25.4.10
रिफ्यूजी
प्रस्तुत कविता वर्ष २०१०-११ जनगणना अभियान को समर्पित है-
रिफ्यूजी
आधी रात
ट्रेन से उतरकर
दबे पाँव
पसर जाती है प्लेटफॉर्म पर
पूरी की पूरी सभ्यता।
अलसुबह
नीम के पेंड़ से दातून तोड़ते वक्त
चौंककर जागता है---बुधई !
मन ही मन बुदबुदाता है-
"कहाँ से आय गयन ई डेरा-तम्बू------
गरीब लागत हैन बेचारे।"
धीरे-धीरे
सहिष्णुता के साए तले
दूध में पानी की तरह
घुलने लगते हैं
रिफ्यूजी !
फिर नहीं रह जाते ये विदेशी
बन जाते हैं
पूरे के पूरे स्वदेशी।
समाजशास्त्र कहता है-
बूढ़ी सभ्यता
धीरे-धीरे बन जाती है
देश की संस्कृति।
संस्कृति का ऐसा विस्तार
परिष्कृत रूप
सिर्फ भारत में ही देखने को मिलता है।
इसे यों ही स्वीकार करने के बजाय
अच्छा है खोल दें
जगंह-जगंह
स्वागतद्वार
भूखी नंगी मानवता के लिए !
मानवता के नाम पर
धर्म के नाम पर
इन्हें अंगिकृत करने के लिए
दोनो बाहें फैलाए
खड़े हैं
बहुत से बुध्दिजीवी--------!
व्यर्थ ही देश को
सीमाओं में बांधने से भी
क्या लाभ ?
18.4.10
घर
पहले घर में बच्चे रहते
और रहती थीं
दादी-नानी
गीतों के झरने बहते थे
झम झम झरते
कथा-कहानी
घुटनों के बल सूरज चलता
चँदा नाचे
ता ता थैया
खेला करती थी नित संध्या
मछली-मछली
कित्ता पानी
सुग्गे के खाली पिंजड़े सा
दिन भर रहता
तनहाँ-तनहाँ
शाम ढले अब सूने घर में
बस से झरते
बस्ते बच्चे
पहले घर में कमरे होते
अब कमरे में घर रहता है
रहते हैं सब सहमें-सिकुड़े
हर आहट से डर लगता है
और अगर घर में कमरे हों
दादी-बच्चे
सब रहते हों
अलग-थलग जपते रहते हैं
अपनी-अपनी
राम कहानी
नए जमाने के हँसों ने
चुग डाले
रिश्तों के मोती
और पड़ोसन से कहती है
दादी फिर
आँसू को पानी
11.4.10
कार्यालय
कार्यालय में सो रहा है कुत्ता
बकरियाँ आती हैं
बाबुओं के सीट के नीचे
सूखे पान के पत्तों को चबाकर
चली जातीं हैं
अधिकारी आते हैं और चले जाते हैं
लोग आते हैं और चले जाते हैं
काम नहीं होता।
वह कुछ नहीं होता जो होना चाहिए।
अधिकारी है तो बाबू नहीं होता
बाबू है तो अधिकारी नहीं होता
दोनों हैं तो फाइल नहीं होती
फाइल है तो मूड नहीं होता
मूड है, फाइल है, बाबू है, अधिकारी है,
तब वह नहीं है जिसकी फाइल है
वह नहीं है तब कुछ नहीं है।
सब कुछ होना और काम होना
संभावना विग्यान का शिखर बिन्दु है।
फाइल रूपी पिंजड़े में कैद हैं-
न जाने कितनी जिन्दगी-संवेदनाएं- आशाएँ।
लोग आते हैं-
कुशल बहेलिए की तरह पिंजड़ा खोल कर
बाबू फेंकता है चारा
सौभाग्य रूपी चिड़िया
मरने नहीं पाती।
बकरियाँ आती हैं
पान के पत्तों के साथ चबाकर चली जाती हैं
लोगों के ख्वाब।
कार्यालय में सो रहा है कुत्ता
उसके साथ सो रहा है-
देश का भविष्य।