तपती धूप में झुलसी, अकुलाई, प्यासी चिड़िया, हाँफते-हाँफते अपने घोंसले में आई और सोते चिड़े को जगाते हुए बोली-अजी सुनते हो ! मैं प्यास से मरी जा रही हूँ तुम हो कि बादल ओढ़ कर सोए हो ? अरे ! उठो भी, दो बूंद हमें भी पिला दोगे तो तुम्हारा क्या जायेगा ?
चिड़ा झल्लाया-एक तो आग में कूदती हो दूसरे ताने देती हो ! क्या जरूरत थी धूप में जान देने की ? मैने घोंसले में कोई कुआँ खोद रख्खा है जो तुम्हें पानी पिला दूँ ? गई थी तो कहीं तालाब तलाशती, अपनी प्यास बुझाती, चोंच में दो-चार दाने दबाती, मैं भी समझता कि मेरी चिड़िया मेरे लिए नाश्ते का प्रबंध करने गई थी। यह तो न हुआ, उल्टे ताने दे रही हो कि बादल ओढ़ कर सोया हूँ !
चिड़िया ने लम्बी सांस ली, गाल फुलाया और बोली-नाश्ते का प्रबंध मैं करूँ ? तुमने दो पायों से कुछ नहीं सीखा ? काहिल को काहिल कहो तो कौए की तरह काँव-काँव करता है। मैं यहाँ प्यास से मरी जा रही हूँ और तुम्हें इतना उपदेश याद है ! पूछा भी नहीं कि आखिर बिना पानी पीये क्यों आ गई।
चिड़ा खिलखिलाया-वही तो पूछ रहा हूँ मेरी जान। व्यंग्य बाण चलाना ही नहीं उसे सुनना, सहना भी सीखो। मैने तो पहले ही कहा था कि शाम होने दो, दोनो इकठ्ठे चलते हैं मगर तुमने नहीं माना। बड़ी चली थी भरी दोपहरी में नाश्ता-पानी करने। क्या किसी बाज ने छेड़ दिया ?
चिड़िया शर्माई-मेरी इतनी किस्मत कहाँ ! तुम तो पुराने शक्की हो। पहले मेरी प्यास बुझाओ, कहीं से भी लाकर एक चोंच पानी पिला दो, फिर इतिहास-भूगोल पूछना कि आज मैने क्या देखा। ये दोपाये मुंए खाली जंगल काट कर घर बनाना जानते हैं। हमारे बारे में तो कोई सोचता ही नहीं। पता नहीं क्या समझते हैं। हमको पानी नहीं मिलेगा तो ये क्या बच जायेंगे !
चिड़ा बोला-चलो मैं एक दोपाये को जानता हूँ जिसके पास बड़ा सा आम का बगीचा है। वह धरती खोद कर पानी निकालता है। तुम चुगलखोर हो, बातूनी हो, इसलिए मैने तुमसे यह बात छुपाई।
चिड़िया खुशी से फूली न समाई-तुम मक्कार हो पर हो बुद्धिमान। जल्दी चलो, मैं प्यास से मरी जा रही हूँ।
चिड़ा हंसते हुए बोला-काहिल हूँ न ! काहिल कभी नहीं चाहता कि कोई दूसरा आराम करे। मूर्ख श्रम करके तुम्हारी तरह भूखे-प्यासे रह जाते हैं, बुद्धिमान घर बैठे मस्त रहते हैं।
चिड़िया मारे गुस्से के चीखते हुए, चिड़े को चोंच मारने उड़ी-ऐसे लोगों को बुद्धिमान नहीं हरामखोर कहते हैं। चिड़ा उतनी ही फुर्ती से उड़ चला। चिड़ा आगे-आगे, चिड़िया पीछे-पीछे। दोनो ने एक आम के बगीचे के पीछे बंसवारी के पास गड़े पंपिंग शेट की जलधारा से अपनी प्यास बुझाई, पंख फड़फड़ाये फिर उड़ते-उड़ते वापस अपने घोंसले पर आकर दम लिया। वापस आकर चिड़ा बोला-अच्छा अब बताओ दिन में तुम्हारी टक्कर किस बाज से हो गई थी ?
