मंदिर दिखता
पुजारी दिखते
पंडे दिखते हैं
मंदिर के ऊपर फहराते
झंडे दिखते हैं
भक्तों की लाइन लगती है
गंगा के तट पर
लोटे में गंगा
काँधे पर
डंडे दिखते हैँ।
कहीं गंजेड़ी
कहीं भंगेड़ी
कहीं भिखारी
कहीं शराबी
लोभी, भूखे, भोगी दिखते
बगुले भी योगी
गंगा तट पर भाँति-भाँति के
चित्तर दिखते हैं
सभी चरित्तर मार के डुबकी
पवित्तर दिखते हैं।
कोई पूरब से आता है
कोई पश्चिम से
कोई उत्तर से आता है
कोई दक्खिन से
सब आते हैं पुन्य लूटने
कुछ आते मस्ती में
कुछ सीढ़ी पर उड़ते दिखते
कुछ डूबे कश्ती में
देसी और विदेशी
जोड़े दिखते हैं
धोबी के गदहे भी आकर
घोड़े दिखते हैं।
मिर्जा भाई दाने देते
रोज़ कबूतर को
और रामजी के दाने
कौए खाते हैं
पुन्नू साव खिला रहे हैं
आंटे की गोली
मछली उछल-उछल कर खाती
है कितनी भोली!
उसी घाट पर एक मछेरा
जाल बिछाये है
पाप पुण्य की लहरें लड़तीं
गंगा के तट पर
रोज़ चिताएँ जलती रहतीं
गंगा के तट पर।