ढूँढ रहा था अपने ही शहर की गलियों में भटकते हुए बचपन का कोई मित्र जिसके साथ खेले थे हमने आइस-पाइस, विष-अमृत या लीलो लीलो पहाड़िया. हार कर बैठ गया पान की एक दुकान के सामने चबूतरे पर. बड़ी देर बाद एक बुढ्ढा नजर आया. बाल सफ़ेद लेकिन चेहरे में वही चमक. ध्यान से देखा तो वही बचानू था! जोर से आवाज लगाई..अबे! बचनुआँsss! पहिचान नहीं रहे हो का भो@#..वाले?
वह लपकते हुए पास आया..अच्छा तो तुम हो! हम कहे कौन मादर..@# आ गया..भो@#..का जो हमको इस नाम से पुकार रहा है..बचनुआँ! एक टीलाई(चपत) देंगे बु@# के ...इत्ते बड़े हो गए मगर ..अबे..बचनुआँ! बड़े हो गए हो अब..यहाँ हमारी इज्जत है. चलो! घर चलो..चाय पिलायें.
तुम्हारे बाल तो सरफ के झाग की तरह सफ़ेद हो गये बे!
तुम्हारे कौन काले हैं? हमरी तरह डाई लगाना छोड़ दो फिर पूरी लुंगी खुल के हाथ में आ जावेगी!
और बताओ..गंगारेडियो कैसी है?
हा हा हा ...गंगा रेडियो के दूकान में तुम न घंटों खड़े रहते थे बे? कि आयेगी रेडियो बनवाने.
बैंड बज गया तुम्हारा?
नहीं यार! शादिये नहीं किये!! तुम कर के कितना झां$ उखाड़ लिए?
शादी नहीं किये! पक्के मजनू निकले!!!
नहीं ...वो बात नहीं है भो..#$ के ...मन ही नहीं हुआ....चुप करो.. फालतू की बात मत करो..लो चाय पीयो! आया करो कभी इधर..तुम्हारे मकान का तो काया पलट हो गया है. और तुमको पता है? राजनाथ मर गया.
ओह..! तब तो शतरंज की अड़ी लौ@ लग गई होगी?
शतरंज! अब किसको फुरसत है शतरंज खेलने की? किसी के पास इतना समय है क्या भो...? तुम खेलते हो अब भी?
नहीं ...सब छुट गया. अब जो भी समय मिला फेसबुक में लिख-पढ़ लिया बस्स!
और बताओ? वो तुम्हारी काव्य गोष्ठी? अभी भी च्यूतियापा करते हो!
भक भो#@ के! कविताई तुमको च्यूतियापा लगती है? जितनी समस्या आज बढ़ी है न! वह सब शतरंज न खेलने और साहित्य से दूर रहने के कारण बढ़ी है. सब खाली निन्यानबे के चक्कर में भाग रहे हैं.
उसमें समय बहुत बरबाद होता है ..तुम मानो या न मानो.
समय! अब जो आज के लौंडे चौबीसों घंटा फेसबुक और वाट्सएप में गां@ मराते हैं ..वह क्या है? समय बरबाद नहीं होता? समय तो रजा वही समय है..हमने सिर्फ इस्तेमाल करने का तरीका बदल दिया है. पान खिलाओ!
चलो पान खिलाते हैं...आया करो कभी-कभी ..अच्छा लगा.
आयेंगे...आना ही पड़ेगा..पता तो करना ही है कि बचानू के गंगा रेडियो का क्या हुआ...!
चुप बे!...पान जमाओ...उसका नाम अब दुबारा मत लेना ...जय राम जी की।
जिया हो राज्जा... आज हमने भी दुबारा ब्लॉग पर लौटने का फैसला कर लिया. आज सालगिरह भी है हमारे ब्लॉग की. लगभग यही बात हमने भी कही है... मगर ऊ का कहावत है न..
ReplyDeleteहैंं और भी दुनिया में ब्लॉगर बहुत अच्छे
कहते हैं देवेंदर का है अंदाज़-ए-बयाँ और!
चहुचक पोस्ट!!
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Deleteलाजवाब ---- दृश्य जीवंत हो गए
ReplyDeleteआभार।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/04/2019 की बुलेटिन, " जोकर, मुखौटा और लोग - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार।
Deleteधन्यवाद।
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