चिड़िया कुछ देर तक तो बगीचे की याद में खोई रही फिर बोली-हाँ, मैं तो खाने-पीने के चक्कर में भटक रही थी। मैने देखा दोपाये भरी दोपहरिया में धूल-गर्द उड़ाते, चीखते-चिल्लाते भीड़ की शक्ल में बढ़े जा रहे हैं। एक बड़ा सा मैदान था जहाँ इत्ते सारे दो पाये इकठ्ठे हुए थे जितने आकाश में तारे ! मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि जाऊँ तो कहाँ जाऊँ ! कैसे अपनी जान बचाऊँ ! कहीं कोई वृक्ष नहीं। मैं भटक कर उनके ऊपर-ऊपर उड़ने लगी। उड़ते-उड़ते एक घोंसले नुमा डिब्बे में घुस गई जो वहीं बांस पर सबसे ऊपर अटका हुआ था। उस डिब्बे में जगह बहुत कम थी। भीतर डंडी की तरह कुछ बना हुआ था। मैं किसी तरह उसके सहारे अटकी, दो पायों को देखने लगी। ऐसा लगता था कि कोई बादल टूट कर गिरने वाला हो या धरती हिलने वाली हो। किसी के हाथ में डंडे, किसी के हाथ में वह वाला औजार जिससे ये दो पाये हमारा शिकार करते हैं। सबके सब चीख चिल्ला रहे थे। अचानक बादल गरजने की तेज आवाज हुई। मैं नीचे की ओर फेंका गई। एक दोपाये के सर पर गिरते-गिरते बची। मुश्किल से खुद को संभाल पाई वरना तुम मुझे देख भी नहीं पाते। मेरी समझ में नहीं आया कि ये दोपाये इतनी तेज धूप में भीड़ बनाकर क्यों इकठ्ठा हो रहे थे ?
चिड़िया की बात सुनकर चिड़ा जोर-जोर से हंसने लगा। हंसते-हंसते बोला-लगता है तुम इन दोपायों के किसी चुनावी सभा का चक्कर लगा रही थी। वह 'लाऊड स्पीकर' था जिसे तुम घोंसला समझ रही थी। इन्होने अपने बुद्धि के बल पर ऐसी व्यवस्था विकसित की है कि जिसमें गरीब और कमजोर भी निर्भय हो कर रह सकता है। इसे लोकतंत्र कहते हैं। इसमें वास्तविक शक्ति जनता के पास होती है। कानून का राज चलता है। बड़ी मछली छोटी मछली को नहीं निगल पाती। जो गलत करता है उसे सजा मिलती है। जो अच्छा करता है उसे पुरस्कार मिलता है। भेड़-बकरी भी कानून का संरक्षण पा कर शेर की गलती गिना सकते हैं।
चिड़िया बोली-हाँ, वह कोई चुनावी सभा ही रही होगी। मगर जो तुम कह रहे हो वह मुझे सच नहीं लगता। दो पाये इतने भले तो नहीं दिखते ! मुझे शहरी राज जंगलराज से भी बदतर नज़र आता है। यहाँ तो भेड़िया भी तभी शिकार करता है जब उसे भूख लगती है। दो पायों के भूख की कोई सीमा नहीं होती। पंछी छोटे से घोंसले में, चौपाये छोटी सी गुफा में खुश रहते हैं, दो पाये पूरी धरती, पूरा गगन ही हड़प कर जाना चाहते हैं। किसी के पास तो इत्ता बड़ा घर होता है कि पूरी भीड़ समा जाय, किसी के पास सर छुपाने के लिए जगह नहीं होती। जो घर बनाते हैं उन्हें मैने सड़क पर नंगे सोते देखा है। किसी के आंगन में अन्न के दाने बिखरे पड़े दिख जाते हैं, कोई चौपायों के गोबर से अन्न के दाने इकठ्ठे करता है। क्या इसी को लोकतंत्र कहते हैं ? कोई इतना ताकतवर जैसे शेर, कोई इतना निरीह जैसे चूहा। क्य़ा इसी को लोकतंत्र कहते हैं ? कोई कई खून करके भी खुले आम घूमते हैं, कोई बिना अपराध कई सालों तक जेल में बंद रहते हैं। क्या यही दो पायी कानून है ? यह व्यवस्था तो दो पायों की दरह दुरंगी है। इससे तो जंगल का कानून ही ठीक है। कम से कम कमजोर प्राणी किसी गफलत में तो नहीं जीता। यह तो नहीं होता कि चूहा, बिल्ली को मित्र समझकर उसके साथ रहने लगे और बिल्ली मौका पाते ही चूहे को दबोच ले।
