फेसबुक में पढ़ाकू मित्रों द्वारा अपनी पढ़ी हुई पुस्तकों की चर्चा करते हुए नित्य पोस्ट डाली जा रही हैं. उनकी पोस्ट को यहाँ इस उद्देश्य से कॉपी पेस्ट किया जा रहा है ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये . फेसबुक की पोस्ट अक्सर गायब हो जाती हैं.
(1) वंदना अवस्थी दुबे
रदीप सक्सेना जी ने मुझे टोका भी कि तुम पढ़ती भी हो या बिना पढ़े हर दूसरे दिन किताब जमा करा जाती हो? मन किया था किताब ज़ोर से उनकी टेबल पर पटकूं, और कहूँ कि पूछिये इसके अंदर का कोई भी प्रसंग! हुंह! लेकिन ऐसा कर नहीं पाई 😞तो इसी दौरान मुझे लाइब्रेरी में मिली प्रथम प्रतिश्रुति। ये आशापूर्णा देवी का ज्ञानपीठ से सम्मानित उपन्यास है। इस उपन्यास को शुरू करने के बाद, बन्द करके रखने का मन नहीं होता था। लगता था, कितनी जल्दी पढ़ने बैठूँ। इसके आगे के भी दो सीक्वल उपन्यास हैं, बकुलकथा और सुवर्णलता। लेकिन प्रथम प्रतिश्रुति की सत्यवती तो जैसे किसी को टिकने ही नहीं दे रही थी। उस काल में आठ साल की बच्ची का विद्रोह!! असल में यही है नारी मुक्ति आंदोलन, जिसकी अलख, उस वक़्त आशापूर्णा जी ने सत्यवती के ज़रिए जगाई। ये मेरा प्रिय उपन्यास है।
दूसरे नम्बर पर मेरा पसन्दीदा उपन्यास है, अभिमन्यु अनत का लिखा "लाल पसीना"! अभिमन्यु अनत मॉरीशस के लेखक हैं। लेकिन इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय मजदूरों की व्यथा को जिस तरह लिखा है, उससे ऐसे लगता है जैसे उन्होंने खुद इस तक़लीफ़ को जिया हो। लाल पसीना उन भारतीय मजदूरों की दास्तान है जिन्हें फ्रांसीसी और ब्रिटिश ताक़तें, सोना मिलने का लालच दे के अपने साथ मॉरीशस ले गए और फिर उनसे ताउम्र न केवल हाड़तोड़ मेहनत करवाते रहे, बल्कि दिल दहलाने वाली सज़ाएं भी देते रहे। मेरा आग्रह है, कि जिन्होंने ये उन्यास नहीं पढ़े हैं, वे इन्हें ज़रूर पढ़ें।
मम्मी कहती थीं कि -"अव्वल तो हमारे घर में चोर आएगा नहीं और अगर आया तो माथा पीट लेगा चारों ओर केवल किताबें देख के।"
तो किताबों से उठने वाली गन्ध, कब खुशबू बन गयी पता ही न चला। बस इन्हीं दिनों पढ़ी विमल मित्र की "बेग़म मेरी विश्वास" और विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की "आदर्श हिन्दू होटल" कभी न भूलने वाली पुस्तकें हैं।
बेग़म मेरी विश्वास (बिस्वास) 1700 पृष्ठों का वृहद ऐतिहासिक उपन्यास है। भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना के कालखंड पर आधारित एक वृहत महागाथा जो हमें सन् 1757 प्लासी के युद्ध के बीच लाकर खड़ा कर देती है।
‘बेगम मेरी विश्वास’ मी मराली विश्वास गाँव-देहात की एक गरीब लड़की है लेकिन तात्कालिक घटनाओं के चलते भारत के इतिहास को बदलने में प्रमुख भूमिका निभाती है। घटना चक्र कुछ ऐसा चलता है कि यही मराली विश्वास, सिराजुद्दौला के हरम में पहुँचकर मरियम बेगम हो जाती हैं और बाद में क्लाइव के पास पहुँच कर बन जाती है मेरी। हिन्दू, मुसलमान और ईसाई तीन विभिन्न धर्मों के संगम की प्रतीक बन जाती है एक मामूली सी लड़की।
दो इतिहास पुरुष सिराजुद्दौला और क्लाइव के बीच थी एक नायिका मराली यानी बेगम मेरी विश्वास, दोनों शत्रुओं का समान रूप से विश्वास जीतने वाली।
सिराजुद्दौला, क्लाइव और मराली तीनों के माध्यम से दो शती पूर्व के बंगाल के इतिहास में दर्ज घटनाएँ अपने आप आँखों के सामने बिखर जाती हैं।
विमल मित्र जादुई लेखक हैं। उनकी लेखनी गज़ब का तिलिस्म गढ़ती है।आमतौर पर वे कुछ न कुछ रहस्य, अपने उपन्यास में ज़रूर इस्तेमाल करते हैं और पाठक उनके द्वारा रचे गए रहस्य को तब तक नहीं जान पाता, जब तक कि वे खुद न बता दें। ये उपन्यास लाइब्रेरी में उपलब्ध होगा ही, खोज खाज के पढो बन्धुओ 😊
दूसरी पुस्तक है विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की "आदर्श हिन्दू होटल" ये इतना स्वादिष्ट उपन्यास है कि क्या कहूँ! मैंने तीन बार पढा है और जब भी पढ़ा, भूख अपने चरम पर पहुंची ही 😋 पूरी कहानी एक ग़रीब रसोइये, हजारी पंडित, होटल मालिक बेसु चक्रवर्ती और होटल की नौकरानी पद्दो के चारों और घूमती है। कैसे हजारी होटल की बदमाशियों को बर्दाश्त करते करते खुद का स्ट्रीट होटल खोल लेता है, और किस तरह ईमानदारी से आगे तक ले जाती है। जहां भी मिले, पढ़ें ज़रूर।
पटना में हमारा मकान बड़ा हुआ करता था, बाद में बँटवारे और आस-पास बड़े और ऊँचे मकानों के बन जाने के कारण हमारा मकान छोटा होता गया. फिर धीरे धीरे खिड़कियों ने भी अपनी आँखें मूँद लीं. लेकिन हमारा दो मंज़िला पुराना मकान आज भी हवा महल की तरह पहली और दूसरी मंज़िल तक खिड़कियों से भरा पड़ा है. चौंकने की बात नहीं, एक पुरानी कहावत है कि बिना किताबों का घर, बिना खिड़कियों के मकान की तरह होता है. आज वहाँ और यहाँ मेरे पास इतनी किताबें हैं कि अपने आप में एक पूरी लाइब्रेरी है हमारा घर.
वंदना जिज्जी ने एक ऐसे धर्म संकट में डाल दिया कि क्या कहूँ, किसका नाम लूँ और किसका ज़िक्र करूँ. अलग अलग विषयों पर इतनी सारी पुस्तकें हैं कि धारावाहिक वर्णन करूँ तब जाकर बात पूरी होगी. फिर भी जिस पुस्तक का ज़िक्र मैं करना चाह्ता हूँ वो है पर्ल एस. बक का उपन्यास Come My Beloved. भारत में आई ईसाई मिशनरी और एक परिवार की लड़की का भारतीय युवक से प्रेम, परिवार का विरोध और लड़की का भारत छोड़ना. और क्लाइमैक्स आशा से परे, चौंका देने वाला. यह उपन्यास दुबारा मुझे कहीं नहीं मिला. बिटिया ने पिछले साल PDF दिया.
एक ऐसा ही उपन्यास है चेम्मीन, तकषि शिवशंकर पिळ्ळै का मलयाळम उपन्यास. एक ऐसी प्रेमकथा जिसका रिव्यू नहीं लिखा जा सकता. कयोंकि वो सिर्फ महसूसने की चीज़ है. और लगभग उनके सभी मलयाळ्म उपन्यास, ज़मीन से जुड़े और दिल के करीब. इनके अलावा फ़णीश्वर नाथ रेणु का मैला आँचल, डॉ. राही मासूम रज़ा का आधा गाँव, दिनकर की रश्मिरथी, बच्चन जी की आत्मकथा शृंखला, श्रीलाल शुक्ल की राग दरबारी और आदमी का ज़हर, विमल मित्र के सभी बांग्ला उपन्यासों का जादू. कुछ और उपन्यासों के नाम लूँ तो John Grisham का The Brethren, रवि सुब्रमनियन का If God was a Banker, शिवाजी सावंत का मृत्युंजय, विष्णु सखाराम खाण्डेकर का ययाति, अमृतलाल नागर का खंजन नयन, गुलज़ार साहब की पंद्रह पाँच पचहत्तर, पाओलो कोएल्हो की एलेवेन मिनट्स…
कितने नाम गिनाऊँ. यहाँ एक बार जो दाख़िल हो जाए कोई तो एक नया संसार सामने होता है.
