एक दिन, एक गरीब / अनपढ़ रिक्शे वाले से बातचीत के दौरान मुझे अनुभव हुआ कि यह शख्स, १५ अगस्त का शाब्दिक अर्थ आजादी ही समझता है न यह कि इस दिन देश आजाद हुआ था. वह कहता है कि आगे १५ अगस्त कs लड़ाई हौ.. तो वह यह कहना चाहता है कि आजादी के लिए संघर्ष तो आगे है. आजादी का अर्थ उसके लिए वह दिन है जब उसे भूखा न सोना पड़े, जब उसके बच्चों को शिक्षा आसानी से उपलब्ध हो, फीस-ड्रेस के लिए तड़फना न पड़े, पांच साल पहले बरसात में गिरी एक कमरे के घर वाली छत फिर से बन जाय, अपनी पत्नी को अस्पताल ले जाय तो उसका इलाज उसके द्वारा कमाए जा सकने वाले पैसे में ही हो जाय, उसे कभी कुत्ता काट ले तो इंजेक्शन के लिए मालिक से लिए गए ऊधार को चुकाने के एवज में, महीनों बेगार रिक्शा न चलाना पड़े, आजादी का मतलब तो वह यह समझता है कि जिस रिक्शे को वह दिनभर चलाता है उसे देर शाम मालिक को किराए के पैसे के साथ न लौटाना पड़े. प्रस्तुत है इसी सोच में डूबी एक कविता जिसे मैने काशिका बोली में लिखी है. काशिका बोली यानी काशी में बोली जाने वाली बोली. सभी को स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर ढेर सारी बधाई तथा इस ब्लॉग से स्नेह बनाए रखने के लिए आभार.
आगे पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ.... !
अबहिन तs
स्कूल में
लइकन कs
नाम लिखाई हौ
फीस हौ
ड्रेस हौ
कापी-किताब हौ
पढ़ाई हौ
आगे.......
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ।
तोहरे घरे
सावन कs हरियाली होई बाबू
हमरे घरे
महंगाई कs आंधी हौ
ई देश में
सब कानून गरीबन बदे हौ
धनिक जौन करैं उहै कानून हौ
ईमानदार
भुक्कल मरें
चोट्टन कs चांदी हौ
कहत हउआ
सगरो सावन कs हरियाली हौ ?
रिक्शा खींचत के प्रान निकसत हौ बाबूssss
देखा....
कितनी खड़ी चढ़ाई हौ !
एक्को रूपैय्या कम न लेबै भैया
आगे...
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ !
आगे पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ.... !
स्कूल में
लइकन कs
नाम लिखाई हौ
फीस हौ
ड्रेस हौ
कापी-किताब हौ
पढ़ाई हौ
आगे.......
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ।
तोहरे घरे
सावन कs हरियाली होई बाबू
हमरे घरे
महंगाई कs आंधी हौ
ई देश में
सब कानून गरीबन बदे हौ
धनिक जौन करैं उहै कानून हौ
ईमानदार
भुक्कल मरें
चोट्टन कs चांदी हौ
कहत हउआ
सगरो सावन कs हरियाली हौ ?
रिक्शा खींचत के प्रान निकसत हौ बाबूssss
देखा....
कितनी खड़ी चढ़ाई हौ !
एक्को रूपैय्या कम न लेबै भैया
आगे...
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ !
कमाल का सोचते हो देवेन्द्र आप ! आज तो भोजपुरी में कमाल ही कर दिया शायद इससे कुछ लोगों को समझ आये ! ईश्वर आपकी कलम को ऐसा ही संवेदनशील रखे ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteकाहे गदौलिया-मैदागिन करा रहे हैं देवेन्द्र जी...जीने दीजिये न...:(
ReplyDeleteबहुत दिनों से घर नहीं गया...और आप सावन में बनारसीपन खींच निकाल रहे हैं आत्मा से...
और कविता तो बस विषाद का लौंगलता है...पगा हुआ बनारसीपन की चाशनी में....शाम, रात और कल का दिन..उसके आगे का भी...