चिड़ा, चिड़िया की बात सुनकर अचंभित हो सोच में पड़ गया। बोला-ठीक कहती हो। कुछ दो पायों ने अपने नीजी स्वार्थ में दो पाया कानूनी राज को जंगल राज से भी बदतर बना दिया है। मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि लोकतंत्र ही बेकार है। यह आदर्श जीवन जीने की संकल्पना है। दो पाये एक बुद्धिमान प्राणी हैं। मेरा विश्वास है कि ये इस समस्या से खुद ही निपट लेंगे। तुम मेरा माथा अधिक खराब मत करो। हमे अपनी चिंता करनी है। नदी सूख रही है, तालाब इन दो पायों ने पाट दिये, उस बगीचे का पानी भी सूख गया तो क्या होगा !
चिड़िया बोली-ठीक कहते हो। हमें अपनी चिंता करनी चाहिए। चलो ईश्वर से प्रार्थना करें कि इन दो पायों की बुद्धि इतनी न हरे कि हमे पीने के लिए पानी भी न मिले।
चिड़ा चिड़पिड़ाया-हाँ। नहीं तो ये भी बेपानी हो जायेंगे ! अपने और इनके हित के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना करना जरूरी है।
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(चित्र गूगल से साभार)
भगवान दोपायों को बुद्धि दे.
ReplyDeleteअपने और इनके हित के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना करना जरूरी है।
ReplyDeleteचिड़ा ने दोपायों की पोल खोल दी
ReplyDeleteकहानी के माध्यम से आपने चिड़ियों के मुंह से दोपायों को सटीक संदेश दिलवाया है।
ReplyDeleteप्रेरणाप्रद कहानी के लिए आभार।
कहानी बहुत अच्छा संदेश देती है...
ReplyDeleteप्रेरणादायक कहानी के लिए बहुत - बहुत आभार...
वाकई हम अपनी अक्ल का दुरुपयोग कुछ अधिक करते हैं ! बहुत मायनों में ये पशु पक्षी, हमसे अच्छे हैं जो शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में रहते है और " ओरगेनिक " फ़ूड और ड्रिंक्स का प्रयोग सस्ते में करते हैं ! :-)
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !!
एक रोचक संवाद के द्वारा सार्थक प्रस्तुति । निसंदेह चौपाये तो दोपायों से ज्यादा सहनशील , संवेदनशील और संतोषी जीव है। दूसरों के हित में ही अपना भी हित निहित है। आभार।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
अच्छा लिखा आपने
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट देखें
मिलिए हमारी गली के गधे से
अपने और इनके हित के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना करना जरूरी है।
ReplyDeleteचिड़िया भी दो-पाया है, पर जमीन पर चलने वाले हवा में ही उड़ा करते हैं।
ReplyDeleteक्या बात है !अनिमल फ़ार्म फेल इसके आगे !
