यार तू वैसा नहीं है
पास जब पैसा नहीं है।
रात लिखता है सबेरा
झूठ है! ऐसा नहीं है।
भीड़ चलती भेड़ जैसी
गड़रिया भैंसा नहीं है।
कर रहा है संतई पर
संत के जैसा नहीं है।
एक रावण सर कई हैं
क्या कहें! कैसा नहीं है।
मन बड़ा ‘बेचैन’ मेरा
फूल के जैसा नहीं है।
ठीक है भाई!
ReplyDeleteआपने एक खूबसूरत पोस्ट लिखी और उसे एक धांसू शीर्षक से पाठकों तक पहुंचाया , हमने उसे सहेज़ लिया अपनी बुलेटिन के उस पन्ने के लिए जो आप तक ही और आप जैसे अन्य मित्र ब्लॉगरों तक पहुंचाने के लिए , बस एक चुटकी भर मुस्कुराहट मिला दी है , देखिए खुद ही ..आप आ रहे हैं न ..आज की बुलेटिन पर
ReplyDeleteवाह! लाजवाब!!
ReplyDeleteहै तो ऐसा ही !
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ReplyDeleteबहुत उम्दा !
बधाई स्वीकार करें !
हिंदी
फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !
सच कहा ॥
ReplyDeleteकानून तो है पर
न्याय जैसा नहीं है ।
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आपका-
वाह!
ReplyDeleteसंक्षिप्त शब्दों में बहुत सुन्दर बात कही है.
ReplyDeleteरात लिखता है सवेरा ....
ReplyDeleteये तो सच में झूठ नहीं है ... क्योंकि सवेरे की भूमिका में रात ही है ...
हर शेर लाजवाब है ... मज़ा आ गया ...
सुन्दर ,सरल
ReplyDeleteकर रहा है संतई ,पर संत के जैसा नहीं है-आशाराम की याद आ गयी.
ReplyDeleteगिने-चुने शब्दों में येक खूबसूरत प्रस्तुति.
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं !!
यार तू वैसा नहीं है ..
ReplyDeleteवाह गुरु !!
रात लिखता है सवेरा , मगर यह झूठ हो ऐसा नहीं है।
ReplyDeleteसंत के जैसे संतई करे क्या जरुरी है , बेहतर है बिना संत बने ही संतई हो जाए !
बेहतरीन !!
जय हो..
ReplyDelete:-))
ReplyDeleteवाह, क्या खूब ग़ज़ल लिखी है आपने
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