आसन और प्राणायाम की शिक्षा तो बचपन में उपनयन संस्कार के साथ ही मिल गई थी लेकिन महत्व तब समझ मे आया जब बाबा को टी.वी. में सिखाते हुए देखा! उस समय बाबा को देख कर लगा था...हांय! ये तो हमारे गुरुजी पहले ही बता चुके हैं!!! इसमें नया क्या है?
अंहकार को चोट लगी। गलती का एहसास हुआ, बचपन मे मिले गुरु मंत्र का महत्व समझ में आया और यह भी लगा कि हाय! हम कितने बड़े ज्ञान को भुला बैठे थे!!! हमारी थाती याद दिलाने के लिए लिए हम बाबा की इज्जत करने लगे। कुछ नए आसन सामने आए और कुछ के नए नाम सामने आए। आसन करते-करते इज्जत करने लगे, इज्जत करते-करते कभी दन्त मंजन, कभी आंटा, कभी ये, कभी वो..खरीदने लगे। खरीदते-खरीदते सुनने लगे...और यहीं गड़बड़ हो गई! योग और प्रकृति में जहाँ व्यापार और राजनीति घुस जाती है, सब नीरस लगने लगने लगता है। आनन्द जाता रहा। योग से रोग दूर होता है मगर योग ही रोग लगने लगे तब क्या हो? गुरू को शिष्य के प्रति इतनी दया तो दिखानी पड़ेगी। शिष्य आपके चरण बड़ी श्रद्धा से छूता है, उससे लाभ कमाने की कोशिश करोगे तो वह आपको व्यापारी और आपकी शिक्षा को राजनीति समझ लेगा! कहना न होगा योग से मन फिर उचट गया।
इधर फिर योग का बाजार गरम है। विश्व ने इसके महत्व को समझा है. बनारस के गंगा घाट पर अवतरित हुए योग गुरुओं से विदेशी नागरिकों को योग सिखते हुए देखा जा सकता है। इतने आसन , इतने नाम और इतने योग गुरु हैं कि सब आसन याद रखना बड़ा कठिन है। इस परेशानी से बचने के लिए अब एक शार्ट कट फार्मूला अपना लिया है..होश और संतुलन बना कर खाली पेट जो करो वही योग है। होश मतलब चैतन्य। आती-जाती सांस का एहसास, हवा के स्पर्श का एहसास, हर आहट का एहसास..जितना हो सके चिंता और चिंतन से दूर रहकर होश में रहने का प्रयास। सन्तुलन मतलब शरीर के अंग-अंग का सन्तुलन. खड़े होकर हिलाओ, बैठ कर हिलाओ, लेट कर हिलाओ..आहिस्ता-आहिस्ता.. आराम-आराम से। पेट फुलाओ/पचकाओ, हाथ उठाओ/गिराओ, सांस लो/छोड़ दो। गरदन घुमाने का मन कर रहा है, गरदन घुमाओ. जितना दायें घुमाओ, उतना बाएं घुमाओ. गोल-गोल घुमाने का मन है? गोल-गोल घुमाओ. आँखों की पुतली को घुमाना है? घुमाओ. जीभ बाहर निकालना है? निकालो. ठहाके लगाना है? लगाओ. कमर हिलाना है? हिलाओ. थक गए तो लेट जाओ. लेटे-लेटे साइकिल चलाओ. जो मन करे, वो करो. बस संतुलन बनाए रखना. जबरदस्ती मत करना. जब तक आनद आता है अपने सभी अंग को हिलाते-डुलाते रहो. आहिस्ता-आहिस्ता, धीरे-धीरे... जितना इधर करो, उतना उधर करो। जो मर्जी आये वो करो..होश और सन्तुलन बना कर खाली पेट जो करो वही योग है।
होश और संतुलन! :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर परिभाषा योग की..
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