चलो रात भर गुनगुनाते रहें
सुनें कुछ कभी कुछ सुनाते रहें।
कहीं ज़ख्म होने लगें जो हरे
वहीं मीत मरहम लगाते रहें।
नहीं सीप बनकर जुड़ीं उँगलियाँ
न पलकों से मोती गिराते रहें।
बहुत दर्द सहते रहे, थे जुदा
चलो प्रेम दीपक जलाते रहें।
अमावस कभी तो कभी पूर्णिमा
सितारे सदा मुस्कुराते रहें।
जले लाख दुनियाँ, कुढ़े प्यार से
जमाने को ठेंगा दिखाते रहें।
हमारी यही चाँदनी रात है
अमावस भले वे बताते रहें।
नहीं हम अकेले ही 'बेचैन' हैं
चलो यार आँखें लड़ाते रहें।
...............................
BAHUT HEE SUNDAR !
ReplyDeleteबढ़िया.. :)
ReplyDeleteधन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर गजल ,,,
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
बढियां भाव उकेरे हैं !
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण ग़ज़ल
ReplyDeletelatest os मैं हूँ भारतवासी।
latest post नेता उवाच !!!
ठंड है,
ReplyDeleteरजाई खोल जड़ाते रहें।
कल 18/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
धन्यवाद।
Deletewaah...bahut khoob, bahut sundar
ReplyDeleteबहुत सुंदर ..चलो यूँ ही ..मन को बहलाते रहें,बेचैन दिल को चैन दिलाते रहें :-)
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत खुब…… पहला और आखिरी वाला सबसे बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब और सुंदर गजल.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteउत्तम...
ReplyDelete:-)
गजल येक अछ्छा है बन गया,आओ हम इसे गुनगुनाते रहें.
ReplyDeleteबेहतरीन ..
ReplyDeleteखूब रही! :)
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