देखो! सुनो! समझो! तब बोलो।
बोलो तो..
जोर-जोर से बोलो
पूरे आत्मविश्वास से बोलो
दो चार और सुनें कि तुमने
क्या देखा? क्या सुना? और क्या समझा?
जोर-जोर से बोलो
पूरे आत्मविश्वास से बोलो
दो चार और सुनें कि तुमने
क्या देखा? क्या सुना? और क्या समझा?
विचलित मत होना
जब वे बोलें
चिल्लाने मत लगना..
झूठ! झूठ!
तुम गलत! तुम गलत!
मैं सही! मैं सही!
जब वे बोलें
चिल्लाने मत लगना..
झूठ! झूठ!
तुम गलत! तुम गलत!
मैं सही! मैं सही!
ध्यान से सुनना
उन्होंने क्या बोला
और समझना
कि यह
उनका देखा, उनका सुना और उनका समझा सत्य है।
उन्होंने क्या बोला
और समझना
कि यह
उनका देखा, उनका सुना और उनका समझा सत्य है।
सत्य
सभी के लिये
कभी एक सा नहीं होता
सभी की
अपनी नज़र, अपनी शक्ति और अपनी समझ होती है
इसीलिये सभी के
अपने-अपने सच होते हैं।
सभी के लिये
कभी एक सा नहीं होता
सभी की
अपनी नज़र, अपनी शक्ति और अपनी समझ होती है
इसीलिये सभी के
अपने-अपने सच होते हैं।
सभी के सत्य एक होते तो
सभी
वृक्ष न बन गये होते!
सभी
वृक्ष न बन गये होते!
सत्य - लगता है देख लिया, जान लिया, समझ लिया
ReplyDeleteपर - होता कुछ और है
बहुत खूब ... ये तो है की हर किसी का अपना अपना सत्य होता है और देखने और समझने का नजरिया भी ...
ReplyDeleteसच सबके अपने-अपने सत्य होते हैं ..बस समझ का फेर है ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
बहुत खूब . सबके सत्य अलग अलग ही होते हैं पर एक सार्वभौमिक सत्य की तलाश तो होती है ..
ReplyDeleteजी..
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.1.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2582 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteकविता पसंद करने के लिए सभी का आभारी हूँ.
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