एक सुबह इनकी
सूरज नवजात शिशु सा और लहरें गोया स्वागत में हुलकना शुरू ही कर रही हों ! नदी
के उस छोर से इस छोर तक सुनहले पुल सा पसर गया है आलोक !
नाव पर पैसे और बे पैसे वालों की सुबह है ये जबकि बाकी जनता को नगर निगम और
उसकी जलापूर्ति से कोई लेना देना नहीं !
नदी घाटी योजनाओं का नियंत्रण / सुपरविजन और खर्चे का सारा दारोमदार श्वानों
के हाथ में है!
जल ठहर सा गया है विदेशी मेहमान को आराम की ज़रूरत है ! उसके आराम और चप्पू पे
चिपकी हथेलियों से छूट रहे पसीने से कुछ पेट पलेंगे !
परिंदों को उम्मीद दानों की और दाने वाले हाथ पुण्य की लालसा में !
एक सुबह इनकी
बिजली के नंगे तारों संग जीना मरना स्तब्ध पेड़ कुछ डरे डरे !
आम (की) उम्मीद खास सबके लिए !
एक सुबह इनकी
परिंदों को दाने बिखेरती पुण्यात्माओं का इंतज़ार है !
कौओं की जो सुबह हुई तो गौरैयों की सुबह नहीं !
खिड़की पर के ए सी और बरामदे पर खड़ी बाइक का स्वाद इस जन्म में तो मिला नहीं, स्तब्ध मोर !
एक सुबह इनकी
एक सुबह इनकी
जब पेड़ की मोटी शाखों से पत्तों संग टहनियाँ टपकेंगी, वह सुबह कभी तो आयेगी!
फ्रेश एयर, ऑक्सीजन की तलाश तुम्हें होगी हमे तो रोजी रोटी का सवाल है !
नोटः अली सा ने एक-एक चित्र की नम्बरिंग करते हुए उन पर सुंदर कमेंट किये। मैने उन्हें यथा स्थान पहुँचा दिया। इस पोस्ट पर आयें कमेंट्स से श्रम सार्थक हुआ। ..आभार।
फोटो तो सुन्दर हैं,मगर लगता है बहुत गर्मी के कारण आप लिखना भूल गये हैं.
ReplyDeleteवाह क्या फोटो हैं ? महराज आपके हुनर का कमाल है या कैमरे का या बनारस की सुबह का ?
ReplyDeleteकैमरा तो एकदम झण्डू है। यह बनारस की सुबह का ही कमाल है। आप सुबह निकलिए तो घर से। चमत्कारिक परिवर्तन होंगे।:)
Deleteबनारस घूमने का आनन्द आपके साथ ही आयेगा।
ReplyDeleteवाह! वह सुबह कभी तो आयेगी।
Deletewahhh kya tasvire hai sir ji......maja aa gya ji
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी।
Deleteसबकी अपनी अपनी सुबह है .....और सबके अपने अपने कर्म हैं ....जीवन का एक एक पल अद्भुत है .....सबके लिए ....यही कुछ कह रहे हैं आपके यह सुंदर चित्र ...!
ReplyDeleteबहुत सुंदर। इसी अर्थ की तलाश थी। कर्मों में फर्क भी नज़र आता है। कुछ कर्म खा कर पचाने के लिए, कुछ खा पाने के लिए। सूरज एक ही निकलता है। सबके हिस्से अपना-अपना सबेरा आता है।
Deleteफिर सब्र से बैठूँ,
ReplyDeleteएक नुक्कड़ पर
कि अगला नुक्कड़,
भगा नहीं जा रहा
फिर सुकून से देखूँ,
एक ही अशोक गाछ
कि आमों का गुच्छा,
एक दिन में नहीं बौरा रहा
लौट सकूँ एक रोज
अपने उसी पुराने ठांव,
रोजाना साँस ले मुझमे,
रोजनामचों की तरह
कभी यूँ भी तो हो।
:)
चित्र बहुत सुन्दर हैं।
होगा अविनाश भाई होगा। आप आयेंगे इस बार तो मुझसे मिले बिना नहीं जायेंगे।
Deleteमहाराज,
ReplyDeleteइतने ख़ूबसूरत चित्र खींचे हो और अभी सतीश सक्सेना जी के कैमरे पर नजर है? this is not fair:)
धन्यवाद संजय जी। नज़र तो आपके फत्तू पर भी हैं मगर मिल थोड़े न जायेगा।:)
Deleteगुरुवर,
Deleteफत्तू तो कब से बनारस की सड़कों के ठीक होने के इन्तेजार में है, ऐसा सूना गया है :)
हा हा हा...आजादी के पहले से खराब है।:)
Deleteइस फन के तो आप महारथी निकले ..
