हाइ अल्लाह !!!! इतना खूबसूरत लेखन एक पल तो ऐसा लगा कि मोहम्मद अल्वी साहब को पढ़ रही हूँ। क्या बात है ! बैरागी रंगों की कबीरियत कितनी ख़ूबसूरती से निखर कर आ रही है आजकल आपके कलाम में
सार्थक प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (12-01-2015) को "कुछ पल अपने" (चर्चा-1856) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ... सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सफर ट्रेन का करता है भारत को तू देखा कर. एक आँख से कैमरे की प्रकृति को तू समेटा कर! बच्चों को ऊँचाई नहीं लम्बाई में देखा कर! फेसबुक पर धूम मचा ब्लॉग भी आया जाया कर! बेचैनी इस आत्मा की अपनों में सुलझाया कर! हमरे छोटे भैया हो, बस यूँ ही मुस्काया कर!
हाइ अल्लाह !!!!
ReplyDeleteइतना खूबसूरत लेखन
एक पल तो ऐसा लगा कि मोहम्मद अल्वी साहब को पढ़ रही हूँ।
क्या बात है ! बैरागी रंगों की कबीरियत
कितनी ख़ूबसूरती से निखर कर आ रही है आजकल आपके कलाम में
शुक्रिया।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteवाह बहुत ही लाजवाब ....
ReplyDeleteमस्त हैं सभी शेर ... कुछ कहते हुए ... चुटीले ...
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (12-01-2015) को "कुछ पल अपने" (चर्चा-1856) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका।
Deleteसुभानअल्लाह ! गागर में सागर...
ReplyDeleteआभार दी।
Deleteलाजवाब !
ReplyDeleteसंत -नेता उवाच !
क्या हो गया है हमें?
लाजवाब !
ReplyDeleteचेहरा तो जस का तस रखना है पर दर्पण बदलने की ज़िद सब लिये हुए हैं। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteसफर ट्रेन का करता है
ReplyDeleteभारत को तू देखा कर.
एक आँख से कैमरे की
प्रकृति को तू समेटा कर!
बच्चों को ऊँचाई नहीं
लम्बाई में देखा कर!
फेसबुक पर धूम मचा
ब्लॉग भी आया जाया कर!
बेचैनी इस आत्मा की
अपनों में सुलझाया कर!
हमरे छोटे भैया हो,
बस यूँ ही मुस्काया कर!
वाह वाह ! कमाल कर दिया आपने !
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