कोई
मुझसा
मचलता है बार-बार
बच्चों की तरह
जिद करता है
हर उस बात के लिए
जो मुझे अच्छी नहीं लगती।
वह
सफेद दाढ़ी वाले मौलाना को भी
साधू समझता है !
जबकि मैं उसे समझाता हूँ ..
'हिन्दू' ही साधू होते हैं
वह तो 'मुसलमान' है !
वह
गंदे-रोते बच्चे को देख
गोदी में उठाकर चुप कराना चाहता है
जो सड़क के किनारे
भूखा, नंगा, भिखारी सा दिखता है !
मैं उसे डांटता हूँ
नहीं s s s
वह 'मलेच्छ' है।
वह
करांची में
आतंकवादियों के धमाके से मारे गए निर्दोष लोगों के लिए भी
उतना ही रोता है
जितना
कश्मीर के अपने लोगों के लिए !
मैं उसे समझाता हूँ
वह शत्रु देश है
वहाँ के लोगों को तो मरना ही चाहिए।
मेरा समझाना बेकार
मेरा डांटना बेअसर
वह उल्टे मुझ पर ही हंसता
मुझे ऐसी नज़रों से देखता है
जैसे मैं ही महामूर्ख हूँ !
अजीब है वह
हर उस रास्ते पर चलने के लिए कहता है
जो सीधी नहीं हैं
हर उस काम के लिए ज़िद करता है
जिससे मुझे हानि और दूसरों को लाभ हो !
मै आजतक नहीं समझ पाया
आखिर उसे
मुझसे क्या दुश्मनी है!
बहुत बढिया-उम्दा कविता के लिए आभार
खोली नम्बर 36......!
@ अजीब है वह
ReplyDeleteहर उस रास्ते पर चलने के लिए कहता है
जो सीधी नहीं हैं
हर उस काम के लिए ज़िद करता है
जिससे मुझे हानी और दूसरों को लाभ हो !
अज़ीबों के कारण ही यह संसार रहने योग्य है। आशा है कि वह अज़ीब ऐसे ही ज़िद करता रहेगा।
मलिच्छ - मलेच्छ
हानी - हानि
वाह!! बेहतरीन!
ReplyDeleteराहत ये कि वो मेरे ही भीतर से प्रकटता है और मेरे प्रेम को बिखेर देता है धरती पर ! दुआ ये कि इस दुश्मन को जीवित रहना चाहिये धरती पर जीवन की हर उम्मीद के अंतिम क्षण तक !
ReplyDeleteयह अच्छी बात है कि आप अपने दुश्मन को पहचानते हैं।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया और शानदार रचना लिखा है आपने! लाजवाब लगा!
ReplyDeleteवह
ReplyDeleteकरांची में
आतंकवादियों के धमाके से मारे गए निर्दोष लोगों के लिए भी
उतना ही रोता है
जितना
कश्मीर के अपने लोगों के लिए !
मैं उसे समझाता हूँ
वह शत्रु देश है
वहाँ के लोगों को तो मरना ही चाहिए।
Kya baat hai! "Qudrat ne to bakshi thi hame ekhi dharti,Hamne kahin Bharat kahin Iran banaya!"
bahut bhaavpurn...badhiya kavita...sachmuch dusman to hamaare bheetar hi hai.
ReplyDeleteवाज़िब जिद्द करता है वो। बहुत सुन्दर तरीके से आपने आदमी के मन की कशमक्श और आज के हालात मे कैसे वो बिना सोचे समझे इन्सानियत का गला घोंटना चाहता है ,दर्शाया है।
ReplyDeleteअजीब है वह
हर उस रास्ते पर चलने के लिए कहता है
जो सीधी नहीं हैं
हर उस काम के लिए ज़िद करता है
जिससे मुझे हानी और दूसरों को लाभ हो
लाजवाब अभिव्यक्ति। शुभकामनायें
आत्मा का मन से विद्रोह!!
ReplyDeleteसुंदर भाव प्रतिबिंबित हुए, बधाई!!
हर उस रास्ते पर चलने के लिए कहता है
जो सीधी नहीं हैं
हर उस काम के लिए ज़िद करता है
जिससे मुझे हानी और दूसरों को लाभ हो
आत्मा की सुनु या मन की? वाह
bahut achchi lagi.
