जीजा और साले ने मिलकर शहर से दूर, एक सुनसान इलाके में, मकान बनाने की इच्छा से, तीन बिस्वे का एक प्लॉट खरीदा। मिलकर खरीदने के पीछे कई कारण थे। पहला कारण तो यह कि दोनो की हैसियत इतनी अच्छी नहीं थी कि अकेले पूरे प्लॉट का दाम चुका सकें। दूसरा कारण यह कि सुनसान इलाके में दो परिवार साथ होंगे तो दोनो को अच्छा पड़ोसी मिल जाएगा। प्लॉट खरीदते समय दोनो के मन में अच्छे पड़ोसी मिलने पर होने वाले फायदों के लड्डू फूट रहे थे।
किसी को कहीं जाना होगा तो चाभियों का गुच्छा पड़ोस में उछाल कर चल देंगे। कभी कोई मेहमान आ गया और उसी समय घर में दूध खतम हो गया तो पड़ोस से मांग कर चाय बना लेंगे। रात के समय कोई बीमार हो गया तो दो परिवार मिल कर अस्पताल पहुँचा देंगे। दो परिवारों को साथ देखकर दूसरे पड़ोसियों को भी आँखें दिखाने की हिम्मत नहीं होगी। अच्छा पड़ोसी भाग्य से मिलता है। दुष्ट मिल गया तो जीवन नरक हो जाता है। सामने पंडित जी के बगल का प्लॉट जब से एक मुसलमान ने खरीदा है, पंडित जी की नींद उड़ी हुई है। कह रहे थे..मियाँ बकरा काटेगा और खा कर, हड्डी मेरे घर के सामने फेंकेगा! अब तो जीवन नरक हो गया। इसलिए अच्छा है कि हम लोग साथ-साथ मकान बनाकर रहें। इन्हीं सब अच्छे पड़ोसी के उच्च विचारों और दुष्ट पड़ोसी के भय का गान करते हुए, आर्थिक मजबूरी के कारण दोनो ने मिलकर तीन बिस्वे के प्लॉट को आधा-आधा अपने अपने नाम रजिस्ट्री करा कर, चारों ओर से घेरवाकर, अगल-बगल दो गेट लगवा दिए। बाहर से देखने में दो प्लॉट और भीतर से एक।
प्लॉट खरीदे कई वर्ष बीत गए। प्लॉट खरीदते समय लिए गए कर्ज भी चुकता हो गए और दोनो के पास कुछ पैसे भी जमा हो गए। दोनो किराए के मकान में रहते और अपने घर का स्वप्न देखते। दोनो बैंक और एल आई सी से हाउसिंग लोन लेने के सभी तरीके खंगाल चुके थे। इन्तजार था तो बस इतना कि अगला मकान बना कर रहने लगे तो हम भी शुरू करें। पहल कोई नहीं करना चाहता था। दोनो पहले आप, पहले आप कहते हुए एक दूसरे को मकान बनाने के लिए उकसाते रहते।
दोनो गुणा गणित लगाते। मकान बनवाने के लिए सबसे पहले पानी चाहिए। पानी के लिए बोरिंग कराना होगा। एक लाख के आस पास तो बोरिंग में ही लग जाएंगे। अगला बोरिंग कराए तो अपना यह पैसा शुद्ध रूप से अभी तो बच ही जाएगा! मकान बनने के बाद धीरे धीरे अपनी भी बोरिंग करा लेंगे। अगला मकान बनाकर रहने लगेगा तो हम उसी के घर में रह कर अपना भी मकान बना लेंगे! दोनो निम्न आय के साझीदार, अपनी अपनी आर्थिक मजबूरियों के कारण, छोटे-छोटे क्षुद्र स्वार्थ पालते और मकान बनाने के स्वप्न देखते।
जब आप अपने मित्र से या रिश्तेदार से छोटे-छोटे लाभों के लिए चालाकियाँ करते हैं तो आपकी हर चालाकी अगला भी खूब समझ रहा होता है। आपके सम्मान में या रिश्ते के संकोच में आपके मुख पर भले कुछ न कहे, मन ही मन गुस्से से तड़फ रहा होता है। मकान बनने और अच्छा पड़ोसी बनने से पहले ही दोनो के मन में कई गाँठें पड़ती चली गईं। जीजा को कोसते हुए, आखिर में हार कर साले साहब ने मकान बनवाना शुरू किया और कुछ ही महीने बाद, देखा देखी जीजा जी ने भी मकान बनवा लिया। दोनो के मन में जो आग लगी थी उसमें घी का काम किया दोनो मकानों के बीच में उठने वाली अलगौजी की ऊँची दीवार ने! एक ने छः फुट ऊँची करी तो दूसरे ने आठ फुट। जितनी गहरी नींव धँसी हो सीने में, उतनी ऊँची उठ जाती हैं दीवारें। रही सही कसर दूसरे पड़ोसियों ने पूरी कर दी। अच्छे पड़ोसी बनने का स्वप्न धरा का धरा रह गया। दोनो अच्छे रिश्तेदार भी न रहे। वैसे ही एक दूसरे के दुश्मन हो गए जैसे बंटवारे के बाद दो भाई, भारत और पाकिस्तान बन जाते हैं। यह तो अच्छा हुआ कि मरने मारने से पहले दोनो को रोजी रोटी के चक्कर मे अलग-अलग शहरों में बसना पड़ा और कालांतर में दोनो को अपनी भूल का एहसास हो गया। रहीम दास लाख कहें लेकिन सुनता कौन है?
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय।।
झगड़े में दोष किसका? जाति? धर्म? यहाँ तो न जाति अलग थी और न धर्म ही अलग था! दोनो के बीच रोटी-बेटी का नाता था। क्या हम स्वयं खुद के दुश्मन नहीं हैं? क्या कभी हमने अपनी हानी उठाकर दूसरों का हित करने की कोशिश की है? दूसरों को कब दो पड़ोसियों की मित्रता सुहाती है? वे तो हमेशा इसी ताक में रहेंगे कि दोनो भाई आपस में झगड़ते रहें जिससे हमारा लाभ हो। पड़ोसी के कुत्ते जब आप पर भौंकते हैं तो आपको बुरा लगता है। तो क्या जब आपके कुत्ते पड़ोसी पर भौंकते हैं तो वहाँ फूलों की बरसात होती है? क्या अच्छा पड़ोसी होना किसी एक की ही जिम्मेदारी है?
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