25.6.17

वही घर है, वही माँ हैं, वही बाबूजी

लोहे के घर में
पापा
बेटे को सुला रहे हैं कंधे पर
हिल रहे हैं, हिला रहे हैं
बेटा
ले रहा है मजा
खुली आंखों से!
पापा
सोच रहे हैं
सो चुका है बेटा
लिटाना चाहते हैं बर्थ पर
बेटा हँसता है
पापा
मुस्कुराकर डाँटते हैं..
नहीं मानेगा?

धरती पर
जब तक बच्चे हैं
बचपना है
जब तक युवा हैं
जवानी है
कोई कहीं नहीं गया
वही गलियाँ हैं
वही घर है
वही
माँ हैं

वही
बाबूजी।
................

5 comments: