9.5.15

अब भला क्यों सजन, धूप में!

आग लगती है ठन्डी हवा
तुम कहाँ हो? सजन, धूप में

हर तरफ बिछ रही चांदनी
चल रहा हूँ सजन, धूप में

मेरे पलकों ने बादल बुने
लो सजन ओढ़ लो, धूप में

बन के बदरी अगर तू चले
फिर घनी छाँव है, धूप में

दिन ढला, साँझ दीपक जले
अब कहाँ हो? सजन, धूप में

जाने कब से खड़ा द्वार पर
अब भला क्यों सजन, धूप में!