22.8.17

भागे रे! #हवा खराब हौ!!!

कर्फ्यू वाले दिनों में बनारस की गलियाँ आबाद, गंगा के घाट गुलजार हो जाते । इधर कर्फ्यू लगने की घोषणा हुई, उधर बच्चे बूढ़े सभी अपने-अपने घरों से निकल कर गली के चबूतरे पर हवा का रुख भांपने के लिए इकठ्ठे हो जाते। बुजुर्ग लड़कों को धमकाते..अरे! आगे मत जाये!!
बनारस की गलियों में लड़कों को गली में निकलने से कौन रोक सकता था भला! घर के दरवाजे पर बाबूजी खड़े हों तो बंदरों की तरह छत डाक कर पड़ोसी के दरवाजे से निकल जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। लड़के गली के उस मोड़ तक पहुंच जाते जहाँ सड़क शुरू होती और पुलिस का पहरा चकाचक होता। जब पुलिस गली में लड़कों को दौड़ाती तो लड़के भाग खड़े होते। भागते हुए कोई दिख जाता तो जोर से चीखतेे...भाग @सड़ी के! हवा खराब हौ!!! मुसीबत के समय ही यह ज्ञान होता है कि हवा भी खराब होती है!
मास्टर साहब से पूछा..गुरुजी! हवा बहती है कि बहता है? गुरुजी भोजपुरी बेल्ट के थे, हँस कर बोले..हवा न बहती है न बहता है, हवा त बहेला! मुझे लगा वाकई हवा बड़ी खतरनाक चीज है। धीरे-धीरे ज्ञान हुआ हवा में ऑक्सीजन भी होता है, कार्बन भी। जहरीली भी होती है, प्राणदायी भी। एक कविता पढ़ी थी अपने पाठ्यपुस्तक में जिसमें हवा सूरज से भिड़ जाती है और एक राह चलते पथिक की शामत आ जाती है। यह कवि की निच्छल भावना थी। हर आदमी कवि नहीं होता और हर आदमी साधारण पथिक भी नहीं होता जिसे धूप और हवा अपनी उँगलियों पर नचाती हैं। धरती में ऐसे भी आदमी हैं जो धूप और हवा दोनो को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेते हैं!
दूसरों की हवा खराब करना और अपनी बनाना राजनीति का मूल मंत्र है। राजनीतिज्ञ से बड़ा कोई देशभक्त नहीं होता क्योंकि देशभक्ति से बड़ी कोई राजनीति नहीं होती। हवा बनाने से बनती है, बिगाड़ने से बिगड़ती है। विपक्ष प्रायः सरकार के हर निर्णय में कमी ढूँढ लेता है और सरकार अपने हर निर्णय को सही ठहराती है। सरकार का हर निर्णय सही और विपक्ष की हर आलोचना राजनीति से प्रेरित मानी जाती है। हवा का रुख भांप कर निर्णय इस प्रकार से लेना कि भले देश का आर्थिक नुकसान हो, उसके वोटर प्रसन्न रहें तो ऐसे निर्णय को राजनैतिक हवाबाजी कहते हैं।
दूसरों की हवा खराब करने और अपनी बनाने का खेल छोटे स्तर से अंतर्राष्टीय मंच तक चलता रहता है। विपक्ष की हवा खराब कर सत्ता हासिल करने के बाद राष्ट्राध्यक्ष की कोशिश होती है कि अंतर्राष्टीय स्तर पर दुश्मन देश की हवा खराब की जाये और मित्र देश की हवा बनाई जाये।
इस वक्त भारत में विपक्ष की और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की हवा खराब है। तीन तलाक के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद देश के महिलाओं के पक्ष में हवा बन गई है। अमेरिकी  राष्ट्रपति की ताजा विदेश नीति के कारण तो पाकिस्तान की हवा गुम हो गई लगती है। चीन हवा का रुख मोड़ना चाहता है। यही हाल रहा तो एक दिन आतंकवादी भागते हुए चिल्लाते मिलेंगे...भागे रे! हवा खराब हौ।

18.8.17

नदी

नदी
अब वैसी नहीं रही

नदी में तैरते हैं
नोटों के बंडल, बच्चों की लाशें
गिरगिट हो चुकी है
नदी!

माझी नहीं होता
नदी की सफाई के लिए जिम्मेदार
वो तो बस्स
इस पार बैठो तो
पहुँचा देगा
उस पार

नदी
के मैली होने के लिए जिम्मेदार हैं
इसमें गोता लगाने
और
हर डुबकी के साथ
पाप कटाने वाले

पाप ऐसे कटता है?
ऐसे तो
और मैली होती है नदी।

तुम क्या करोगे मछेरे?
अपने जाल से
नदी साफ करोगे?
तुम्हारे जाल में
छोटी, बड़ी मछलियाँ फसेंगी
नदी साफ होने से रही।

नदी को साफ करना है तो
इसके प्रवाह को, अपने बन्धनों से
मुक्त कर दो
चौपायों को सुई लगाकर,  दुहना बन्द करो
जहर से
चौपाये ही नहीं मरते
मरते हैं
गिद्ध भी

नदी
तुम्हारी नीतियों के कारण मैली हुई है
नदी
तुम्हारी नीतियों के कारण
गिरगिट हुई है
अब यह तुमको तय करना है
कि अपना
हाथ साफ करना है या
साफ करनी है
नदी।

15.8.17

सृजन और संहार का मौसम

सच है
यह मौसम
सृजन और संहार का है।

खूब बारिश होती है
इस मौसम में
लहलहाने लगते हैं
सूखे/बंजर खेत
धरती में
अवतरित होते हैं
झिंगुर/मेंढक/मच्छर और..
न जाने कितने
कीट,पतंगे!

