आज शिक्षक दिवस है। हमारे देश-प्रदेश में शिक्षा के प्रति सभी खूब जागरूक हैं। जहाँ शिक्षक पूरी निष्ठा एवं लगन से विद्यार्थियों को शिक्षित करने में लगे हैं वहीं विद्यार्थी भी तन-मन से अध्ययनरत हैं। शासकीय एवं प्रशासनिक स्तर पर भी शिक्षा के क्षेत्र में खूब ईमानदारी देखने को मिलती है। अधिकारी-कर्मचारी मनोयोग से रात-दिन मेहनत कर रहे हैं। परिणाम भी आप सभी के सामने है लेकिन अचानक से मेरे दिमाग में एक खयाल आया कि इन दो पायों से इतर, जरा जंगल में घूमा जाय और वहाँ कि शिक्षा-व्यवस्था पर ध्यान दिया जाय ! मैने कल्पना किया कि यदि जंगल राज हो तो वहाँ की शिक्षा व्यवस्था कैसी होगी। इन्हीं सब कल्पनाओं पर आधारित, प्रस्तुत है एक व्यंग्य रचना जिसका शिर्षक है....
जंगल राज में शिक्षा व्यवस्था
कीचड़ में फूल खिला
जंगल में स्कूल खुला
चिडि़यों ने किया प्रचार
आज का ताजा समाचार
हम दो पायों से क्या कम !
स्कूल चलें हम, स्कूल चलें हम।धीरे-धीरे सभी स्कूल जाने लगे
जानवरों में भी
दो पायों के अवगुन आने लगे !
हंसों ने माथा पटक लिया
जब लोमड़ी की सलाह पर
भेड़िए ने
प्रबंधक का पद झटक लिया !
जंगल के राजा शेर ने
एक दिन स्कूल का मुआयना किया
भेड़िए ने
अपनी बुद्धि-विवेक के अनुसार
राजा को
सभी का परिचय दिया.....
आप खरगोशों को ऊँची कूद
घोड़ों को लम्बी कूद
चीटियों को कदमताल कराते हैं
नींद अज़गरी
रूआब अफ़सरी
परीक्षा में बाजीगरी दिखाते हैं
आप हमारे
प्रधानाचार्य कहलाते हैं !
भेड़िया आगे बढ़ा...
आपका बड़ा मान है, सम्मान है
आपका विषय गणित और विज्ञान है
आप स्कूल से ज्यादा घर में व्यस्त रहते हैं
क्योंकि घर में आपकी
कोचिंग की दुकान है !
शेर अध्यापकों से मिलकर बड़ा प्रसन्न था
वहीं एक कौए को देखकर पूछा-
इनका यहाँ क्या काम ?
भेड़िए ने परिचय दिया....
आप हमारे संगीत अध्यापक हैं श्री मान !
इनकी बोली भले ही कर्कश हो
आधुनिक संगीत में बड़ी मांग है
इन्होने जिस सांग का सृजन किया है
उसका नाम 'पॉप सांग' है !
शेर ने कोने में खड़े एक अध्यापक को दिखाकर पूछा-
ये सबसे दुःखी अध्यापक कौन हैं ?
जबसे खड़े हैं तब से मौन हैं !
भेड़िए ने परिचय दिया....
ये हिन्दी के अध्यापक हैं
कोई इनकी कक्षा में नहीं जाता
हिन्दी क्यों जरूरी है
यह भेड़िए की समझ में नहीं आता !
शेर ने पूछा...
वे प्रथम पंक्ति में बैठे बगुले भगत यहाँ क्या करते हैं ?
मैने देखा, सभी इनसे डरते हैं !
भेड़िए ने कहा.....
इनसे तो हम भी डरते हैं !
ये बड़े कलाकारी हैं
आपके द्वारा नियुक्त
शिक्षा अधिकारी हैं !
शेर ने कहा-
अरे, नहीं S S S..
