3.1.16

लोहे का घर-7

आज दून मिली। गलत समय थी तो मिल गई। सही होती तो न मिलती। किसी का गलत होना किसी के लिए सही हो जाता है और सही होना गलत। किसी की किस्मत फूटने से किसी की जग जाती है! आपकी पॉकेट मरा गई, आप रो रहे हैं मगर जिसको मिली वो हंस रहा है! बेटी घर से भाग गई, बाप की किस्मत फूटी मगर उस खुशनसीब को सोचिये जिसे उसकी महबूबा मिली! आप की ट्रेन छूट गई किसी को बर्थ मिल गया। कहने का आशय यह कि जिंदगी को आप जितना मनहूस समझते हैं, उतनी होती नहीं। यह अलग बात है कि खराब दिन आपको हमेशा याद रहते हैं, अच्छे दिन भूल जाते हैं। बाबूजी का थप्पड़ याद है, प्यार वाले दिन भूल गये कि ये तो उनका कर्तव्य था!
ट्रेन में काम चलाऊ भीड़ है। कामचलाऊ इसलिए कि अपना काम चल गया। एक हावड़ा जा रहे यात्री ने सहिष्णुता दिखाई और मुझे बिठा लिया। वो मुस्लिम मैं हिन्दू मगर सहिष्णुता है तो है। आप के कहने से कैसे मान लूँ कि सहिष्णुता कम हो गई है?
दूर जाने वाले यात्रियों में बेचैनी झलक रही है। अभी 3 घंटे लेट है तो रात में कोहरा पड़ेगा तब क्या होगा! और लेट हो जायेगी। ये लोग सफर का मजा नहीं ले रहे, लेट होने का मातम मना रहे हैं। एक तो 3 घण्टे लेट होने का वास्तविक दर्द ऊपर से लेट का मातम मतलब डबल कष्ट! हम मजा ले रहे हैं। यही सफर तो है जहाँ मजा ही मजा है। अपनी मर्जी के मालिक। दफ्तर में साहेब घर में साहेब के आगे एक शब्द और ..मेम साहेब डबल साहेब!
मरना अभी कोषों दूर है मगर मोक्ष की कामना में कितने कष्ट! पाप न करो, पुण्य लूटने की जरूरत क्या है? सफर का मजा लो। जीवन का आनंद लो। बेटे को पढ़ाने भेज रहे हैं, दुखी हैं! पहले पुत्री होने पर रोये, फिन योग्य वर के लिए रोये। चलो मान लिया कि दुःख का कारण था मगर अब जब बेटी की बिदाई हो रही है तो और भी जियादा रोये जा रहे हैं! अगर बेटी के जाने का दुःख होता है तो आने पर खुश क्यों नहीं थे? आने पर खुश थे तभी तुम्हें जाने पर दुखी होने का नैतिक हक है। बेटा-बेटी तो लम्बे सफर का एक हिस्सा भर है।
मंजिल काफी दूर है। सफर लम्बा है। छोटे-छोटे स्टेशन पर ट्रेन के लेट होने का मातम मनाकर पूरे सफर का मजा किरकिरा नहीं करते। ओ दूर जाने वाले यात्रियों! तुम्हारा मन बदले, सफर मंगलमय हो।
मेरा पड़ाव आ गया। मेरे साथी यूक्रेन से आई दो महिला पर्यटकों से बतिया कर बेहद खुश हैं। महिला पर्यटक भी उनसे बात कर के खुश लग रहीं हैं। खुशी-खुशी कटे सभी का सफर ....नमस्ते! (मैं नहीं, वे मुस्कुरा कर कह रहीं हैं। :)) जय हिन्दी, जय हिंदुस्तान। 
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स्टॉफ का लोग बहुत ख़याल रखते हैं। नाऊ से न नाऊ लेत, धोबी से न धोबी। केवट ने भी प्रभु राम से उतराई नहीं ली यह कहते हुए कि जब मैं आपके घाट आऊँगा तो आप भी मेरा बेड़ा पार करा देना।
‪#‎ट्रेन‬ में यात्रियों से पैसे मांगने वाला हिजड़ों का दल रोज के यात्रियों को देख कर बुरा सा मुँह बनाते हुए अपने सहेलाओं से कहता है-चलो! निकलो यहाँ से, यहाँ सब स्टाफ़ के हैं!!!
राजनैतिक दल भी जब कुर्सी से नीचे उतरते हैं तो सरकार से इसी भाव से मदद की अपेक्षा रखते हैं। जीता हुआ प्रत्याशी जब हारे हुए को गले लगाता है तो इसमें प्रत्यक्ष तो खेल भावना होती है मगर परोक्ष में वही स्टॉफ भाव से मदद करते रहने का आश्वासन छुपा होता है।
मैंने बहुत सोचा कि इतने लोग कह रहे हैं तो जरूर कहीं न कहीं असहिष्णुता बढ़ रही है। धीरे-धीरे बात साफ़ हुई कि असहिष्णुता इसी स्टॉफ भाव में बढ़ रही है। तभी संसद ठप्प है, तभी बेड़ा गर्क हो रहा है। सत्ताधारियों को स्टॉफ का कुछ तो ख़याल रखना चाहिये! 
smile emoticon
अब विपक्ष आरोप लगा रहा है कि असहिष्णुता बढ़ रही है, बदले की कार्यवाही हो रही है तो इसमें क्या गलत कह रहा है! देश का रख्खें चाहे न रख्खें आपको स्टॉफ का ध्यान तो रखना ही चाहिये! smile emoticon
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बढ़िया मौसम है। जाड़ा है तो जाड़े की धूप है। ‪#‎ट्रेन‬ है, साथी हैं, खट्टे-मीठे अनुभव हैं। खिड़की है, खूबसूरत नजारे हैं। झोपड़ी है, चौपाये हैं, गोबर पाथती ग्रामीण महिलाएं हैं। दूर-दूर तक कहीं खाली, कहीं हरे-भरे खेत हैं। सरसों, अरहर के फूल हैं। मटर बेचने वाला लड़का है। अमृतसर जाने वाले यात्री हैं। बज रही मोबाइलें हैं। प्यार भरी बातें हैं, संगीत है, गुरुबानी है।
कंकरीट के घरों में पुरुष और महिलाएं हैं, लोहे के घर में हिजड़े भी रहते हैं। रोज के यात्रियों से हंसी ठिठोली करते हैं। किसी को पकड़ते हैं, किसी से चिपकते हैं फिर ताली पीट कर हँसते हुए अपने साथी से कहते हैं-चलो! यह स्टाफ का है, पक्का!!!
लम्बा टीका लगाये साधू भेषधारी भिखारी हैं। दाढ़ी बढ़ाये, चादर फैलाये, किसी मजार के नाम पर चन्दा मांगते, नकली मोरपंख से फूँक मार कर दुःख दूर करने वाले चमत्कारी हैं।
कौन कहता है, हम सफर में हैं? हम तो चलते फिरते लोहे के घर में हैं। ऐसा घर जो हर पल यह एहसास कराता है कि हम एक ऐसे खूबसूरत देश में रहते हैं जिसका नाम भारत है।

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