ReplyDeleteआपके भीतर जो है उसे सलाम कहियेगा... :)
ReplyDeleteआपके अन्दर पलती बेचैन आत्मा जीवित है ...काश ऐसा दुश्मन सबके हृदय में बसे ...बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteमै आजतक नहीं समझ पाया
ReplyDeleteआखिर उसे
मुझसे क्या दुश्मनी है!
hame ye dushmani achchhi lagi......kaash aisee dushmani har vyakti me ho, aur dushman bhari pad jaye..:)
behtareen............:)
वाह...एक संवेदनशील मन के अंतर्द्वंद को बहुत सुंदरता के साथ शब्दों में बांधा है आपने.
ReplyDeleteअछ्छी रचना.यैसे दुश्मन से हार जाना चाहिए.
ReplyDeleteचलों सभी उस अन्दर वाले बच्चे की मान लें, इस बार!
ReplyDeleteएक संवेदनशील मन अछ्छी रचना काश ऐसा दुश्मन सबके हृदय में बसे
ReplyDeleteएक विचारोत्तेजक रचना।
ReplyDeleteयही समभाव कई लोग नहीं समझना चाहते हैं।
ReplyDeleteइंसानी कशमकश की बेहतरीन , लाजवाब , शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ... लाभ और हानि को वो क्या जाने जो सच मायने में साधु है ... जो बस साधु होता है हिंदू या मुसलमा नही होता .... बहुत अच्छा लिखा है ...
ReplyDeleteवह सचमुच साधु है । उसे बाहर आने दो ।
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति ।
हई देखिये देवेंद्र जी! ई जनाब को एतना दिन से हम खोज रहे थे अऊर ई आपके अंदर लुका कर बईठे हुए थे... सोचे थे कि अपने पास बुलाकर रखेंगे बाकी अब संतोस हो गया कि ऊ जहाँ भी हैं,हिफाज़त से हैं... खाली एगो रिक्वेस्ट है कि उनको दुस्मन मत बोलिए..हमरे जइसा समझिए उनको.. हम त एही कहकर समझा लेंगे अपनाए आप को कि
ReplyDeleteमेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही!
बेहतरीन और सार्थक रचना ...........
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
.........!
ReplyDeleteकल अली-सा ने मेरे नए ब्लॉग 'आनंद की यादें' में एक, एक क्या, एक मात्र कमेंट लिखा था..
...दूसरे ब्लॉग को भी थोड़ी-थोड़ी डोज़ देते रहें वर्ना ...!
आज मैने उनका आदेश मानकर सुबह यह कविता पोस्ट की और अभी ब्लॉग खोला तो इतने सारे कमेंट देख कर प्रफुल्लित होने के साथ-साथ अचंभित भी हूँ। जिन शुभ चिंतकों को मैं अपने नए ब्लॉग में विगत 10 दिन से ढूंढ रहा था वे अकस्मात यहाँ अवतरित हो गए! जब कि मैने लगातार एक के बाद एक 4 पोस्ट झोंक दिया ! आप में से कुछ वहाँ एकाध बार गए भी तो दुबारा नहीं आए..! आप वहाँ आएं इसी लोभ में इस ब्लॉग में बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं डाली थी। लेकिन अली-सा का आदेश टाल नहीं सका। कहानी न पढ़ने के पीछे दो ही कारण हो सकते हैं..एक तो यह कि लोग लम्बी कहानी पढ़ना पसंद नहीं करते या फिर दूसरा यह कि मेरा कहानी लेखन बेकार चल रहा है। मुझे सही स्थिति की जानकारी हो तो मैं भी दो में से एक काम कर सकता हूँ.. कहानी लिखनी जारी रख सकता हूँ या बंद कर सकता हूँ। वैसे मेरा मन कहता है..कोई पढ़े या ना पढ़े लिखते रहो!
आप सभी का सुझाव अपेक्षित है।
...इस प्यार और स्नेह के लिए सभी का आभारी हूँ।
मेरा समझाना बेकार
ReplyDeleteमेरा डांटना बेअसर
वह उल्टे मुझ पर ही हंसता
मुझे ऐसी नज़रों से देखता है
जैसे मैं ही महामूर्ख हूँ !
