1.9.13

भीड़ चलती भेड़ जैसी...

यार तू वैसा नहीं है
पास जब पैसा नहीं है।

रात लिखता है सबेरा
झूठ है! ऐसा नहीं है।

भीड़ चलती भेड़ जैसी
गड़रिया भैंसा नहीं है।

कर रहा है संतई पर
संत के जैसा नहीं है।

एक रावण सर कई हैं
क्या कहें! कैसा नहीं है।

मन बड़ा बेचैन मेरा
फूल के जैसा नहीं है।

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18 comments:

  1. सच कहा ॥

    कानून तो है पर
    न्याय जैसा नहीं है ।

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  2. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आपका-

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  3. संक्षिप्त शब्दों में बहुत सुन्दर बात कही है.

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  4. रात लिखता है सवेरा ....
    ये तो सच में झूठ नहीं है ... क्योंकि सवेरे की भूमिका में रात ही है ...
    हर शेर लाजवाब है ... मज़ा आ गया ...

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  5. कर रहा है संतई ,पर संत के जैसा नहीं है-आशाराम की याद आ गयी.
    गिने-चुने शब्दों में येक खूबसूरत प्रस्तुति.

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  6. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं !!

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  7. यार तू वैसा नहीं है ..
    वाह गुरु !!

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  8. रात लिखता है सवेरा , मगर यह झूठ हो ऐसा नहीं है।
    संत के जैसे संतई करे क्या जरुरी है , बेहतर है बिना संत बने ही संतई हो जाए !
    बेहतरीन !!

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  9. वाह, क्या खूब ग़ज़ल लिखी है आपने

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