पाण्डे जी का चप्पल
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जैसे सभी के पास होता है, ट्रेन में चढ़ने समय पाण्डे जी के पास भी एक जोड़ी चप्पल था। चढ़े तो अपनी बर्थ पर किसी को सोया देख, प्रेम से पूछे.…भाई साहब! क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ? वह शख्स पाण्डे जी की तरह शरीफ नहीं था। हाथ नचाते हुए, मुँह घुमाकर बोला...यहाँ जगह नहीं है, आगे बढ़ो! अब पाण्डे जी को भी गुस्सा आ गया और जोर से बोले..यह मेरी बर्थ है। अब वह आदमी एकदम से सीरियस हो गया! समझ गया कि मुसीबत आ गई है। थोड़ा सिकुड़ते हुए बोला..बैठ जाइए। एक तो रात साढ़े ग्यारह बजे आने वाली ट्रेन तीन घण्टे लेट, रात ढाई बजे आई उप्पर से यह आदमी! पाण्डे जी और जोर से बोले...पहले आप पूरी तरह से उठ जाइए और कोई दूसरी खाली जगह तलाशिए। शोर सुनकर दूसरे यात्रियों की नींद डिस्टर्ब हो रही थी। तरह-तरह की आवाजें आने लगीं..
अरे भाई साहब! जब यह आपकी बर्थ नहीं है तो उठ क्यों नहीं जाते?, अजीब आदमी है! शराफत से बोलो तो कोई समझता ही नहीं! आदि आदि।
परिस्थियाँ अपने प्रतिकूल पा कर वह आदमी खिसियाते/ बड़बड़ाते हुए उठा..अब साठ किमी बाकी था, लीजिए अपनी सीट, हम खड़े-खड़े चले जाएंगे। पाण्डे जी भी बड़बड़ाये... बड़ी कृपा है आपकी जो इतनी जल्दी समझ गए। सहयात्री भी बड़बड़ाए..अब सो जाइए आप भी, हमको भी सोने दीजिए।
घण्टों प्लेटफॉर्म पर ट्रेन की प्रतीक्षा से थके मादे पाण्डेजी को जैसे ही बर्थ मिली, झोला बगल में दबा कर, गहरी नींद सो गए।
सुबह उठकर जब बाथरूम जाने के लिए चप्पल ढूँढने लगे तो चप्पल गायब! वह यात्री भी नहीं दिखा जिससे झड़प हुई थी। इधर-उधर निगाहें दौड़ाई तो देखा, 4,5 बर्थ आगे बाएँ पैर का चप्पल अकेले बिसुक रहा है! विश्वास जगा, एक है तो दूसरा कहाँ जाएगा!!! एक चप्पल कोई पहन कर थोड़ी न ले जाएगा, भूल से पहनकर चला गया हो तो भी उसका तो होगा, कम से कम नङ्गे पाँव घर तो नहीं जाना पड़ेगा। लेकिन हाय! पाण्डेजी पूरी बोगी क्या, अगल बगल की सभी बोगियाँ छान आये, दाहिने पैर के चप्पल को नहीं मिलना था, नहीं मिला। कूड़े बीनने वाले किशोर को भी प्रलोभन दिया...मेरा एक चप्पल नहीं मिल रहा, ढूँढ दो तो तुम्हें ईनाम देंगे। लड़के ने बाएँ पैर के चप्पल को गौर से देखा और खून जलाया..ई त एकदम नया लगत हौ! फिर बिजली की फुर्ती से कोना-कोना ढूँढा और दस मिनट में अपना फैसला सुना दिया...चप्पल ट्रेन में नहीं है, किसी ने जानबूझ कर बाहर फेंक दिया है।