ReplyDeleteअच्छे विचार जगाती कथा .......आभार !
ReplyDeleteएक सार्थक सन्देश देती हुई प्रेरक कथा....
ReplyDeleteचिड़े चिड़िया ने दोपाये पर इतनी लंबी बहस कर ली , परन्तु दोपाये ने तो सुना भी नहीं ।
ReplyDeleteअब तो इश्वर ही मालिक है उनका भी और दोपायों का भी ।
सुन्दर कथा। हर तंत्र में सुधार की गुंजाइश रहती ही है। लोकतंत्र को भी अभी और निखरना है।
ReplyDeleteएक अच्छा सन्देश देती प्रेरणाप्रद कहानी के लिए आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, भावपूर्ण व मानवजाति को सार्थक संदेश देती हुई कहानी देवेन्द्र जी। साधुवाद।
ReplyDeleteफर्क दोपायों और चौपायों का ...आपकी कहानी ने तो वाकई हमारी चैन ही हर ली!
ReplyDeleteसार्थक प्रेरणास्पद कहानी के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteइस दोपायी चिड़िया ने हम दोपायों को खूब समझा. इस प्यारी चिड़िया की तस्वीर भी बहुत सुन्दर है.
ReplyDeleteक्या बात है भईया बहुत खूब रही ये प्रस्तुति । काश की कोई दो पायों के समझा पाता ।
ReplyDeleteइन दो पायों की बुद्धि इतनी न हरे कि हमे पीने के लिए पानी भी न मिले....
ReplyDeleteसही विवेचना आपने की है।
अच्छी हितोपदेश की कथा रही पांडे जी.. लोकतंत्र वैसे भी बहुत समझदार लोगों का तंत्र है..जैसे चुहिया की किसमत में कोई सूरज, बादल,पर्वत नहीं सिर्फ चूहा ही होता है, उसी प्रकार जो हम डिज़र्व करते हैं वही मिल रहा है.. जिस दिन इन दोपायों ने ठाकुर बलदेव सिंह का डायलाग आत्मसात कर लिया कि "गब्बर सिंह से कह देना कि इस गाँव के लोगों ने पागल कुत्तों के आगे रोटियां डालना बंद कर दिया है" लोकतंत्र आ जायेगा.. नदियाँ पानी से लबालब और तालाब प्यास बुझाने लायक हो जायेंगे.. तब उन चिड़ियों के लिए घर के आँगन में पानी का बर्तन रखने की आवश्यकता नहीं होगी. आमीन!!
ReplyDeleteअच्छा संदेश देती कहानी
ReplyDeleteप्रेरणादायक कहानी के लिए बहुत - बहुत आभार...
चिड़िया की इस बात से कि "यह व्यवस्था तो दो पायों की दरह दुरंगी है। इससे तो जंगल का कानून ही ठीक है" अपन सौ फ़ीसदी सहमत।
ReplyDeleteदेवेन्द्र भाई, बहुत सरल और सहज तरीके से संदेश दे गई आपकी यह कथा।
बड़े ही रोचक और आकर्षक ढंग से आपने अपने विचारों को रखा....हम तो पढ़ना शुरू किये थे मजे के लिए बाद में पता लगा कि आपने तमचिया भी दिया है !
ReplyDeleteबहरहाल,असली दोपायों तक आपकी सुनवाई हो जाये ,यही काशी-विश्वनाथ जी से प्रार्थना है.
आपके लेखन से लगता कि पूर्वांचल में सूखा नहिये पड़ा है !
पहली दफ़ा की मुलाकात ज़ोरदार रही,उम्मीद है कि मिलते रहेंगे !
sundar prastui abhaar
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती कथा ...बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआहा .....
ReplyDeleteमैं न कहूँ आजकल खिड़की खुली रखने से भी हवा क्यों नहीं आती .....
तौबा .....