किताबों की कीड़ा हमारे अंदर अब चौथी पीढ़ी तक पहुँच चुका है. मेरे दादा जी से यह पिता जी तक और फिर हम भाई बहन से हमारे बच्चों तक. अभी ज़िक्र दादा जी का. उनकी चार प्रिय पुस्तकें थीं और उन्होंने इन्हें इतनी बार पढ़ा सुना था कि उन्हें ज़ुबानी याद थीं ये किताबें –
1. वयम् रक्षाम: - आचार्य चतुरसेन
2. वैशाली की नगरवधु - आचार्य चतुरसेन
3. मृत्युंजय – शिवाजी सावंत
4. रश्मिरथी – दिनकर
मृत्युंजय और रश्मिरथी उन्हें कर्ण के चित्रण के कारण पसंद थी. रश्मिरथी तो वो मुझे सस्वर पढ़ने को कहते थे और जब मैं पढ़ता तो विभोर हो जाते थे और कई मार्मिक स्थलों पर उनके आँखों से गंगा जमुना बहने लगती थीं. वयम् रक्षाम: और वैशाली की नगरवधु उन्हें तथ्यात्मक विश्लेषण और भाषा के कारण पसंद थीं. इन दिनों पौराणिक पात्रों को लेकर काल्पनिक उपन्यास लिखने की बड़ी ज़बर्दस्त होड़ लगी है. किंतु वयम् रक्षाम: आज भी अपनी एक अलग पहचान रखता है.
मृत्युंजय लगभग दो तीन दशक के बाद मैंने हाल में पढ़ना शुरू किया. लेकिन अब यह पुस्तक मुझे पसंद नहीं आई. घटनाओं को मेलोड्रैमेटिक बनाने की पूरी कोशिश गयी है और लिखते समय ऐसा लगता है कि पात्रों को आगे की घटनाओं का पहले से पता है. हर घटना भविष्य की किसी घटना को प्रेडिक्ट करती सी प्रतीत होती है. फिर भी यह उपन्यास मेरा प्रिय उपन्यास है. दादा जी साहित्यिक व्यक्ति नहीं थे, लेकिन एक बहुत ही सीरियस पाठक थे और उनके नोट्स अपने आप में किसी समीक्षा से कम नहीं होते थे.
मेरी प्रिय किताबों में मनु शर्मा जी की "कृष्ण की आत्मकथा" जो कि आठ भागों में है भी शामिल है..... भाषा शैली,घटनाएं, सबसे बढकर पुस्तक का कलेवर ही बेहद शानदार है.......इंसान बाध्य हो जाय पढने के लिए सचमुच 😊😊😊😊
1-नारद की भविष्यवाणी
2-दुरभि संधि
3-द्वारका की स्थापना
4-लाक्षाग्रह
5-खांडव वन
6-राजसूय यज्ञ
7-संघर्ष
8- प्रलय..
पढते समय जैसे उसी समय में जीने लगते हैं...कई दिनों तक उसी भाव में डूबते उतराते 😊😊😊 महसूस करते हुए...
मैं क्यों पढ़ती हूँ ?? ....या बिना पढ़े क्यों नहीं रह पाती हूँ??..या हर समय क्यों पढ़ती रहती हूँ ??........... ये मेरे लिए बहुत विकट प्रश्न है..........मैं कुछ भी पढ़ सकती हूँ.....अगर पढने के लिए कुछ नहीं है तो पंचांग और रेलवे टाइम टेबल से लेकर फ़ोन डाइरेक्टरी तक ....झाडू लगते वक़्त कूड़े में पड़े चिरकुट तक सब कुछ पढ़ लेती हूँ......और मजे की बात है सबमे कुछ न कुछ अच्छा मिल ही जाता है....