बहुत उचित कहा आप ने, बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
देवेन्द्र जी,
ReplyDeleteअगर इस रचना को...
आपकी सर्वश्रेष्ठ कृति कहा जाए...
तो अतिश्योक्ति नहीं होगी...
क्या कुछ नहीं कह गए आप...
इतना बड़ा संदेश देने के लिए बधाई.
प्यारा दुश्मन है वो, उसकी बात मान मेरे दोस्त, क्योंकि यही मेरा दिल भी कहता है।
ReplyDeleteअरे.......अरे.......
ReplyDeleteये आप क्या कह रहे हैं.????
अपने सबसे करीब और अज़ीज़ दोस्त को आप अपना दुश्मन समझ रहे हैं......!!!!!!
चलिए, अपने उस दोस्त को दुश्मन समझने के लिए सॉरी कहिये और झफ्फी पाइए यानी गले लगिए.
फिर, देखना आपको खुद अपनी भूल समझ में आ जायेंगी. फिर, आप उसे अपना सबसे अच्छा, प्यारा, और करीबी मित्र कहेंगे.
चलिय-चलिए, एक बार मेरे कहे अनुसार उस कथित दुश्मन को सॉरी कह कर गले लगाइए.
बहुत, बढ़िया.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
आपका दूसरा ब्लॉग बहुत अच्छा हैं.
ReplyDeleteलेकिन, गोपनीयता के कारण और सुरक्षा कारणों से मैं उस ब्लॉग पर कमेन्ट नहीं कर सकता हूँ.
जिसके लिए मैं आपसे माफ़ी चाहता हूँ.
(अगर आप कहें तो उस ब्लॉग पर कमेन्ट करने की बजाय मैं आपके इस ब्लॉग पर कमेन्ट कर दूंगा. आप उस ब्लॉग को ना छोडिये, लिखते रहिएगा.)
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
मै आजतक नहीं समझ पाया
ReplyDeleteआखिर उसे
मुझसे क्या दुश्मनी है!
kitana masoom sawal hai na
sundar abhvykti ke liye badhai
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteटूटे तारों ने तो किस्मतों को सवाँरा है
आप भी बहस का हिस्सा बनें और
ReplyDeleteकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeletedushmani na sahi, dushman to samajh liya,
ReplyDeleteek sunder rachna..
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteaakhiri line buri tarah se hairaan karti hain....
ReplyDeleteaakhir use mujh se kyaa dushmani hai.......
bahut badhiya..
ReplyDeletekripya meri bhi kavita padhi jaay..
http://pkrocksall.blogspot.com/
बहुत ही मार्मिक रचना..जैसे कि अंतरात्मा की आवाज!....
ReplyDelete...जन्माष्टमी के पावन अवसर पर बधाई और अनिको शुभ्काम्नाएं!... उपन्यास के लिए आप शैलेश जी से संपर्क करें!...धन्यवाद!
बहुत सुन्दर भाव.
ReplyDelete.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है ...
.
वो निदा फाजली साहब का एक कलाम है न :
ReplyDeleteदो और दो मिल कर हमेशा चार कहाँ होतें है,
इन सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला !
सुन्दर भावाव्यक्ति ...
प्रशंसनीय ।
ReplyDeleteक्या कहें इस दुश्मन को?
ReplyDelete………….
जिनके आने से बढ़ गई रौनक..
...एक बार फिरसे आभार व्यक्त करता हूँ।
पांडे जी
ReplyDeleteइशारों इशारों में बात बहुत दूर तक ले गए आप..... विचारोत्तेजक कविता लिखने और हम सब तक पहुँचाने का दिली शुक्रिया
ऐसे दुश्मन सब को नसीब हों, ताकि इंसानियत जिन्दा रहे।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने, आभार स्वीकारें।
अंकल जी आप का लेख बहुत अछा है सच मे अध्यापक एसे ही होने चाहिए।
ReplyDeletehe he he he
ReplyDeleteha ha ha ha
achha vyangya,
hansi bhi ayi aur soch raha hoon ki vastvikta ko kitne dhang se prastut kiya hai
badhai...