ये बड़े निरीह प्राणी होते हैं
इनसे डरने की जरूरत नहीं है
तुम्हारे सर पर हमारा हाथ है
तुमसे टकरा सकें
इतनी इनकी जुर्रत नहीं है।
परिचय के बाद
दावत का पूरा इंतजाम था
शेर को 'ताजे मेमने' का गोश्त व 'बकरियाँ' इतनी पसंद आईं
कि उसने भेड़िए को
गले से लगा लिया
बगुलों को ईमानदारी से काम करने की नसीहत दी
स्कूल में चार-चाँद लगाने का आश्वासन दिया
और पुनः आने का वादा कर चला गया।
जाते-जाते
रास्ते भर सोचता रहा...
तभी कहूँ
ये दो पाए
स्कूल खोलने पर
इतना जोर क्यों देते हैं !
शेर अध्यापकों से मिलकर बड़ा प्रसन्न था
वहीं एक कौए को देखकर पूछा-
इनका यहाँ क्या काम ?
भेड़िए ने परिचय दिया....
आप हमारे संगीत अध्यापक हैं श्री मान !
इनकी बोली भले ही कर्कश हो
आधुनिक संगीत में बड़ी मांग है
इन्होने जिस सांग का सृजन किया है
उसका नाम 'पॉप सांग' है !
शेर ने कोने में खड़े एक अध्यापक को दिखाकर पूछा-
ये सबसे दुःखी अध्यापक कौन हैं ?
जबसे खड़े हैं तब से मौन हैं !
भेड़िए ने परिचय दिया....
ये हिन्दी के अध्यापक हैं
कोई इनकी कक्षा में नहीं जाता
हिन्दी क्यों जरूरी है
यह भेड़िए की समझ में नहीं आता !
शेर ने पूछा...
वे प्रथम पंक्ति में बैठे बगुले भगत यहाँ क्या करते हैं ?
मैने देखा, सभी इनसे डरते हैं !
भेड़िए ने कहा.....
इनसे तो हम भी डरते हैं !
ये बड़े कलाकारी हैं
आपके द्वारा नियुक्त
शिक्षा अधिकारी हैं !
शेर ने कहा-
अरे, नहीं S S S..
ये बड़े निरीह प्राणी होते हैं
इनसे डरने की जरूरत नहीं है
तुम्हारे सर पर हमारा हाथ है
तुमसे टकरा सकें
इतनी इनकी जुर्रत नहीं है।
परिचय के बाद
दावत का पूरा इंतजाम था
शेर को 'ताजे मेमने' का गोश्त व 'बकरियाँ' इतनी पसंद आईं
कि उसने भेड़िए को
गले से लगा लिया
बगुलों को ईमानदारी से काम करने की नसीहत दी
स्कूल में चार-चाँद लगाने का आश्वासन दिया
और पुनः आने का वादा कर चला गया।
जाते-जाते
रास्ते भर सोचता रहा...
तभी कहूँ
ये दो पाए
स्कूल खोलने पर
इतना जोर क्यों देते हैं !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteनींद अज़गरी
ReplyDeleteरूआब अफ़सरी
इनकी बोली भले ही कर्कश हो
आधुनिक संगीत में बड़ी मांग है
इन्होने जिस सांग का सृजन किया है
उसका नाम 'पॉप सांग' है !
भाई की खोपड़ी कुछ अलग ही चलती दिखती है !
जंगल राज में मानव राज अच्छा व्यंग्य है। पर आपने दो पायों के जिन अवगुणों का जिक्र किया है वे तो गुण हैं। इसलिए लिखते कि जानवरों में भी दो पायों के गुण आने लगे, तो अच्छा होता है। बहरहाल बाजिगरी=बाज़ीगरी और नीचे से तीसरी पंक्ति में -ये दे पाए- की जगह -ये दो पाए-कर लें।
ReplyDeleteवाह बहुत अच्छा व्यंग है
ReplyDeleteचिडि़यों ने किया प्रचार
आज का ताजा समाचार
हा हा हा बहुत खूब।
बेहतरीन ।
ReplyDeleteहास्य व्यंग के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में वर्तमान परिवेश का सही चित्रण।
चिडि़यों ने किया प्रचार
ReplyDeleteआज का ताजा समाचार
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सटीक व्यंग!
