घाटशिला की यात्रा यूँ तो मैने बिटिया के समर इन्टर्नशिप के चक्कर में मजबूरी में की थी लेकिन इस यात्रा ने मुझे अग्निमित्र से मिला दिया। देश की भलाई सोचने वाली आग जो कुछ युवाओं के हृदय में प्रज्वलित होते दिखती है वही आग मैने एक सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षक के ह्रदय में देखी। उनकी कविताओं की पुस्तक 'फरियाद नहीं' पढ़ते हुए लौटा और वे पूरी तरह मेरे मन मस्तिष्क में छा गये। प्रस्तुत है उनकी एक कविता जिसका शीर्षक है...
अंधेरे की वजह
प्रज्वलित होने को प्रस्तुत
प्रदीप को
प्रदीप्त करती है
गुरूता की लौ।
एक जलती दीपशिखा
जलाती है, अनेक दीपशिखाएँ।
खुद बुझा गुरू
दीप्त, उद्दीप्त, प्रदीप्त नहीं कर सकता
अन्य दीपक।
साहबों-बाबुओं की
मेहरबानी खरीदती,
गुरूशिखा होती है परलोकवासिनी
इस उलूक तंत्र में।
नौकरशाही के पकाए
धर्म-नीति-मूल्य हीन
पाठ्यक्रम परोसता
ट्रांसफर पोस्टिंग की दुश्चिंता में
नींदे हराम करता
मास्टर नामधारी सर्वेंट,
अंधेरे की पहरेदारी करते
दफ्तरशाही के वजन के तले
खो बैठता है, आत्म-प्रकाश।
आदमी-जानवर, भेड़-बकरी-मकान
की गिनती करता,
परिवार नियोजन के इश्तहार चिपकाता,
एड्स से सुरक्षित रहने की बारीकियाँ समझाता
दफ्तर की हरेक सीढ़ी पर
बैठे अपने मालिकों को
सलाम बजाता,
रोजाना लघु-लघुतर होता हुआ,
खुद अंधेरे में पड़ा गुरू
परेशान
टटोलता है पिछले दरवाजे।
आलोक संधान के पाखण्ड में
उसकी आभा ढलान पर!
आशीष देने वाले सक्षम हाथ
अब जुड़े रहम की अपील में
अंधेरे से रोशनी की ओर ले जाने वाला
आज संचालक-संवाहक-विकीरक है
जड़ता का!
थपेड़ों-तूफानो ने कब की बुझा दी है उसकी लौ!
अब वह आदेशपाल, आश्रित निशाचरों-सेंधमारों का।
हुकुम है इसे-जलना मत
रास्ते मत करना रोशन
सियासत के रहमोकरम पर जीने वाले को मालूम है कि
स्याह के सिवा
कोई रंग मैच नहीं करता सियासत से।
आज कुल हैं, कक्षाएँ हैं,
कतारों में सोने-रूपे के दीपक हैं,
सिर्फ समा नहीं दिवाली का
दीपशिखाओं के बिना,
दीप है, बाती है, भक्ष्य है सिर्फ,
इजाजत नहीं तो रोशनी गुल है।
गायब गुरू, रोशनी रूखसत,
द्वीपांतरित महाश्वेता,
गुरू दीप बुझे तब
अनजले रह गये लघुदीप!
बन गई अंधेरे की वजह।
......................................
......मित्रेश्वर अग्निमित्र।
पुस्तकः फरियाद नहीं
प्रकाशकः पारिजात, कामता सदन, पूर्वी बोरिंग कनाल रोड,
पटना-800001
कौन जले किसके खातिर अब,
ReplyDeleteजलने को बुझना भाता है।
Nice !!
ReplyDeletehttp://www.liveaaryaavart.com/
बहुत सुन्दर गहन चिंतन कराती सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ...
ReplyDeleteइस सियासत ने ही सारे जुओं में भांग घोली है.
ReplyDeleteरामराम.
सरकारी तंत्र में प्राथमिक शिक्षक की भूमिका पर उत्तम निबन्ध है यह कविता।
ReplyDeleteकैसी त्रासदी है ..
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली रचना.
शिक्षक को क्या क्या नहीं करना पड़ता .... सुंदर और प्रभावशाली रचना ...
ReplyDeleteस्याह के सिवा
ReplyDeleteकोई रंग मैच नहीं करता सियासत से .........
बेहद सशक्त भाव !!!
prabhavshali rachna ...
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 19/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
धन्यवाद।
Deleteशिक्षा कभी बिकाऊ नहीं होनी चाहिए |
ReplyDeleteलेकिन मुझे एक वाकया याद आता है - मैं कोटा में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था, खबर आयी की सरकार कोचिंग बंद करवाने की खातिर प्रवेश परीक्षा में कुछ बदलाव करने वाली है | तो इस खबर पर मेरी कोचिंग के सबसे स्थापित टीचर ने साफ़ साफ़ यही कहा था की "एजुकेशन एक ऐसा बिजनेस है जिसमे कभी मंदी आ ही नहीं सकती , आप पैटर्न में कुछ भी चेंज कीजिए हमारा बिजनेस कभी नहीं गिरेगा |"
सादर
खुद बुझा गुरु प्रदीप्त नहीं कर सकता अन्य दीप...प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteबहुत कुछ कहती एक सटिक रचना।
ReplyDeleteसच कहा, गुरु को खुद आलोकित होना चाहिए
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ReplyDeleteसटीक ,प्रभावशाली रचना !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postअनुभूति : विविधा
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प्रभावी ...
ReplyDeleteसक्षम तरीके से अपनी बात को रक्खा है कवि मन ने ... गुरुता का महत्त्व देश निर्माण में सबसे अधिक है ... ये अलग बात है की आज के दौर में निम्न है ये स्थान ...
बहुत प्रभावी और सच बयान करती प्रस्तुति .......
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना ,प्रस्तुति के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteवर्तमान का सच तो यही है
ReplyDeleteमन को स्पर्श करती रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
http://jyoti-khare.blogspot.in
'खुद अँधेरे में परेशान
ReplyDeleteमास्टर नामधारी सर्वेन्ट
लघु से लघुतर होता हुआ
टटोलता है पिछले दरवाज़े,
आशीष देने वाले सक्षम हाथ
जुड़े रहम की अपील में
खो बैठा है आत्म-प्रकाश
संवाहक बना जड़ता का'
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बहुत सार्थक और समर्श अभिव्यक्तियाँ !
So true :(
ReplyDeleteThanks devendra ji isey share karne ke liye!
सचिव वैद गुरु तीनि जो प्रिय बोलहि भय आस,राज धर्म तन तीनिकर होहि बेगि ही नास ।
ReplyDeleteशिक्षक व शिक्षा की दुर्गति को एक विचारशील शिक्षक से अधिक कौन समझ सकता है । यथार्थ को प्रभाव के साथ प्रस्तुत करती हुई सुन्दर कविता ।
Ati sundar
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