गड़गड़ कड़कड़, घन उमड़ घुमड़
टिप् टिप् टिप् टिप् टिप् टिपिर टिपिर
धरती पर बूंदें गिरती हैं
झर झर झर झर, झर झरर झरर।
मन फर फर फर फर उड़ता है
तन रूक रूक छुक छुक चलता है
सावन की रिम झिम बारिश में
दिल धक धक धक धक करता है।
यादों की खिड़की खुलती है
इक सुंदर मैना दिखती है
पांखें फैलाती झटक मटक
तोते से हंसकर मिलती है।
वो लंगड़े आमों की बगिया
वो मीठे जामुन के झालर
वो पेंग बढ़ा नभ को छूना
वो चोली को छूते घाघर।
पर इंद्र धनुष टिकता कब है?
कुछ पल में गुम हो जाता है
मोती वाले पल मिलते हैं
चलना मुश्किल हो जाता है।
कुछ कीचड़ कीचड़ रूकता है
फिर एक कमल खिल जाता है
कुछ भौंरे गुन गुन करते हैं
दिन तितली सा उड़ जाता है।
नोटः चित्र मनोज जी के ब्लॉग से उड़ाया हूँ।
बाबा रे आज तो लग रहा है जैसे स्कूल के कोर्स की किताब में किसी महान कवि की कविता पढ़ ली.
ReplyDeleteप्रकृति के प्रत्येक रंग को समेटे आपकी यह कविता निश्चित रूप से आजकल के मौसम में बहुत रोमांचकारी है ...!
ReplyDeleteशिखा जी सत्य कह रही हैं।
ReplyDeleteकविता के शिल्प से निराला के बादल राग की याद आ गई -- !
ReplyDeleteइस कविता की भाषा की लहरों में जीवन की हलचल हम साफ देख सकते हैं।
बहुत खूब! मैना का तोते से हंसकर मिलना और चोली का घाघर से मिलना बहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर!
बहुत सुंदर रचना .... सावन का दृश्य नज़रों के सामने आ गया ॥
ReplyDeleteयहाँ तो लगा कि कविता तो कविता,सावन बोलने लगा...!
ReplyDelete..नए अंदाज़ में प्राकृत-रचना !
पूरे सावन को हृदय के सत्य से भिगो कर शब्द दे दिये .....
ReplyDeleteसुंदर भाव ...सुंदर शब्द ...
बहुत सुंदर रचना ...!!
शुभकामनायें...!!
ग्रीष्म के सन्नाटे को टिपिर टिपिर ने तोड़ दिया..
ReplyDeleteरिमझिम- गुनगुन झूला- पींगे तोता- मैना...
ReplyDeleteपर इन्द्रधनुष और तितली सा उड़ जाता है पल !
सुन्दर कविता !
बरखा का सजीव चित्रण आपके शब्दों से हो रहा है ... अनुपम प्रस्तुति।
ReplyDeleteम्यूज़िकल रचना.....
ReplyDeleteसुन्दर!!!
अनु
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12 -07-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... रात बरसता रहा चाँद बूंद बूंद .
जैसे बारिश का एक विशाल केनवास खड़ा कर दिया आपने आँखों के सामने ... सजीव चित्रण बरखा का ...
ReplyDeleteसचमुच ऐसे दिन तितली से उड़ जाते हैं..
ReplyDeleteमनभावन कविता...
सुन्दर ऐसा लगा आप गा रहे हैं :-)
ReplyDeleteपर इंद्र-धनुष टिकता कब है -
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
अब बारिस न भी आए तो हम तो आपकी कविता की मधुर ध्वनियाँ कल्पित कर आनंद विभोर हो लेंगे . :)
ReplyDeleteबढ़िया :)
ReplyDeleteसुमधुर,सुन्दर गीत
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteसादर
waah machlti ...gumadh gumadh barsati rachna ...
ReplyDeletesundar si kavita hai....baarish aajkal ho rahi hai to ye kavita padhne mein aur bhi maza aa raha hai :)
ReplyDeleteजब से गीत मिला है बस गा ही रही हूँ..टिप टिप टिप टिप टिपिर टिपिर....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने |
ReplyDeleteआशा
सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteवाह !जीते रहो और यैसा ही मस्त गीत लिखा करो.शब्दों का अछ्छा सयोजन हुआ है.अर्चनाजी का गायन भी प्यारा और बहुत स्पष्ट है.साथ में आर्केष्ट्रा भी होता तो बहुत मजा आता.
ReplyDeleteनैसर्गिक शब्दों का सुन्दर प्रयोग और अर्चना चाव जी के सुन्दर स्वर के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeleteखुबसूरत कविता ,खुबसूरत आवाज
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