इस चित्र को ध्यान से देखिये। पूरी कविता, कथा
या दर्शन इसी पर आधारित है। अब इसमें कविता, कहानी ढूँढिये। मैं फोटोग्राफर की
हैसियत से नहीं, बल्कि एक लेखक की हैसियत से कह रहा हूँ कि यह चित्र बहुत सुंदर
है। आप सभी अच्छे लेखक, विचारक हैं। मेरी ख्वाहिश है कि आप बतायें कि इस चित्र में वह क्या है जो दिख नहीं रहा ? फिर मेरा प्रयास पढ़ने का कष्ट
कीजिए....
भूख का सौंदर्य
सुबह-ए-बनारस है
गंगा जी हैं
सामने उत्तर दिशा में
धनुषाकार फैले
गंगा जी के घाट हैं
नाव हैं
पूरब में उगता हुआ सूरज है
पीछे पश्चिम में
महाराजा तेजसिंह के किले के नीचे
घाट की सीढ़ियों पर बैठा
परिंदों को निहारता
ठिठका हुआ
एक युवक है
उसके हाथों में बांसुरी है
और दूर गगन में
ढेर सारे उड़ रहे परिंदे हैं।
दक्षिण दिशा में खड़े फोटोग्राफर ने
चित्र सुंदर खींचा है
मगर
वह नहीं खींच पाया
जो हकीकत है!
चलिए!
मैं आपकी मदद करता हूँ
क्योंकि
वह फोटोग्राफर मैं ही हूँ....
ठिठकने से पहले
युवक बासुंरी बजा रहा था
गंगा
कल-कल बह रही थीं
नावें
आ-जा रही थीं
परिंदे
सबसे बेखबर
गुटुर-गुटुर करते
लड़ते-झगड़ते
उड़ते-बैठते
घाट की सीढ़ियों पर बिखरे
दाने चुग रहे थे
फोटोग्राफर पोज़ बना रहा था
इतने में
एक बाज़ ने झपट्टा मारा
उनके एक साथी को अपने मजबूत पंजों में दबोचकर
पलभर में गायब हो गया!
शेष बचे कबूतर
डर के मारे झटके से उड़ने लगे
बेतहासा भागते
कबूतरों की आवाज ने युवक का ध्यान भंग किया
कौतूहल से देखने लगा...
ये माज़रा क्या है!
फोटोग्राफर का क्या!
जो दृश्य
खूबसूरत दिखा
वही खींच लिया।
अब आप भी
मेरी कुछ मदद कीजिए
कुछ और हकीकत से पर्दा उठाइये
कुछ रहस्य हैं
जिन्हें सुलझाइये....
दाने तो आज भी बिखरे दिखते हैं
घाट की सीढ़ियों पर
परिंदे
आज भी दिखते हैं
बेखबर
चुगते हुए
बाज भी
आते ही होंगे
रोज़!
भूख
आदमी की हो
या परिंदों की
अपने साथी की मौत का मातम भी
नहीं मनाने देती
अधिक दिन!
तो फिर क्यों न मैं
संसार के संपूर्ण सौंदर्य को
‘भूख का सौंदर्य’ मान लूँ ?
...............................