वैसे तो अमेरिका का देशज फूल है सूर्यमुखी का फूल लेकिन अब बहुत से देशों में पाया जाता है। अपने नाम को सार्थक करता हुआ यह हमेशा सूरज की ओर झुका-झुका, सूरज को देख, खिला-खिला दिखता है। इसके बीज तोतों को बेहद प्रिय हैं। इन्हीं बीजों को खाने के लिए ये प्रायः फूलों पर मंडराते दिख जाते हैं।
धमेख स्तूप पार्क, सारनाथ के एक छोटे से जमीन के टुकड़े में इनके पौधे लगे हैं। प्रातः भ्रमण के समय, सूर्योदय के साथ इन पर मंडराते तोते दिखने लगते हैं। ये तोते घने नीम के वृक्षों के खोह में कहीं घोंसला बनाकर रहते हैं लेकिन सूर्योदय के साथ कभी स्तूप के ऊपर, कभी फूलों के ऊपर मंडराते दिख जाते हैं। प्रातः भ्रमण करते समय सूर्यमुखी के फूलों पर मंडराते तोतों को देखकर मुझे सरकारी कार्यालयों में बाबुओं के इर्द गिर्द चक्कर लगाने वाले लोग याद आ जाते हैं। अब ये तोते याद आए तो उल्लू भी याद आने लगे!
सरकारी कार्यालयों में कई प्रकार के बाबू पाए जाते हैं। कुछ तो सूरजमुखी के फूलों की तरह खिले-खिले दिखते हैं। सूर्यमुखी के फूल तो सूरज की ओर झुके चले जाते हैं, ये अधिकारी को देख उनकी ओर खिंचे चले जाते हैं! अधिकारी के कमरों से निकलने के बाद ये और भी खिले-खिले नजर आते हैं! दूसरे प्रकार के वे होते हैं जिनको अधिकारी आते ही घंटी बजाकर अपने कमरे में बुलाता है और उन पर दिन भर के काम का बोझा लाद देता है या पिछले बताए गए काम के बारे में पूछता है और काम को ठीक से न करने के लिए डांट पिलाता है। ये दुखियारे तो उल्लू की तरह अधिकारी के कमरे से बुझे-बुझे निकलते हैं। सूरज निकलने के बाद जैसे उल्लू बुझा-बुझा रहता है वैसे ही कुछ बाबू अधिकारी को देख मुर्झा जाते हैं।
हमारा ध्यान अभी उल्लुओं पर नहीं, सूर्यमुखी के फूलों की तरफ़ है। खिले-खिले फूलों की तरह खिले-खिले सरकारी बाबू सबको अच्छे लगते हैं। जैसे सूर्यमुखी के फूलों के बीज के लिए सुबह-सुबह फूलों पर तोते मंडराने लगते हैं वैसे ही ऑफिस खुलते ही कुछ बाबुओं के इर्द गिर्द लोग जमा होना शुरू हो जाते हैं! जैसे कुछ बाबू सूर्यमुखी के फूलों की तरह खिले-खिले दिखते हैं वैसे ही इनके इर्द गिर्द मंडराने वाले लोग भी तोतों की तरह टांय-टांय करते रहते हैं। इन बाबुओं के पास भी सूर्यमुखी के बीजों की तरह कुछ चुंबकीय आकर्षण होता होगा जिसकी तलाश में ये लोग ऑफिस खुलते ही इनकी ओर मंडराने लगते हैं।
उल्लुओं के पास कम लोग ही जाना पसंद करते हैं। सूर्योदय के साथ जैसे उल्लू बुझे-बुझे रहते हैं, अधिकारी के कमरे से निकलने के बाद कुछ बाबू एकदम से दुखी-दुखी दिखते हैं। अब जो पहले से मुरझाया हो, उसके पास कौन जाना चाहेगा? रात में उल्लू सुखी रहता है लेकिन दिन में किसी के आने की आहट से भी बेचैन हो जाता है। इसीलिए कुछ उल्लू रात में काम करते हैं, शायद इसी से खुश होकर लक्ष्मी ने इनको अपना वाहन बना रखा है। जिस पर लक्ष्मी की कृपा हो उस पर अधिकारी की शेर गुर्राहट का क्या भय!
सूरज का उगना, सूरजमुखी के फूलों का सूर्य की ओर आकर्षित होना, तोतों का बीजों के लोभ में सूर्यमुखी के फूलों के इर्द गिर्द मंडराना और बीज की तलाश में आए तोतों से अपना जिस्म नुचवाना, उल्लुओं का अंधेरे में देखना, दिन में अंधे होकर लक्ष्मी की आराधना करना शास्वत सत्य है। कार्यालय में कार्य करने की प्रवृत्ति, संसाधन बदल सकते हैं लेकिन उल्लू और सूरजमुखी के फूल तो हमेशा पाए जाएंगे। जब तक सूरजमुखी के फूल हैं, सूरजमुखी पर मंडराने वाले तोते भी दिखते रहेंगे।
सूरजमुखी के फूलों को समझना चाहिए कि तोते उनके पास सिर्फ इसलिए आते हैं कि उन्हें उनसे नहीं, उनके बीजों से प्रेम है। बीजों का खत्म होना मतलब समूल नष्ट हो जाना। अधिकारियों को देखकर खिलें मगर हमेशा यह याद रहे कि ये तोते उनके मित्र नहीं हैं।
https://youtu.be/Olkq4om9un8