क्या तेरा क्या मेरा पगले
चार दिनों का फेरा पगले
छोरी-छोरा छुट जाएंगे
उठ जाएगा डेरा पगले
पत्थर का दिल क्यों रखता है
तन माटी का ढेरा पगले
बिन दीपक ना मिट पाएगा
अंधियारे का घेरा पगले
सूरज सा चमका है जग में
जिसने तन मन पेरा पगले
मूरख क्यों करता गुरुआई
एक गुरु सब चेरा पगले
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteएक गुरू सब चेला पगले -बिलकुल सही बात !
ReplyDeleteबहुत खूब ..देवेन्द्र जी बेहतरीन भाव प्रस्तुत किए आपने....हर लाइन लाजवाब...बधाई
ReplyDeleteपत्थर का दिल क्यों रखता है
ReplyDeleteतन माटी का ढेरा पगले
बिन दीपक ना मिट पाएगा
अंधियारे का घेरा पगले ...
बहुत सुंदर.
"क्या तेरा क्या मेरा पगले
ReplyDeleteचार दिनों का फेरा पगले"
kash ise hum jeevan me utar paate to kitna sukhmay ho ye jeevan!
मूरख क्यों करता गुरुआई
ReplyDeleteएक गुरु सब चेरा पगले
bahut sahii hai ..
बहुत खूब........
ReplyDeleteउम्दा रचना
नमस्कार
ReplyDeleteपत्थर का दिल क्यों रखता है
तन माटी का ढेरा पगले
बहुत सुंदर
बहुत ही वज़नदार ग़ज़ल है। सभी शे’र बेहतरीन! आभार!
ReplyDeletebahut hi achhi gazal hai
ReplyDeleteपत्थर का दिल क्यों रखता है
ReplyDeleteतन माटी का ढेरा पगले
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
अति सुन्दर भाव लिए रचना।
ReplyDeleteबस समझ लें तो ।
behatareen/lajawaab...........anupam rachna.
ReplyDeletebahut sunder baat ko le dil se likhee gazal bahut acchee lagee .
ReplyDeleteaabhar Devendrajee .
देवेन्द्र जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल जीवन के यथार्थ को दर्शाती.हर एक बात लाज़वाब
ReplyDeletejindagi ki sachachi ko yatharthtah bayan kar ti aapki yah post bahut hi achhi lagi.
ReplyDeletepoonam
बहुत उम्दा रचना!
ReplyDeleteek shikashaprad kavita ke liye aabhar aapka
ReplyDeletejordar rachna dil ko chuti hui....
ReplyDeleteSateek baat... sundar hindi gazal.
ReplyDeleteबिन दीपक ना मिट पाएगा....अंधियारे का घेरा पगले
ReplyDeleteसूरज सा चमका है जग में...जिसने तन मन पेरा पगले
वाह....
छोटी बहर में बड़ी बात.
मुबारकबाद..
छोटी बहर में कमाल किया है आपने...हर शेर अपने आप में मुकम्मल है और बेहद खूबसूरत है...मेरी बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
"इस दामन में क्या-क्या कुछ है..."
ReplyDeleteसलोनी-सी गज़ल ! आभार ।
आपकी पिछली कविता जैसा ही असर है इस ग़ज़ल में भी..
ReplyDeleteसूरज सा चमका है जग में
जिसने तन मन पेरा पगले
बहुत सुन्दर ख्याल..
बस शीर्षक ही कम पसंद आया हमें...
एक हिंदी ग़ज़ल के बजाय..
''एक ग़ज़ल''...........लिखना ही काफी था जनाब...
पत्थर का दिल क्यों रखता है
तन माटी का ढेरा पगले
ये शे'र तो बहुत ही पसंद आया...
क्या बात कह दी है...
aabhaari hoon.
ReplyDeletethanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बेचैन आत्मा..............
ReplyDeleteऐसा नाम रखा है अपने की लिख्जते हुए संकोच सा रहता है........मगर क्या करें इसके अलावा विकल्प भी तो नहीं...............बहरहाल हिंदी ग़ज़ल पढ़ी.......उन्वान में हिंदी क्यों लिखा समझ में नहीं आया....अरे ग़ज़ल तो ग़ज़ल है, क्या हिंदी क्या उर्दू.....
