झिंगुरों से पूछते, खेत के मेंढक...
बिजली कड़की
बादल गरजे
बरसात हुयी
हमने देखा
तुमने देखा
सबने देखा
मगर जो दिखना चाहिए
वही नहीं दिखता !
यार !
हमें कहीं,
वर्षा का जल ही नहीं दिखता !
एक झिंगुर
अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला-
इसमें अचरज की क्या बात है !
कुछ तो
बरगदी वृक्ष पी गए होंगे
कुछ
सापों के बिलों में घुस गया होगा
मैंने
दो पायों को कहते सुना है
सरकारी अनुदान
चकाचक बरसता है
फटाफट सूख जाता है !
हो न हो
वर्षा का जल भी
सरकारी अनुदान हो गया होगा..!
.................................
नोटः यह एक पुरानी कविता है जिसे दो वर्ष पहले पोस्ट किया था। पुनः पोस्ट कर रहा हूँ। उन पाठकों के लिए जो मुझसे इधर जुड़े और जानता हूँ पुरानी पोस्ट कोई खंगाल कर नहीं पढ़ता।
( चित्र गूगल से साभार )
वाकई भैया हम भी उन्हीं पाठकों में से हैं जो बाद में जुड़ें है..
ReplyDeleteवर्षा का जल भी सरकारी अनुदान हो गया.
कविता बढिया लगी....
बहुत खूब . बढ़िया व्यंग . सरकारी अनुदान की बारिस में कुछ बेचारे जीव जंतु बेमौत मारे जाते हैं .
ReplyDeleteसच कह रहे हैं, यही लगता है..
ReplyDeleteवाह, क्या बात है! यहाँ तो लगता है सबकुछ ही सरकारी अनुदान हो गया है पानी, बिजली और व्यवस्था सब.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
पढ़ने के बाद एक ही शब्द ध्यान में आया ...
ReplyDeleteप्रभावशाली !!
सच्ची ..
:)
अच्छा किया दुबारा पोस्ट किया.हमें पढ़ने को मिल गई और आज भी यह कविता उतनी ही प्रासांगिक हैं.
ReplyDeleteसरकारी अनुदान सही है..बढ़िया एकदम.
वाह ! बखिया उधेड़ दी
ReplyDeleteलाजवाब
Kya baat kahee hai!
ReplyDeleteबरसात का जल तो फिर भी बिना भेद किये बरसता है,सरकार-बहादुर की बारिश पहचान-पहचान कर और छनकर पहुँचती है.
ReplyDelete....इसी बहाने सही,सरकार-बहादुर के कान उमेंठे तो...!
निशाना सरकार पर है या फिर ईश्वर पर :)
ReplyDeleteप्रकृति में ईश्वर है। प्रकृति उसकी सुनती है जो उसके साथ इज्जत से पेश आते हैं। मेढकों, झिंगुरों को इतना पता नहीं होता। वे असमान वितरण ही देख पाते हैं। हो सकता है वे ईश्वर को ही कोस रहे हों।:)
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बेहतरीन रचना
सावधान सावधान सावधान सावधान रहिए
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ सावधान: एक खतरनाक सफ़र♥
♥ शुभकामनाएं ♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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पुरानी बोतल में नयी शराब के बजाय नयी बोतल में पुरानी बरसात
ReplyDelete:)
Deleteसहमत कोई पुरानी पोस्ट नहीं पढता :-(
ReplyDeleteसुन्दर कविता दो पाए और उनकी सरकार....क्या कहें और।
Jee Dhyaan me aa
ReplyDeleterahi hai yah rachna |
aabhaar
बहुत ही बढ़िया व्यक्गात्म्क प्रस्तुति सरकारी अनुदान एकदम सही है सटीक रचना। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
sundar kavita
ReplyDeleteबरगदी बृक्ष पी गए होगे
ReplyDeleteइस सोच के लिए धन्यवाद .
:) :) एकदम मस्त टाईप की कविता है :)
ReplyDeletesatik chitrn...
ReplyDeleteमेरा कमेन्ट नहीं दिखाई दे रहा है.कविता बहुत सुन्दर है,सटीक ब्यंग है.
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