मम्मी के नहीं रहने पर जो उनके लिए पूजा इत्यादि हुई थी....उस वक़्त पूजा के लिए कपूर जिस पुडिया में लपेट कर लाया गया था......वो पुडिया संयोग वश मैंने ही खोली........और आदतन उसमे .....लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ पढने का लोभ ......नहीं संवरण कर पाई.....और मुझे देख कर बड़ी ही हैरत और दुःख हुआ...कि वे पंक्तियाँ किसी ...बच्चे ने अपनी माँ के लिए लिखी थी...........शायद किसी डायरी का पन्ना था वो.......उस माँ के लिए जो शायद घर छोड़ के चली गई थी या दुनिया छोड़ के ........ये साफ़ नहीं था...पर उस बच्चे का पूरा दुःख बयां हो रहा था........वो पृष्ठ आज भी मेरे पास सुरक्षित है........हम सभी मम्मी के लिए दुखित थे......उसमे उस पृष्ठ ने जैसे मरहम का काम किया.......
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मुझे किताबों से अच्छा कोई गिफ्ट नहीं लगता ........आज ही नहीं बचपन से ही किताबो के प्रति जो मेरा प्रेम भाव बना हुआ है..........(बेशक कोर्स की किताबों को छोड़ कर ) वो आज भी वैसे ही बरकरार है......किताबों को देख कर ............मैं खुद को रोक ही नहीं पाती..............अगर मुझसे पूछा जाये .............जीवन में सबसे सुखद क्षण कौन से होंगे आपके लिए.?? .......तो मैं यही कहूँगी.....छुट्टी का दिन......साफ़ स्वच्छ बिस्तर......हाथ में चाय से भरा मेरा मनपसंद बड़ा मग ...जो मेरे बेटे Chitrarth Tewariने मुझे गिफ्ट किया है......(जिस पर लिखा है ..यू आर द बेस्ट मदर .).......और मेरे मनपसंद साहित्यकार.........(जिनकी लिस्ट बहुत लम्बी है ) की खूब बढ़िया किताब... ......नहाने धोने और खाने की कोई जल्दी नहीं........ इस से ज्यादा बढ़िया दिन मेरे लिए और कोई नहीं हो सकता ...........
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मेरी अब तक की पढी हुई किताबों में शिवानी की लगभग सभी रचनाएं.... विष्णु प्रभाकर की"आवारा मसीहा" नागर जी की "नाच्यो बहुत गोपाल", "खंजन नयन", शिवाजी सावंत की "मृत्युंजय" विमल मित्र की "सुरसतिया",खरीदी कौड़ियों के मोल", "इकाई दहाई सैकड़ा"," साहब बीवी और गुलाम ", अखिलन की" "चित्रप्रिया" आशापूर्णा देवी की " प्रथम प्रतिश्रुति "मैत्रेयी पुष्पा दी की" चाक", "इदन्नमम""गुडिया भीतर गुडिया"अमृता प्रीतम की सारी रचनाएं, इस्मत चुगताई और मंटो की कई किताबें,, मन्नू भंडारी की "आपका बंटी ".निर्मल वर्मा की" एक चिथडा सुख" और धर्मवीर भारती की " गुनाहों का देवता" याद आ रही है.....वैसे तो अनगिनत हैं कितनों का नाम लूं😊😊
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गोविन्द चन्द्र पाण्डे और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteये बहुत बढ़िया काम किया आपने। अपनी, वन्दना गुप्ता की, गंगाशरण और शिखा की पुस्तक चर्चा भी सहेजिये न।
ReplyDeleteशिखा जी शार्टकट मार रही हैं। खाली फोटू खीच के पोस्ट करी हैं। ऐसे चर्चा अधूरी मानी जाएगी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-08-2018) को "परिवारों का टूटता मनोबल" (चर्चा अंक-3050) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये बढ़िया काम किया आपने इसके माध्यम से कई किताबे मेरे प्रकाश में आ गयी जिन्हें में पढना पसंद करुँगी
ReplyDeleteअरे वाह !!! बहुत ही सराहनीय कार्य आपका .... बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं ...सादर
ReplyDeleteलेकिन सबकी पोस्ट तो नहीं है....
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