क्या तेरा क्या मेरा पगले
चार दिनों का फेरा पगले
छोरी-छोरा छुट जाएंगे
उठ जाएगा डेरा पगले
लोक भाषा के शब्दों को लेकर प्रभावी रचना कर डाली आपने........बहुत खूब......!
वाह
ReplyDeleteआजकल आध्यामिकता का रंग फ़ागुन से चैत्र तक चढ़ा लगता है..नवरात्रि का प्रभाव?..एक बेहद खूबसूरत गज़ल..जिसका जादू उसकी सहजता मे छिपा है..सहेजने लायक
इस शेर का विरोधाभास बहुत कचोटता है...हम सब उसी की जद मे आते हैं कही न कहीं
पत्थर का दिल क्यों रखता है
तन माटी का ढेरा पगले
और इस शेर का यथार्थ..बहुत दूर तक जाता है..
सूरज सा चमका है जग में
जिसने तन मन पेरा पगले
आखिरी शे’र तो कबीर दास की परम्परा का लगता है..तमाम झगड़ों का इलाज!!!
कुल मिला कर बुकमार्क करने लायक इस अद्वितीय गज़ल के लिये बहुत शुक्रिया!!
नत-मस्तक हूँ!!
एक लाइन ठीक नहीं लगी ,एक गुरु ....सत्य एक है उसे चाहे भगवान कहो,अल्लाह कहो या कुछ और मगर गुरु एक से अधिक होते हैं ,आदमी को उसे पहचानने में कठिनाई होती है उसके अहंकार के कारण.
ReplyDeleteवैसे आजकल भक्ती-रस में डूबते जा रहे है क्या ?
वाह आपका ये नया अंदाज़ बहुत भाया ...
ReplyDeleteपत्थर का दिल क्यों रखता है
तन माटी का ढेरा पगले
माटी के तन में पत्थर का दिल ... क्या बात है ..
बिन दीपक ना मिट पाएगा
अंधियारे का घेरा पगले
मन का दीपक सदा जलता रहे तो अंधियारा हमेशा के लिए मिट जाता है ...
क्या तेरा क्या मेरा पगले
ReplyDeleteचार दिनों का फेरा पगले
छोरी-छोरा छुट जाएंगे
उठ जाएगा डेरा पगले ........... क्या बात है ..
नत-मस्तक .Truely deserves so many comments.
सुन्दर बात बहुत ही सुन्दर ढंग से इस रचना के माध्यम से आपने कह दी...वाह !!!
ReplyDeleteआपकी रचनाओं तथा यत्र तत्र टिप्पणियों में व्यक्त विचारों ने मुझे अतिशय प्रभावित किया है...परन्तु साथ ही आपके द्वारा प्रयुक्त "बेचैन आत्मा " अत्यंत उत्सुक करती है यह जान्ने के लिए की आपने यह नाम क्यों रखा...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletemere computer se google ka hindi-eng typing kii pad formating ke karan gayab ho gaya hai ...vyastata bhii bahut hai ..yahi karan hai ki main hindi me type nahi kar pa raha hoon...
ReplyDeletesabhi ko sneh banaye rakhne ke liye dhanyvad.
wah ji guru dev ,natmastak hone ko jee chah raha hain aapke samne ,so is hindi ki mahan gazal ke liye hamara pranam swikar kare
ReplyDeleteman andolit ho raha hain ththa aatma baichain ho rahi hain
jeene k sabke apne tarike hain
sabko jeevan se jyada ki aas ho rahi hain
brajdeep
बहुत ही मार्मिक एवं प्रभावशाली ग़ज़ल है।
ReplyDeleteआदरणीय प्रेम जी-
ReplyDeleteयहाँ एक गुरू से भी वही आशय है...
सत्य एक है उसे चाहे भगवान कहो,अल्लाह कहो या गुरू कहो
भक्त गुरू को ही भगवान मानते हैं और तो और भगवान को ही गुरू मानते हैं--
हम काशीवासी कहते हैं कि ...बाबा भोलेनाथ से बड़ा गुरू के हौ ?
बहुत सुन्दर और सरल शब्दों में खूबसूरत ग़ज़ल पेश की है आपने
ReplyDeleteयक़ीनन काबिल-ए-दाद
बहुत बढ़िया रचना , आनंद आ गया !शुभकामनायें !
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