ReplyDeleteकमाल के चित्र .. सुबह अपनी अपनी
मेरी कोई महारथ नहीं। यह बनारस की सुबह और आप सब का आशीर्वाद है।
Delete१. आप एक अच्छे फोटोग्राफर भी हैं।
ReplyDelete२. तस्वीरें बहुत कुछ अपने आप बयां करती हैं।
३. अंतिम फोटो सबसे पहला है।
धन्यवाद सर जी। फोटोग्राफी का ए बी सी डी नहीं जानता। ये तो कोरी मन की भावनायें हैं जो किसी न किसी रूप में प्रकट हो जाती हैं।
Deleteएक दिन मैं भी कैमरा लेकर सुबह-सुबह निकल ही पड़ता हूं। देखूं कलकत्ते की सुबह बनारस से किन मामलों में एक है या अलग!
ReplyDeleteरोज सुबह टहलिये, सूर्योदय देखिये, कैमरा अपने आप उठा लेंगे। हुगली नदी पर..दूर हावड़ा ब्रिज , नैया पर बैठ, सूर्योदय का नाजारा..क्या खूब तश्वीरे आयेंगी! :)
Deleteपहला चित्र और आखिरी से तीसरा कलात्मक कोटि की फोटोग्राफी का नमूना है|
ReplyDelete...आखिरी चित्र काश आखिरी होता...!
आमों की तरुणाई का मौसम है !
बुजुर्ग भी युवा बनने की राह पर...!
...बच्चे और परिंदे यकसा मगन हैं !
Deleteआभार आपका..सुंदर कमेंट के लिए।
Deleteइत्ते सारे चित्र लगा के कन्फ्यूजियाय दिये हैं आप हमको !
ReplyDeleteचित्र एक...
दूर पेड़ों से रात का खुमार अभी उतरा नहीं है , सूरज नवजात शिशु सा और लहरें गोया स्वागत में हुलकना शुरू ही कर रही हों ! नदी की उस छोर से इस छोर तक सुनहले पुल सा पसर गया है आलोक !
चित्र दो...
नाव पर पैसे और बे पैसे वालों की सुबह है ये जबकि बाकी जनता को नगर निगम और उसकी जलापूर्ति से कोई लेना देना नहीं !
चित्र तीन...
नदी घाटी योजनाओं का नियंत्रण / सुपरविजन और खर्चे का सारा दारोमदार श्वानों के हाथ में है !
चित्र चार ...
जल ठहर सा गया है विदेशी मेहमान को आराम की ज़रूरत है ! उसके आराम और चप्पू पे चिपकी हथेलियों से छूट रहे पसीने से कुछ पेट पलेंगे !
चित्र पांच ...
परिंदों को उम्मीद दानों की और दाने वाले हाथ पुण्य की लालसा में !
चित्र छै और आठ ...
बिजली के नंगे तारों संग जीना मरना स्तब्ध पेड़ कुछ डरे डरे !
चित्र सात और नौ ...
आम (की) उम्मीद खास सबके लिए !
चित्र दस ...
परिंदों को दाने बिखेरती पुण्यात्माओं का इंतज़ार है !
चित्र ग्यारह ...
कौओं की जो सुबह हुई तो गौरैयों की सुबह नहीं !
चित्र बारह ...
खिड़की पर के ए.सी. और बरामदे की बाइक का सुख इस जन्म तो मिला नहीं , स्तब्ध मोर !
चित्र तेरह और चौदह ...
इनकी बीबियाँ और कितना झेलेंगी इन्हें ? घर पे सुबह सुबह चाय कौन बनायेगा इन निठल्लुओं के लिए ? वैसे भी इन्हें खूबसूरत लड़कियां की निगरानी के वास्ते यहां आना ही था वर्ना घूमना तो सिर्फ बहाना था !
चित्र पन्द्रह और सोलह ...
रात को खाट पर पड़ी डांट ने लाट साहब को भागने पे मजबूर कर दिया !
चित्र सत्रह ...
जब पेड़ की मोटी शाखों से पत्तों संग टहनियां टपकेंगी वो सुबह कभी तो आयगी !
चित्र अठारह ...
फ्रेश एयर / आक्सीजन की तलाश तुम्हे होगी , हमें रोजी रोटी का सवाल है
चित्रों का गज़ब शब्दांकन :-)
Deleteदेवेन्द्र जी ,एक बार में तीन-चार चित्र ही लगाया करें ,पढने वाले को कन्फ्यूज़न हो ही जायेगा :-)
अली सा....
