पैरों में 'घूमर'
बाँहों में 'पंख' लगने लगे
घर के रोम-रोम उसकी जुदाई से डरने लगे !
उसे याद है
जब भी वह देर से आता
घर का कोना-कोना, पूरे मकान को सर पर उठाए
हांफता - चीखता मिल जाता !
दरवाजे
गुस्से से लाल-पीले बाउजी
खिड़कियाँ
झुंझलाई बहनें
बरामदे
चिंता के सागर में डूबी
माँ की आँखें .
पिटने के बाद भी
यह एहसास उसे खुशियों से भर देता
कि यह घर
उससे बेहद प्यार करता है.
जवान होते ही
घर
उंगलियों में सिमट कर रह गए
नए मिले
पुराने खो गए
पास के दूर
दूर के पास हो गए
ताने मिलते तो बहाने बन जाते ...
कोई कहता, "बे ईमान हो गया !"
कोई कहता, "अपने ही घर में, दो दिन का मेहमान हो गया !"
इन सबसे अलग
दूर गली में
एक घर वो भी था जिसकी दीवारों में
ईंट के स्थान पर चुम्बक जड़े थे
जिसके दरवाजे पर सूरज उगता और ढल जाता
छत
इन्द्रधनुषी रंगों से रंगी होती
खिड़कियाँ
चाँदनी से नहाई होतीं
घर
जिसके एहसास से ही दिल में चाँद उतर आता
वह रातभर
नीद में चलता रहता
दिनभर
उसी के खयालों में खोया रहता
भोर गुलाबी
दिन
शर्मीले
रातें ....
जाफरानी हो जाती
जिंदगी
उस गली में
दीवानी हो जाती !
प्यार हद से बढ़ा तो दोनों
बेखबर हो गए
जुदा थे
कई घर थे
एक होते ही
बेघर हो गए !
भुगतनी पड़ी
लम्बी
प्यार की खता
इक-दूजे की आँखों में ढूंढ कर
बच्चों के फॉर्म में भरते रहे
धर्म
जाति
स्थाई पता !
आँधियों में बालू के घर ढह जाते हैं
ताश के महल उड़ जाते हैं
प्यार झूठा हो तो जिन्दगी
मुठ्ठी से रेत की तरह फिसल जाती है
प्यार सच्चा हो
तो नई इमारत फिर से खड़ी हो जाती है
दोनों ने एक दुसरे का बखूबी साथ निभाया
हर इम्तहान में खरे उतरे
अपनी मेहनत से
एक खूबसूरत मकान खड़ा कर दिया
और शुरू कर दी
मकान को घर बनाने की अंतहीन प्रक्रिया...
कोशिश ही कोशिश में
क्या से क्या हो गए
बच्चे बड़े
वे
बूढ़े हो गए !
देखते ही देखते
बच्चों ने
अपनी अलग दुनियाँ बसा ली
भारी मन से
घर ने घर को
सदा खुश रहने की दुआ दी
जिन्दगी फिर बे नूर हो गई
दिन की रोशनी
रात की चाँदनी
कोसों दूर हो गई
खुशियों के पल एलबम में सजने लगे
घर के जख्म
फिर उन्हें
बेदर्दी से
कुरेदने लगे
मौसम की मेहरबानी से
इन्द्रधनुष
कभी कभार
इक-दूजे की आँखों में दिख जाते हैं
तो वक्त की बदली
उसे
झट से ढक लेती है
कभी छत चूने लगती है
कभी कोई नींव
हौले से
धंसने लगती है
घर...!
ऐ जिन्दगी..!
तू आजकल मेरे ख़यालों में रोज आती है .
बांधना चाहता था तुझे गीतों में मगर
तू तो
कहानी की तरह
फैलती ही चली जाती है.....!