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी
बेहतरीन व्यंग ,
ReplyDeleteपाठक पूरी कविता एक सांस में पढ़ने के लोभ का संवरण नहीं कर पाता
जिन जिन के परिचय दिये गए हैं बिल्कुल सटीक हैं ,आप की कविताओं का ये विशेष गुण है कि वो पाठक को कविता के अलावा कुछ सोचने का मौक़ा ही नहीं देतीं
बहुत बहुत बधाई हो इस सफल कविता के लिये
बहुत अच्छा व्यंग्य
ReplyDeleteये हिन्दी के अध्यापक हैं
कोई इनकी कक्षा में नहीं जाता
हिन्दी क्यों जरूरी है
यह भेड़िए की समझ में नहीं आता !
एक दम सच लिखा...
आभार इस सफल कविता के लिए.
ज़बरदस्त !
ReplyDeleteशब्दों की कारीगरी का कमाल..........
बधाई !
बहुत बढ़िया व्यंग .....
ReplyDeleteकौवा ...संगीत अध्यापक
.इन्होने जिस सांग का सृजन किया है
उसका नाम 'पॉप सांग' है !
:):)
वाह वाह,कमालका ब्यंग है.
ReplyDeletebahut achchha likha ...badhai
ReplyDeleteबहुत ही सटीक अभिव्यक्ति दी है आपने, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
happy teacher's day.
ReplyDeletethanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
जाते-जाते
ReplyDeleteरास्ते भर सोचता रहा...
तभी कहूँ
ये दो पाए
स्कूल खोलने पर
इतना जोर क्यों देते हैं ...
सामयिक रचना ... सटीक लिख है ... इन अंतिम लाइनों में पूरा सार लिख दिया ....
बहुत लाजवाब ...
वाह बेमिसाल, लाजवाब क्या जादूगरी है शब्दों की और हर शिक्षक की सही पहचान और उसकी मानसिकता का अच्छा विश्लेषण किया है
ReplyDeleteबहुत अच्छा व्यंग्य
जंगल कितना शीघ्र सीख पा रहा है मानवता। बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteनाइस!
ReplyDelete--
भारत के पूर्व राष्ट्रपति
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
देवेंद्र जी...समाज अऊर चिड़ियाख़ाना का एतना सुंदर कोलॉज बनाए हैं आप कि समझ नहीं आ रहा है कि कऊन का है... अब समझ में आया कि हमरा सिछा का असर कहे उल्टा पड़ रहा है!!
ReplyDeleteग़ज़ब का परिचय करवाया साहब..
ReplyDeleteजानवरों के बहाने दोपायों का...
बेहतरीन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबिलकुल नए अंदाज़ और सोच में.... कविता बहुत अच्छी लगी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
shiksha vyavastha ko pol kholti bahut khubsurat rachna...aabhaar.
ReplyDeleteअंकल जी आप का लेख बहुत अछा है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग .....
ReplyDeleteआपका विषय गणित और विज्ञान है
आप स्कूल से ज्यादा घर में व्यस्त रहते हैं
क्योंकि घर में आपकी
कोचिंग की दुकान है.........
लाजवाब ....बेमिसाल !!!!
शिक्षा व्यवस्था पर क़रारा व्यंग..... नीति नियंताओं को यह उलाहना देना शायद अब ज़ुरूरी भी हो गया है....शिक्षा ही वो साधन है जिसके माध्यम, से प्रगति के सोपान पर चढ़ा जा सकता है.....! अच्छी सटीक कविता के लिए आभार....!
ReplyDeleteफिर से पढ़ा. ऐसा लगा जंगल की बजाय हमारे शहर की कहानी लिखी जा रही हो...
ReplyDeleteनींद अज़गरी
रूआब अफ़सरी
परीक्षा में बाजीगरी दिखाते हैं
आप हमारे
प्रधानाचार्य कहलाते हैं !
गज़ब!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/270.html
ReplyDeleteyahan bhi dekhen apni post .
bahut sunder likhen hain aap.
ReplyDeleteढोंग पर तगड़ा प्रहार !
ReplyDeleteसटीक व्यंग
ReplyDeleteबधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
Jangal shiksha vyavasth ke madhyam se desh ke shiksha pravandhan sahit sarkari tantra par bahut hi sundar vyangy bhari kavita. Sadhuvad.
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब बेहद उम्दा..🙏🙏
ReplyDelete