28.7.15

श्रद्धांजलि



मैं तुम्हें
श्रद्धांजलि देना चाहता था

ढूँढता रहा गूगल में
तुम्हारा कोई ऐसा चित्र
जो दिखा दे तुम्हें
पूरा
जिसे अपलोड कर
नीचे लगा दूँ
एक जलते हुए दिये का चित्र भी

तुम्हारे हाथों में थमा दूँ
मिसाइल
वीणा
या कोई पुस्तक

मगर गुरु!
तुम मिले ही नहीं
किसी एक चित्र में
सम्पूर्ण!

फिर मैं
तुम्हारे सन्देश याद करने लगा

तुम कहते थे
सपने वो नहीं
जो नींद में दिखते हैं
सपने वो हैं
जो तुम्हें सोने नहीं देते!

तुम कहते थे
गिरने का मतलब है
चलने का
पहला सबक सीखना!

तुम कहते थे
अपने काम को खूब लगन से करो
पहली विजय के बाद चुप हो कर मत बैठो
लोग यह न समझ बैठें कि तुम्हारी विजय
सिर्फ किस्मत की बात थी!

तुम कहते थे
यदि अपने कर्तव्यों को सलाम करते हो तो
किसी दुसरे को सलाम करने की
आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी
यदि अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ते हो
तो तुम्हें
सबको सलाम करना पड़ेगा!

तुम कहते थे
मेरे मरने के बाद छुट्टी मत मनाना
बल्कि और मेहनत से काम करना!

तुम कहते थे...
बहुत कुछ कहते  थे गुरु!
सच लगता है
अच्छा लगता है
जो तुम कहते थे
तुमने इन्ही राहों पर चलकर
उंची उड़ान भरी
तुम्हें सलाम करता हूँ
प्यार करता हूँ
मगर गुरु!
सरल नहीं है
तुम्हें सच्ची
श्रद्धांजलि देना!

20.7.15

मानसून और नागपंचमी का त्योहार

  

नागपंचमी में दंगल खूब होते हैं
सर्पों को सुनाई नहीं पड़ता मगर वे नाचते हैं, सपेरे की बीन पर!
महुअर भी होते हैं
दो सपेरे
एक दूसरे को मंत्रों से बांधते हैं
एक गिरता है, दूसरा गर्व से सीना ताने अखबार वालों की तरफ देखता है!
दर्शक ताली बजाते हैं
मुझे तो नौटंकी लगती है
मगर बहुतों को आनंद आता है
बेसबरी से प्रतीक्षा करते हैं
कब आएगा
मानसून और
नागपंचमी का त्योहार!    

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16.7.15

प्रेम

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

माँ की ममता
पाई हमने
पिता का प्यार मिला
बहन-भाइयों
ने भी जमकर
प्यार दुलार किया
जिस मटके में
प्यार धरा था
मटका फूट गया
जीवन की आपाधापी में
दिल ही टूट गया
अवगुन चित न धरो

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

रीत गया घट
सूख गया मन
बेचैनी छाई
प्रीत किया पर
मीत न पाया
सब थे हरजाई
दिल में प्यार भरो

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

सुबह जहाँ से
चले शाम को
वहीं लौट आना
रात अंधेरी
हुई सो गए
फिर उठकर चलना
बेड़ा पार करो

प्रभु जीsss
हमसे प्रेम करो।

फूल बन गईं
कलियाँ सारी
तुमने प्यार किया
सूखी धरती
हरी-भरी है
तुमने प्यार किया
सबके कष्ट हरो

प्रभुजीsss
हमसे प्रेम करो।
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11.7.15

अनोखा देश


अभी थोड़ी देर के लिये झपकी लग गई थी। इतने में एक निराले देश में घूम आया। वहाँ की जनता यह जानकर हैरान रह गई कि हमारे देश मे बच्चों को पढ़ाने, परिवार के सदस्यों का इलाज कराने, शादी कराने और घर बनाने में अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं! मुझे यह जानकर हैरानी हुई क़ि वहाँ ये सभी खर्च वहां की सरकार करती है!

उस देश में सारे खर्च बैंक के माध्यम से ही किये जा सकते थे। नकदी किसे कहते हैं, वहाँ के लोग जानते ही नहीं थे। बैंक में जमा धन की भी एक निर्धारित सीमा थी। इससे अधिक धन जमा होते ही आयकर के रूप में पैसा सरकारी खजाने में अपने आप ट्रांसफर हो जाता था। वे उतने सम्मानित नागरिक कहलाते थे जितने अधिक धन सरकारी खजाने में जमा होते थे। मैंने सोचा जब अधिक आय सरकारी खजाने में ही जमा होनी है तो यहाँ के लोग अकर्मण्य होंगे लेकिन सब के सब बड़े मेहनती! होड़ लगी थी लोगों में अधिक से अधिक पैसा सरकारी खजाने में जमा कराने की!!!

दरअसल यहाँ की व्यवस्था ही ऐसी थी। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ भले एक जैसी थी मगर आदमी की प्रतिष्ठा, घर का आकार सब उसके द्वारा अर्जित ग्रेड पर निर्धारित थी। ए + वाले का बंगला, किसी राजा के महल जैसा। कार, नौकर-चाकर सब सरकारी। सामान्य मजदूरों के डी श्रेणी के घर भी अपने घर से अच्छे दिखे! मैंने सोचा तब तो यहाँ कोई आंदोलन होता ही नहीं होगा! लेकिन मैं फिर गलत था।चौराहे पर भीड़ जमा थी। लोग हवा में हाथ लहरा रहे थे।  नारे लगा रहे थे-कपड़ा पहनना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! नारे सुनकर मेरी तो नींद ही उड़ गई। आदमी कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। 

अनोखे देश की हर बात निराली थी। मैंने एक जोड़े से पूछा तुम लोग सरे राह प्रेम प्रदर्शन करते हो, शर्म नहीं आती! सरकार कपड़े नहीं देती तो क्या नंगे-पुंगे घूमोगे? वे हंसकर कहने लगे-हम तो पूजा कर रहे थे! मैंने घृणा से कहा-छी:! यह भी कोई पूजा है? वे हँसने लगे। हाँ, भाई हाँ। हमारे देश का नाम 'प्रेम नगर', हमारे भगवान का नाम 'प्रेम' और दूसरे से प्रेम करना हमारी पूजा! उसने मुझे प्यार से देखा और मुस्कुरा कर कहा-आओ! तुम्हें पूजा करना सिखायें। मैं भाग खड़ा हुआ। मेरी नींद फिर उड़ गई।

अनोखे देश की हर बात निराली। जब मैंने जाना कि प्रेम नगर के देवता भी प्रेम, धर्म भी प्रेम और पूजा भी आपस में प्यार करना है तो मुझे वहाँ कि सामाजिक सरचना के बारे में  जानने की इच्छा हुई कि वहाँ कितनी जातियाँ, उप जातियाँ रहती हैं? मैंने एक लड़के से उसका नाम पूछा तो उसका नाम सुनकर झटका सा लगा! प्रेमानन्द, 6 फ़रवरी 1995!!! मैंने हंसकर कहा-मैंने तुम्हारी जन्म तिथि थोड़ी न पूछी है। किस जाति के हो? जाति! सुनकर वह हंसने लगा। यहाँ जाति-वाति नहीं होती। यहाँ लोगों के नाम के आगे बस जन्म तिथि लिखी जाती है। यही कारण है कि एक जैसे नाम वाले बहुत से लोग मिल जाते हैं। 

सुनकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। वाह! क्या बात है!!! न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।