आंवला या कदम्ब के नीचे
बैठ कर देखो
हवा चली नहीं कि
टप-टप
शाख से झरते हैं
नन्हे-मुन्ने
फल।

सब
तुम्हारी तरह
नहीं कर पाते
यमुना पार
डूब जाते हैं
बीच मझदार

सच है
असफल हो जाते हैं
सभी
मानवीय प्रयास
जब
फटते हैं बादल
आती है
बाढ़।

सच है
यह मौसम
सृजन और संहार का है।

फिर?
काहे को बने हो देवता?

कान्हा! जाओ!!
अभी पैदा हुए हो
अपनी जान बचाओ
खूब रासलीला करो
मारोगे कंस को?
जीवित रहे
तो हम भी
बजा देंगे
ताली।
........

13.8.17

छेड़छाड़

शायद ही कोई पुरुष हो जिसने किसी को छेड़ा न हो। शायद ही कोई महिला हो जो किसी से छिड़ी न हो। किशोरावस्था के साथ छेड़छाड़ युग धर्म की तरह जीवन को रसीला/नशीला बनाता है। छेड़छाड़ करने वाले लेखक ही आगे चलकर व्यंग्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। यश प्राप्त करने के बाद भी व्यंग्यकार बाहर से जितने शरीफ भीतर से उतने बड़े छेडू किसिम के होते हैं। बाहर दाल नहीं गलती तो घर में अपनी घरानी को ही छेड़ते पाये जाते है। बात गलत लग रही हो तो बड़े-बड़े व्यंग्यकारों की हास्य के नाम पर परोसी गई व्यंग्य कविताएँ ही पढ़ लीजिये। कितने चुभते तीर छोड़े हैं इन्होंने अपनी पत्नियों पर! क्या किसी स्त्री को अपनी तुलना प्रेस वाली स्त्री से करते सुन अच्छा लगा होगा? बिजली के करेंट से तुलना करते अच्छा लगा होगा? शरीर की बनावट, मोटापा..बाप रे बाप! क्या-क्या नहीं लिखा इन व्यंग्यकारों ने! बाहर हिम्मत नहीं पड़ी तो घर में ही चढ़ाई कर ली।

महिलाएं भी अब आगे बढ़ कर व्यंग्य लिख रही हैं। कब तक छिड़ती रहतीं? उनका दर्द क्या पुरुष की कलम लिखती? महिलायें अब पलटवार कर रही हैं। वह कवि सम्मेलन सुपर हिट होता है जिसमें कोई महिला कवयित्री मंच पर खड़े होकर खुले आम मर्दों को छेड़ देती है! जिस कवि सम्मेलन में देर तक छेड़छाड़ चलती रहती है, वहाँ से दर्शक उठने का नाम ही नहीं लेते। ये शब्दों के खिलाड़ी होते हैं। लपेट कर कुछ भी कह दें, क्षम्य होता है। एंटी रोमियों के दस्ते तो नौसिखियों पर कहर ढाते हैं। पके पकाये तो छेड़छाड़ के बाद सम्मानित होते हैं।

जिंदगी के कई रंग हैं। छेड़छाड़ पर शुरू भले हो जाय, खत्म नहीं होती। जब खुद कुरुक्षेत्र में खड़ा होना पड़ता है तो हाथ-पैर फूल जाते हैं। आटे-दाल का भाव मालूम पड़ता है। कौन है अपना, कौन पराया तजबीजते-तजबीजते कृष्ण याद आने लगते हैं। कृष्ण की बांसुरी नहीं, गीता याद आती है। उपदेश सुनाई पड़ता है..हानी, लाभ, जीवन, मरण, यश, अपयश हरि हाथ!

जीवन की विद्रूपताओं की समझ, सामाजिक और राष्ट्रीय चिंतन की ओर कब धकेल देती है पता ही नहीं चलता। मन का आक्रोश कागज में उतरने लगता है। छेड़छाड़ करने वाला, व्यंग्यकार भी बन जाता है।

छेड़छाड़ करने वाला वक्त के साथ कैसे तो बदलता जाता है! हर चीज जो उसके पहुँच से दूर होती है ढूँढ-ढूँढ कर तीर चलाता है। ना मिलने पर तंज कसता है, मिलने पर यशगान भी करता है। हारता है तो अपना गुस्सा घर पर उतारता है, जीतता है तो आरती भी उतारता है। कोई-कोई कर्म योगी हो सकता है, कितने तो भोगी बन जाते हैं। छेड़छाड़ वह गुण है जो गोपाल को #कृष्ण, लोभी को #आशाराम बना देता है।