आजकल कहानियाँ लिखी जा रही हैं .....
वो भी इतनी रोचक शैली में की पूरी पढने की जिज्ञासा बच्चों की सी बनी रही ...
चिडे- चिडी की छेड़ छाड़ बहुत ही रोचक लगी ....
@ क्या किसी बाज ने छेड़ दिया ?
@ चिड़िया शर्माई-मेरी इतनी किस्मत कहाँ
@ वह 'लाऊड स्पीकर' था जिसे तुम घोंसला समझ रही थी।
कहानी के उद्देश्य की तो सबने तारीफ कर ही दी है ....मैं क्या कहूँ ....
दोपायों को सदबुद्धि आये दुआ है ....
बहुत रोचक और सार्थक प्रस्तुति...काश दोपाये कुछ सीख सकें ...
ReplyDeletewaah pandey ji !
ReplyDeletekitne sahaj-saral dhang se itni saari mahatvpoorn baaten kah di ,wah bhi rochal vyangy shaily me .
bahut achchi prastuti!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..काश ये सभी दोपाये को समझ आ जाये
ReplyDeleteछोटी-सी कहानी के माध्यम से सारा कच्चा-चिट्ठा ब्यक्त हुआ है.येसी और भी कहानियां लिखकर बच्चों के लिये ज्ञानवर्धक पुस्तक निकालने का प्रयाश करें तो कैसा हो ?
ReplyDeleteफेर पानी का और पानी के फेर में इन्सान . व्यंग की धार तेज है .
ReplyDeleteदेव बाबू,
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपको सलाम.....आपके बात कहने के अलग अंदाज़ के हम कायल हैं......कितनी खूबसूरती से आपने चिड़िया दम्पति के बहाने सारी बात कह डाली....वाह......अति प्रशंसनीय|
दोपाया......ये नाम याद रहेगा इंसान का :-)
बढ़िया संदेश देते हुए एक सशक्त और सार्थक कहानी
ReplyDeleteबढिया कहानी
ReplyDeleteकहानी के माध्यम से आपने चिड़ियों के मुंह से दोपायों को सटीक संदेश दिलवाया है....... आपकी इस एकांकी नुमा कहानी से नाटककार/ रंगकर्मी उर्मिलेश थपलियाल की याद आ गयी. उनके लिखने का अंदाज़ भी कुछ ऐसा ही चुटीला और सार्थक है.
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी,
ReplyDeleteआप भी बाज नही आये इतने गंभीर मुद्दे , जिस पर न जाने कितने मीटिंगें होती हैं लीटरों में शराब पी जाती है मिनरल वॉटर के साथ को अपनी शैली में कह ही दिया।
बहुत रोचक अंदाज आपकी तबियत के अनुसार......
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
रोचक प्रस्तुति के माध्यम से सशक्त सन्देश देती कहानी.
ReplyDeleteभगवान दो पायो को सदबुद्धी दे.
संदेश देते हुए एक सशक्त और सार्थक कहानी, प्रशंसनीय|
ReplyDeleteपहली बार आपके पोस्ट पे आया आपके सभी पोस्ट पढ़े आपकीलेखनी का मुरीद हो गया मै!
ReplyDeleteबड़े ही रोचक और आकर्षक ढंग से आपने अपने विचारों को रखा!
आप को हार्दिक शुभ कामनाएं ..
चिड़े चिड़ी ने शब्द दर शब्द हमारा दर्द बयां किया,हमारी त्रासदी बताई...
ReplyDeleteसचमुच कितना पीछे हैं हम पशु पक्षियों से ...कितना कितना पीछे....यह हरदम मुझे कचोटता है...
आपका कोटि कोटि आभार इस कल्याणकारी पोस्ट के लिए...
ईश्वर मनुष्यों को यह सब समझने और समय पर चेतने का सामर्थ्य दें..
बहुत सुन्दर,सार्थक कहानी
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