चला आज रविवार है। पूरे एक दिन मोबाइल की विरह वेदना में जलते रहे। उस दिन पता चला मैं मोबाइल का कितना बड़ा रोगी हो चुका हूँ! सब कुछ मोबाइल से करने की आदत पड़ चुकी है। मित्रों से बात, फोटोग्राफी, फेसबुक, ब्लॉग लेखन , व्हाट्स एप आदि-आदि ।  दूसरे दिन मोबाइल के डाक्टर ने बताया आपका मोबाइल हैंग हो गया है! अभी तक तो लैपटॉप हैंग होता था, अब यह भी!!! खैर रोग पता चला तो इलाज भी हो गया। डाक्टर ने मोबाइल ठीक कर के दे दिया मगर हाय! मित्रों के मोबाइल नंबर्स, एप्स सभी गुम। एक-एक कर सभी फीचर फिर से आने लगे और अपनी रुकी जिंदगी फिर से रफ्तार पकड़ने लगी।

अब सोचता हूँ वो भी क्या दिन थे, जब मोबाइल नहीं था। कितना समय रहता था अपने पास! सुबह घर से निकलने के बाद श्रीमती जी और शाम दफ्तर से निकलने के बाद साहब के चंगुल से पूर्ण आजादी। जब खेलने खाने, इश्क लड़ाने की उम्र थी तब तो हम पुर्जी बनाया करते और एक संदेश पहुंचाने के लिए घंटो जुगत भिड़ाया करते थे और अब जब हर ओर टुकड़े-टुकड़े जिंदगी का बयाना लिखा गया तो बैल के गले में फंसे जुए की तरह मोबाइल जेब में आ गया! दिन का चैन और रातों की नींद, दोनों हराम। आप कहेंगे मोबाइल के बड़े फायदे भी हैं। अरे! इन्हीं फ़ायदों के कारण ही तो हम इसके गुलाम बन गए। फायदे न होते सिर्फ खराबियाँ ही होतीं तो कौन इसे अपने पास फटकने भी देता?  लेकिन आप यह तो मानेंगे न कि मोबाइल ने मालिक के फ़ायदों मे इजाफा किया है तो नौकरों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं? 

3.10.15

मुर्दों की बस्ती में....

मुर्दों की बस्ती में
सुबह-सुबह शोर है,
"सत्य बोलो गत्य है
राम नाम सत्य है!"

पुरुष
अत्महत्या का खयाल छोड़
जनाजे को कांधा देने
आगे-आगे दौड़े

औरतें
रुदाली बन
मृत्यु के गीत गाने लगीं

युवा
एक पल के लिए भूल गए
बेरोजगारी का दंश

किशोर
बस्ते का बोझा फेंक
पीछे-पीछे दौड़े

डॉक्टर ने
उनके एक साथी को
मृत क्या घोषित किया
सभी अपने को
जिंदा समझने लगे !
.......
  

2.10.15

देश ठीके चल रहल हौ बापू!

जौन हो रहल हौ तउन ठीक हो रहल हौ बापू, देश ठीके चल रहल हौ बापू। आपके लोग आजो याद करत हउअन। आजो लोग कहलन - सच बोलना अच्छी बात है। गोली आजो चलत हौ। हत्या, डकैती, बलात्कार सब चौचक हो रहल हौ मगर केहू एकर प्रशंसा नाहीं करत। अपराध करे वालन के अपराधी, आजो कहल जाला। फंसले पे जेल हो जाला। नेता लोग देश के चक्कर में आजो जेल जा रहल हउलन। पहिले आजाद कराये के आरोप में जात रहलन, अब  लूटे के आरोप में जा रहल हउअन।  

सब ठीके चलत हौ बापू। दूसरे के भ्रष्ट आचरण क निंदा आजो जोर शोर से होला। दंगा होला मगर जब थम जाला त लोग कहलन कि इंसानियत क जीत भयल!

मीडिया बहुत तेज हो गयल हौ बापू! एक घंटा में केतना बलात्कार भयल बता देला। हिंसक अउर खतरनाक टाइप क बलात्कार होला त देश में खूब विरोध होला। सरकार भी कुछ दिना बदे घबड़ा जाला कि ई का भयल! फिर मीडिया कौनो दूसर 'एक औरत कई पति' जइसन चटपटा समाचार सुनाये लगsला त सबकर ध्यान ओहर बट जाला। मीडिया एक गम देला त दूसर भुला देला। सब ठीके चलत हौ बापू।

मजदूर, किसान क आज भी बड़ा सम्मान हौ। बुद्धिजीवी श्रमजीवी के बिना कइसे जीये! मुंशी प्रेमचंद क बैलगाड़ी क ज़माना गयल मगर किसान आजो आत्महत्या करत हउअन। न इनके सम्मान में कमी आयल हौ न भुखमरी में। मजदूर के दाल पियाज भले न मिले रोटी आराम से मिल जात हौ। कौनो जुगाड़ बना के खाइये लेत हौ। देश क मजदूर ताकतवर हौ बापू! तबे न एतना काम हो रहल हौ! सब ठीक चलत हौ। ए साल पानी कम परल, कुछ किसान चिल्लात हउअन-'सूखा-सूखा' बाकि सब ठीक हौ बापू।

देश क लोग चाहे जइसन हो गयल होंय लेकिन देश में लोकतंत्र बहुत मजबूत हौ। बहुमत क सरकार बन जाला। हर पांच साल में चमत्कार हो जाला।  हारे वाला बेईमान,  जीते वाला ईमानदार हो जाला। सब ठीक चलत हौ बापू। जब ले नोट में तोहार फ़ोटू अउर दू अक्टूबर क छुट्टी मिलत रही लोग आपके याद करत रहियें। आज तोहांर अउर स्व0 लाल बहादुर शास्त्री जी क जन्म दिन भिनसहरे से मनावत हई बापू। हमार चरण-स्पर्श अउर माल्यार्पण स्वीकार करा, देश ठीके चल रहल हौ।