बचपन में
जब जाता था परीक्षा देने या
जब जाते थे पिताजी घर के बाहर दूर किसी काम से
तो माँ
झट से रख देतीं थीं दरवाजे पर दो भरी बाल्टियाँ
कहती थीं-
शुभ होगा।
आज
जब निकलना चाहता हूँ घर के बाहर
तो पत्नी
झट से रख देती है दरवाजे पर दो खाली बाल्टियाँ
इस अनुरोध के साथ
कि पहले ले आइए पड़ोस से दो बाल्टी पानी़, प्लीज....
घर में एक बूंद नहीं है पीने के लिए।
पहले
पिताजी डांटते थे
कि बिना स्नान-ध्यान किए
सुबह-सुबह खाली मस्तक बाहर जा रहे हो
अपना तो जीवन चौपट कर ही रहे हो
क्यों दूसरों का भाग्य भी बिगाड़ते हो ?
मैं डरते-डरते पूछता-
दूसरों का कैसे पिताजी !
वो समझाते-
बिना हाथ में झाड़ू लिए जमादार या
बिना मस्तक पर चंदन लगाए ब्राम्हण का बच्चा
सुबह-सुबह दिख जाए तो भारी अशुभ होता है
क्योंकि ब्राम्हण का कर्म है
सुबह-सुबह उठकर स्नान-ध्यान करना
जमादार का कर्म है- झाड़ू लगाना
जो ऐसा नहीं करते वो कर्महीन हैं
और कर्महीन का दर्शन भी अशुभ होता है।
आज
जब मेरा बेटा
मेरे द्वारा मुश्किल से लाए पानी की बाल्टी को खाली करना चाहता है
तो डांटता हूँ--
रोज नहाना जरूरी है क्या ?
घर में पीने के लिए पानी नहीं है और लाट साहब चले स्नान करने!
अकेले में सोचता हूँ
कैसे बदल जाते हैं संस्कार
जब पड़ती है पानी की मार !
आज
घर से बाहर निकलते ही
दिखते हैं जगह-जगह
कूड़े के ढेर, खाली बाल्टियाँ
मगर नहीं दिखते कभी
ब्राम्हण के बच्चे।
तो क्या सर्वत्र अशुभ ही अशुभ?
कर्महीन तो कोई नहीं दिखता!
दिखाई देती है -
भागम भाग
पीछे छूटने का भय, आगे निकलने की होड़!
लोगों की आंखों मे नहीं दिखाई देती
करूणा की बूंद
दिखती है-
तो सिर्फ एक गहरी प्यास।
बेमानी लगती हैं सागर छलकाती मस्त निगाहों की बातें
लगता है कि
धीरे-धीरे
लोग होते जा रहे हैं
बे-पानी
धीरे-धीरे
गिरता जा रहा है
धरती का जलस्तर।
जब जाता था परीक्षा देने या
जब जाते थे पिताजी घर के बाहर दूर किसी काम से
तो माँ
झट से रख देतीं थीं दरवाजे पर दो भरी बाल्टियाँ
कहती थीं-
शुभ होगा।
आज
जब निकलना चाहता हूँ घर के बाहर
तो पत्नी
झट से रख देती है दरवाजे पर दो खाली बाल्टियाँ
इस अनुरोध के साथ
कि पहले ले आइए पड़ोस से दो बाल्टी पानी़, प्लीज....
घर में एक बूंद नहीं है पीने के लिए।
पहले
पिताजी डांटते थे
कि बिना स्नान-ध्यान किए
सुबह-सुबह खाली मस्तक बाहर जा रहे हो
अपना तो जीवन चौपट कर ही रहे हो
क्यों दूसरों का भाग्य भी बिगाड़ते हो ?
मैं डरते-डरते पूछता-
दूसरों का कैसे पिताजी !
वो समझाते-
बिना हाथ में झाड़ू लिए जमादार या
बिना मस्तक पर चंदन लगाए ब्राम्हण का बच्चा
सुबह-सुबह दिख जाए तो भारी अशुभ होता है
क्योंकि ब्राम्हण का कर्म है
सुबह-सुबह उठकर स्नान-ध्यान करना
जमादार का कर्म है- झाड़ू लगाना
जो ऐसा नहीं करते वो कर्महीन हैं
और कर्महीन का दर्शन भी अशुभ होता है।
आज
जब मेरा बेटा
मेरे द्वारा मुश्किल से लाए पानी की बाल्टी को खाली करना चाहता है
तो डांटता हूँ--
रोज नहाना जरूरी है क्या ?
घर में पीने के लिए पानी नहीं है और लाट साहब चले स्नान करने!
अकेले में सोचता हूँ
कैसे बदल जाते हैं संस्कार
जब पड़ती है पानी की मार !
आज
घर से बाहर निकलते ही
दिखते हैं जगह-जगह
कूड़े के ढेर, खाली बाल्टियाँ
मगर नहीं दिखते कभी
ब्राम्हण के बच्चे।
तो क्या सर्वत्र अशुभ ही अशुभ?
कर्महीन तो कोई नहीं दिखता!
दिखाई देती है -
भागम भाग
पीछे छूटने का भय, आगे निकलने की होड़!
लोगों की आंखों मे नहीं दिखाई देती
करूणा की बूंद
दिखती है-
तो सिर्फ एक गहरी प्यास।
बेमानी लगती हैं सागर छलकाती मस्त निगाहों की बातें
लगता है कि
धीरे-धीरे
लोग होते जा रहे हैं
बे-पानी
धीरे-धीरे
गिरता जा रहा है
धरती का जलस्तर।