डाल में आ गए जब टिकोरे बहुत
बाग में छा गए तब छिछोरे बहुत
पेड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
मारते पत्थरों से निगोड़े बहुत
धूप में क्या खिली एक नाजुक कली
सबने पीटे शहर में ढिंढोरे बहुत
एक दिन वे भी तोड़े-निचोड़े गए
जिसने थैले शहद के बटोरे बहुत
वक्त पर काम आए खच्चर मेरे
हमने रक्खे थे काबुल के घोड़े बहुत
फूल खिलने लगे फिर उसी शाख में
आंधियों ने जिन्हें कल हिलोरे बहुत
............................
पेड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
ReplyDeleteमारते पत्थरों से निगोड़े बहुत
पाण्डेय जी फल वाले पेड़ की किस्मत में यही लिखा है व्यंग्य के पत्थर मार रहे है आप , अच्छी लगी रचना बधाई
क्या कहने हैं -कवितायी आपके जींस में है !
ReplyDeleteलगता है कुछ आपसे कुछ जीन उधार मांगने होंगे !
और यह दानियों का देश है इसलिए आश्वस्त हूँ !
पेड़ के टिकोरे अब बड़े हो रहे हैं..
बचाने उन्हें लोग खड़े हो रहे हैं
आपकी कवितायी संक्रामक भी है :)
बहुत खूब देवेन्द्र भाई,
ReplyDelete"पेड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
मारते पत्थरों से निगोड़े बहुत"
सज्जनता का नाम लेकर पेड़ों की शुरू से ऐसी कंडीशनिंग कर दी जाती है कि पत्थर खाना और फ़ल देना ही उसकी नियति बन जाती है।
फूल खिलने लगे फिर उसी शाख में
ReplyDeleteआंधियों ने जिन्हें कल हिलोरे बहुत
............................bahut badhiyaa
डाल में आ गए जब टिकोरे बहुत
ReplyDeleteबाग में छा गए तब छिछोरे बहुत
रोचक है धन्यवाद |
बहुत खूबसूरत रचना ..
ReplyDeleteपेड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
मारते पत्थरों से निगोड़े बहुत
धूप में क्या खिली एक नाजुक कली
सबने पीटे शहर में ढिंढोरे बहुत
लाजवाब
वक्त पर काम आए खच्चर मेरे
ReplyDeleteहमने रक्खे थे काबुल के घोड़े बहुत
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सुन्दर गजल।
छिछोरों की संख्या तो टिकोरों से अधिक है।
ReplyDeleteडाल में आ गए जब टिकोरे बहुत
ReplyDeleteबाग में छा गए तब छिछोरे बहुत...
अरे वाह क्या खूब कहा है ...बहुत ही सुंदर गजल !
फूल खिलने लगे फिर उसी शाख में
ReplyDeleteआंधियों ने जिन्हें कल हिलोरे बहुत
सभी शेर गहन अर्थों को अभिव्यक्त कर रहे हैं।
इस सुंदर ग़ज़ल में जीवन की सीख भी समाहित है।
बेहतरीन शेर .....
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़जल। आभार।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteधूप में क्या खिली एक नाजुक कली
ReplyDeleteसबने पीटे शहर में ढिंढोरे बहुत
बेजोड़, बहुत सुन्दर
आपकी रसीली रचना पढ़कर आभास हो गया कि आमों का सीज़न अब आने ही वाला है ।
ReplyDeleteबहुत खूब ।
बहुते सुघर आम क पेड़ औरी टिकोरा वाली कविता .
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
पेड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
ReplyDeleteमारते पत्थरों से निगोड़े बहुत
क्या बात है! अद्भुत लिखते हैं आप! हर शेर खूब बहुत खूब.
डाल में आ गए जब टिकोरे बहुत
ReplyDeleteबाग में छा गए तब छिछोरे बहुत...
टिकोरों की छिछोरों के साथ पुराणी सांठ गाँठ है. एहतियातन इन्तिजाम तगड़े करने पड़ेगें.
बढ़िया रचना के लिए बधाई.
बहुत प्यारी ग़ज़ल .आभार.
ReplyDeleteदेव बाबू,
ReplyDeleteशानदार है पोस्ट....शेर उम्दा बन पड़े हैं ......प्रशंसनीय |
वाह सुंदर रचना है
ReplyDeleteफल की तो ना जाने मैं क्या कहूँ,गुठलियों को भी सबने निचोड़े बहुत
ReplyDeleteडरावने कुत्ते की दरकार है,ये निगोड़े हैं होते भगोड़े बहुत.
उत्तम शेर संकलन.
ReplyDeleteकहने को रिपोस्ट है पर ताजगी अब भी बरकरार है ! कल ही तेज हवा में कुछ टपके सो पुदीने के साथ उनकी चटनी का आनंद लिया अब कविता पढ़ के टिप्पणी करना भी चाहूँ तो नहीं हो पायेगी , हर शेर पर कमबख्त मुंह में पानी आ जाता है :)
ReplyDeleteयूं समझिए कि शेष सारे भाव साइड लाइन हो लिए !
bahut lajawaab likhte hain aap.
ReplyDeleteफूल खिलने लगे फिर उसी शाख में
ReplyDeleteआंधियों ने जिन्हें कल हिलोरे बहुत...
रसीले दशहरी आमों जैसी रसीली रचना।
डाल में आ गए जब टिकोरे बहुत
ReplyDeleteबाग़ में chha गए तब छिछोरे बहुत
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मुखड़े ने ही मन बाँध लिया ...........उम्दा ग़ज़ल .........हर शेर लाजवाब
बहुत प्यारी ग़ज़ल| आभार|
ReplyDeleteराम नवमी की शुभकामनाएँ|
वक्त पर काम आए खच्चर मेरे
ReplyDeleteहमने रक्खे थे काबुल के घोड़े बहुत
फूल खिलने लगे फिर उसी शाख में
आंधियों ने जिन्हें कल हिलोरे बहुत
bahut hi shaandaar rachna .bha gayi .
मुझे लगता है मैंने आपका पहला गीत पढ़ा है ! आनंद आ गया !
ReplyDeleteबड़ा प्यारा लिखते हो देवेन्द्र भाई आप !
प्रिय बंधुवर देवेन्द्र पाण्डेय जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत प्यारी है जनाब , आपकी लेखनी !
पेड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
मारते पत्थरों से निगोड़े बहुत
बहुत पसंद आया यह शे'र !
…और क्या कहने है इसके -
वक्त पर काम आए हैं खच्चर मेरे
हमने रक्खे थे काबुल के घोड़े बहुत
अछूता अंदाज़ है … सच !
ख़ूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद !
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut sunder rachana...
ReplyDeleteअपने बेशक रिपोस्ट की है मगर मैने पहली बार पढी। ये शेर तो बहुत ही अच्छे लगे----
ReplyDeleteधूप में क्या खिली एक नाजुक कली
सबने पीटे शहर में ढिंढोरे बहुत
वक्त पर काम आए खच्चर मेरे
हमने रक्खे थे काबुल के घोड़े बहुत
वाह क्या शेर निकाले हैं। शुभकामनायें।
बहुत प्यारी ग़ज़ल .आभार.
ReplyDeleteमन बाँध लिया ख़ूबसूरत रचना ने ....आनंद आ गया ..आभार
ReplyDeleteशानदार! रिटीप है यह ! :)
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