Deleteआभार आपका। एक-एक तश्वीर पर आपकी दृष्टि को यथा स्थान पहुँचा दिया है। समग्र के अर्थ अभी आपने नहीं लिखे।:)
कुछ खास तस्वीरें आपने बचा ली हैं :) ऐसा पक्षपात क्यों :)
Deleteहम वहाँ बस दिख ही नहीं रहे हैं। कोई अपने ऊपर इतना तीखा कमेंट लिखता है क्या?
Deleteदूसरा खतरा यह कि (14) ने देख लिया तो कल से सुबह की चाय नसीब नहीं होगी।:)
वाह बहुत ही सुंदर चित्र हैं जीवन से परिपूर्ण ।
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteहर चित्र अपने आपमें कविता है ...
ReplyDeleteबधाई देवेन्द्र भाई !
बहुत दिनो बाद आपका प्रोत्साहन मिला। तबियत खुश हो गई।
Deleteसुबहे बनारस! ये सुबह सुहानी है! धन्यवाद!
ReplyDeleteइनकी उनकी सबकी सुबहें देखी --मगर आप कहीं नहीं दिखे !
ReplyDeleteआप भी हमारी तरह बस देखते ही रहे और आत्म विभोर होते रहे !
सुंदर सुबह की सुन्दर तस्वीरें .
तश्वीरें देखकर आपको अपना आत्म विभोर होना याद आ गया! यह मेरे खुश होने के लिए पर्याप्त है।
Deleteबेहद खूबसूरत और मायनेखेज़ फोटोग्राफ्स....
ReplyDeleteनैनाभिराम सुबह..
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबनारस में गर्मी मकी सुबह भी कमाल की है ...
ReplyDeleteआपने अपनी सुबह का ज़िक्र नहीं किया इन सब के बीच ...
इन सब के बीच हूँ तो अपनी सुबह का जिक्र क्या करना!
Deleteसुंदर भाव लिए सुहानी सुबह ...
ReplyDeleteकाव्यात्मक चित्र ...
और सभी कमेंट्स ने मिल कर चित्रों को शब्द दे दिए.
सभी को साधुवाद.
सही लिखा आपने। सभी कमेंट्स ने मिलकर चित्रों को शब्द दे दिए।..आभार।
Deleteसुबह एक, अंदाज़ अनेक... सुन्दर बोलती सी तस्वीरें... आभार
ReplyDeleteहाँ! अब आया मज़ा! बोलते चित्र, पूरक कैप्शन.....। कैमरे की आँख से अधिक सम्वेदनशील पाण्डॆय जी के मन की आँखें। आनन्दम आनन्दम् ....
ReplyDeleteबहुत आभार आपका डाक्टर साहब..मन की आँखें भी देख लीं...!
Deleteek sunder bhor k darshan ho gaye aapki badolat. aabhar.
ReplyDeleteआपको भी धन्यवाद।
Deleteतस्वीरें तो शानदार हैं..और सुबह भी, यहाँ की सुबह तो बस शाम जैसी ही दिखती है. फरक इतना है कि कुछ जाते हुए लोग आते हुए दिखते हैं.
ReplyDeleteसुबह कैसे प्यारी होगी
Deleteचाँद से जब यारी होगी!:)
अद्भुत संयोजन.... बस वाह!
ReplyDeleteसादर।
तस्वीरें तो सुंदर हैं ही...मगर अब ऐसी सुबाह देखने को दिल तरस जाता है क्यूंकि यहाँ की शाम और सुबह में कोई खासा फर्क नज़र नहीं आता।
ReplyDeleteरात को सूरज उगाते हैं लोग
Deleteधूप में चौचक नहाते हैं लोग।:)
सुबह की खूबसूरती तस्वीरों में कैद करना एक अच्छा प्रयास है ...
ReplyDeleteकिन्तु निहारते मौन बैठना अपने आप में ध्यान है !
अच्छी पोस्ट !
निहारते मौन बैठना ध्यान है।..वाह!
Deleteचित्ताकर्षक और मनोहारी दृश्य!
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी।
Deleteआशाओं की नई रोशनी लिए सुबह.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
बहुत मनोहारी है यह सुबह और इसका दृष्य-विधान !
ReplyDeleteअभी तक तो कहावत ही सुनते आये थे की बनारस की सुबह और अवध की शाम.....अवध की शाम तो लखनऊ में देखी है पर आज बनारस की सुबह आपके साथ देख ली....सभी चित्र बहुत सुन्दर हैं आपके कमेंट्स के साथ तो चार चाँद लग गए.....पहला वाला सूर्योदय का सबसे अच्छा लगा।
ReplyDeletewaah......sabki subah acchi hai....
ReplyDeleteआप कितनी खूबसूरत तस्वीरें लगाते हैं...बस देखते रह जाते हैं हम तो.. :)
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