28.4.11

कविताई...!


क्वचिदन्यतोअपि  से लौटकर........


जेहके देखा वही करत हौ अब कवियन पर चोट
व्यंग्यकार, आलोचक के अब ना देबे हम वोट

कमेंट कवियन पर होई!

ज्ञानी रहतीं, लिख ना देहतीं, एक अउर रामायण
रोज उठाइत ब्रत अउर रजा, रोज करित पारायण

बतिया एक्को न मानब !

यार-मित्र जब ना सुनलन, संपादक रोज लौटावे
रोज लिखी कविता चौचक, शायद अब छप जावे

मु्श्किल से ब्लॉग मिलल हौ !

ई त हमहूँ के पता  कि हमरे में नाहीं कुछ्छो दम
बहस होई सभा मा बोलब खुलके, केहसे हई कम

देखिया सम्मानो पाईब !

..........................................

............तुरत-फुरत व्यंग्य शैली में लिखा है। आलोचक कमियाँ बतावें..व्यंग्यकार आलोचना करें..मीडिया वाले चर्चा करें..हम जल्दी से महाकवि घोषित हों। इसी क्षुद्र कामना के साथ।

34 comments:

  1. क्या धार है व्यंग्य की...क्या भाषा है...प्रशंसा को शब्द नहीं मेरे पास..एकदम निःशब्द हूँ...

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  2. .

    हे महाकवि देवेन्द्र ,

    हम कृतार्थ हुए आपकी रचना पढ़कर । इतनी सुन्दर रचना मैंने पहले कभी नहीं पढ़ी । आनंद आ गया ।

    प्रणाम गुरुवर।

    .

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  3. हे महाकवि देवेन्द्र ,
    बड़ रोपचिक लिखल हौ..
    पढ़ि के हमनी के मन जुड़ा गयल !
    आलोचक के परुवाह नैखे करै क चाहीं, बस रउवा लिखल जाईं !!

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  4. देखिया सम्मानो पाईब !

    अपने ऊपर ऐसा निर्मल विश्वास कवियों को भी दुर्लभ है :-) सहर्ष सम्मान देते हैं आपको पाण्डेय जी !

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  5. ज्ञानी रहतीं, लिख ना देहतीं, एक अउर रामायण
    रोज उठाइत ब्रत अउर रजा, रोज करित पारायण

    बतिया एक्को न मानब !


    गजब .....गजब ....बस गजब .....!

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  6. बहुत शानदार व्यंग... आभार सहित...

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  7. तुरत-फुरत व्यंग्य महाकवि ! आपको सलाम ।
    बढ़िया सरकाई है , भाई ।

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  8. बहुते बढिया लागल!

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  9. बहुत सुंदर व्यंग

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  10. बड़ा सन्नाट!!



    यार-मित्र जब ना सुनलन, संपादक रोज लौटावे
    रोज लिखी कविता चौचक, शायद अब छप जावे

    मु्श्किल से ब्लॉग मिलल हौ !


    :)

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  11. अगर हम
    पुरस्कार पीठ में होते - आपको कविराज सम्मान दे देते
    चर्चा दल में होते - हर रोज़ आपकी ही काव्यचर्चा करते
    संगीतकार होते - हर फिम के गीत आपके ही होते
    मगर, फिलहाल - आपकी शानदार रचना के लिये बधाई!

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  12. देखिया सम्मानो पाईब !
    एक उत्कृष्ट रचना -बार बार मुस्करा रहा हूँ और दाद दे रहा हूँ आपको -खुजाते रहिएगा !:)

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  13. स्मार्ट इंडियन जी ने जो कहा उस पर हमारी भी मुहर. अरविन्द जी के पोस्ट के बाद ही यह कविता पढ़ी मजा दुगना हो गया.

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  14. अवधी में हमारी लिखने की सीमायें हैं... सो अमरेन्द्र के विचार में हमारा स्वर भी शामिल समझिये....."हे महाकवि देवेन्द्र ,
    बड़ रोपचिक लिखल हौ.. पढ़ि के हमनी के मन जुड़ा गयल"

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  15. बहुते नीमन लागल .....परनाम !

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  16. देव बाबू,

    क्या बात है......जब आप अपनी भाषा में होते हैं....तो ज़बरदस्त होते हैं.....अगर कोई सभा या जलसा (मुझे तो सिर्फ ये भीड़ ही लगती है )......कोई तमगा पकड़ा भी देता है तो इससे क्या फर्क पढ़ता है .......असली बात तो तब है जब आपके पाठक आपको सम्मान देते हैं.........क्यूँ?

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  17. कोई कमी नहीं दिखती है, यही कमी है।
    इत्ता बढ़िया लिखेंगे तो बाकी क्या करेंगे?
    मीडिया तक(भी) अपनी पहुँच नहीं, होती तो हमीं न छप जाते:)
    महाकविराज तो आप हैं ही।

    सड़कें ठीक हुईं कि नहीं अभी? कब होंगी यार?

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  18. और गुरू आखिरी पंक्तियाँ पढ़कर आचार्य की पोस्ट और उसपर आपकी टिप्पणी फ़िर से याद आ गई:)

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  19. पाण्डेय जी आज जो आपने कविताई लिखी बड़ी जबदस्त बा एक समय था जब इस तरह के दुमदार शेर बहुत लिखे जाते थे क्योंकि यह दमदार भी होते थे

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  20. संजय जी...

    सड़क ससुरी ठीक का हुई ! इट्टी-गिट्टी पटी तब तक जलकल वाले आये बोले रूको...! अभी जल पाइप बिछाना है। आजकल जलकल वाले खोद रहे हैं। बनारस में जिधर देखो उधर खुदा है।

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  21. सुन्दर रचना .....आनंद आ गया ।

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  22. बढ़िया व्यंग्य है,...

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  23. पांडे जी!
    ब्यंग्य का बूटी छानकर एकदम सराबोर कर दिए हैं भाई!! का मालूम केतना लोंग के छूट जाई कबिताई.. मन परसन्न!!

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  24. यार-मित्र जब ना सुनलन, संपादक रोज लौटावे
    रोज लिखी कविता चौचक, शायद अब छप जावे

    मु्श्किल से ब्लॉग मिलल हौ ...

    ओ हो .... अब ई का लिख दिए हो ... भाई ग़ज़ब कमाल करते हो ... बहुत मज़ा आइबे ...

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  25. जबरदस्त!!
    छा जाने वाली कविता है देवेन्द्र जी, बनारस घुमा लाते हैं आप ऐसा लिख के।
    इसका शुक्रिया कहूँ तो कम होगा। :)

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  26. ’बनारस में जिधर देखो उधर खुदा है’ - सब बनारस वाले ये जानते हैं क्या?

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  27. स्मार्ट इन्डियन से सहमत :)

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  28. सुन्दर रचना ..शानदार व्यंग

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  29. शानदार व्यंग्य !

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  30. सुन्दर रचना, बहुत सुंदर व्यंग

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