एक समय था जब मेरे जैसे निर्धन मध्यमवर्गीय परिवार का बच्चा भी सरकारी स्कूल में न्यूनतम फीस देकर, बिना ट्यूशन किये, पढ़ाई पूरी कर सकता था और थोड़ी मेहनत करके नौकरी पा सकता था। मुझे लगता है अब यह अत्यंत कठिन है। यदि यह सच है तो मानना पड़ेगा कि हम लोकतंत्र को दोनो हाथों से गहरे गढ्ढे में धकेलते चले जा रहे हैं। मुझे यह भी लगता है कि भारत के लोकतंत्र में एक गरीब व्यक्ति प्रधान मंत्री तो बन सकता है मगर डाक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता।
गणतंत्र दिवस के दिन ध्वजा रोहण के लिए एक सरकारी स्कूल में जाने का सौभाग्य मिला। इतने बड़़े सरकारी स्कूल में, गणतंत्र दिवस समारोह के दिन विद्यार्थियों की इतनी कम संख्या देखकर गहरी निराशा हुई। मैने प्रधानाचार्य महोदय से इसका कारण जानना चाहा तो उन्होने बताया कि एक तो रविवार के दिन 26 जनवरी पड़ गया दूसरे आज ठंड भी बहुत ज्यादा है! यह उत्तर और भी निराश करने वाला था। नई पीढ़ी क्या इतनी जल्दी भूल गई कि हमारे वीर जवानो ने अपने लहू से आजादी लिखी है!
अवसर मिला तो मैने बच्चों से पूछा-बच्चों बताओ 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस क्यों मनाते हैं? एक बच्चे ने उत्तर दिया-क्योंकि आज के दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। सभी ने तालियाँ बजाईं। मुझे भी खुशी हुई। मैने बच्चों से फिर पूछा-26 जनवरी के दिन ही संविधान क्यों लागू हुआ था 25 जनवरी या 27 जनवरी को दिन क्यों नहीं? इसका उत्तर बच्चों के पास नहीं था। मैने उन्हें बताया कि 26 जनवरी, सन् 1930 को रावी नदी के तट पर कांग्रेस के अधिवेशन में भारत के प्रथम प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वतंत्रता की शपथ ली गई थी। भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत को चलाने के लिए एक संविधान की आवश्यकता महसूस की गई। बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की अध्यक्षता में एक समीति का गठन हुआ। इसे तैयार होने में दो वर्ष लग गये। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अंगीकृत किया गया। संविधान अंगीकृत तो कर लिया गया लेकिन अब प्रश्न उठा कि इसे लागू कब किया जाय ? भारत के महान सपूतों ने जिन्होने हमे आजादी दिलाई, यह तय किया कि सविंधान उस दिन लागू किया जाय जब हमने पूर्ण स्वतंत्रता की शपथ ली थी। 26 नवम्बर, 1949 के बाद आने वाली तिथि 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया। 26 जनवरी, 1950 से भारत प्रभुत्व संपन्न स्वतंत्र गणराज्य बना। यही कारण है कि 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।
समारोह के बाद घर लौटते वक्त कभी गुनगुनाता-तीन रंग ने सात रंग के सपने बुने। सपने, सच होंगे अपने। कभी सोचता- हम तो ये सात रंग तभी देख पाते हैं जब आकाश में यदा-कदा बारिश के बाद इंद्रधनुष निकलता है! वे कौन हैं जिन्होने हमारे सभी सपने चुरा लिये ?