सब घुमाने का ...चौराहों की फुर्सत वापिस बुलाने का...मुझे रिक्शे पर बनारस घुमाने का...शुक्रिया नहीं कहूँगा.
बहुत छोटा शब्द है...आज तो... हर हर गंगे!
मैं तो अब खुद को मोर्चा हारकर लौटे हुए सिपाही की मनोदशा में पाता हूं। क्या पन्द्रह अगस्त, क्या सोलह अगस्त। बकौल गालिब,
ReplyDeleteआगे आती थी हाले दिल पर हंसी, अब किसी बात पर नहीं आती....
बहुत सटीक लिखा, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
happy independence day.
ReplyDeletethanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत अच्छी प्रस्तुति है देवेन्द्र जी ...मन अभि तक भाव में अटका हुआ है ...काश रिक्शा चालक के मन के मुताबिक़ आज़ादी मिली होती ...
ReplyDeleteसही लिखा है । १५ अगस्त ( आज़ादी ) तो अभी आना शेष है ।
ReplyDeleteजानदार प्रस्तुति है। 15 अगस्त और 26 जनवरी हमारे लोकतन्त्र के मूल्यों के प्रतीक बन चुके हैं।
ReplyDeleteसच मै इसे ही आजादी कहते है जो उस रिकक्षा वाले ने बताई,मै सहमत हुं उस से, ओर आप से, सुंदर कविता के लिये आप का धन्यवाद
ReplyDeleteहर नेक दिल शहरी की फीलिंग्स यही हैं देवेन्द्र भाई , पर आपकी काशिका आज तो महफ़िल लूट ले गई :)
ReplyDeleteपूरी कविता यथार्थ के ठोस धरातल पर आधारित है और अंतरात्मा को स्पर्श करती है
ReplyDeleteभाषा का आनंद आया सो अलग
अबहिन तs
स्कूल में
लइकन कs
नाम लिखाई हौ
फीस हौ
ड्रेस हौ
कापी-किताब हौ
पढ़ाई हौ
आगे.......
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ।
जनता कितनी मासूम है और तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग उन्हें छलने में कोई कसर नहीं छोड़ते ,मुझे अपना एक शेर याद आता है
जो नन्हे हाथ क़लम की जगह उठाएं ख़िश्त(ईंट)
उन्हें भी ज़ेवर ए तालीम से सजाना है
आप को भी स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभ कामनाएं
जय हिंद
मार्मिक ! अली जी की बात से सहमत. मैं भी रिक्शे वालों को या ठेला-गुमटी वाले दुकानदारों को देखती हूँ, तो यही सोचती हूँ कि जाने कब इनकी आज़ादी का दिन आएगा.
ReplyDelete१५ अगस्त की लड़ै हो... बहुत सही।
ReplyDeleteकैंसर के रोगियों के लिये गुयाबानो फ़ल किसी चमत्कार से कम नहीं (CANCER KILLER DISCOVERED Guyabano, The Soupsop Fruit)
जबर्दस्त..सही कहा अली साहब ने..आपकी काशिका सच्च महफिल लूट ले गयी..कविता का कथ्य बरछी सी मार करता है..तो भाषा की मधुरता मल्हम लगाती है..रिक्शे वाले की हकीकतबयानी ने आजादी के छै दशकों की सारी प्रगति की कलई खोल कर रखदी है..बस इतनी दूर ही आ पाये हैं हम अब तक..अब तो गद्देदार सरकारी कुर्सियों पे बैठे महापुरुष भी गाँधी जी का मंतर भूल गये होंगे..कोई फैसला लेते वक्त..चीजें बदलती नही ऐसे..किसी रिक्शे वाले का दो वक्त की रोटी और परिवार पालने का संघर्ष ही आजादी की लड़ाई से कम नही रह गया है..
ReplyDeleteईमानदार
भुक्कल मरें
चोट्टन कs चांदी हौ
मौका मिलने पर कोई भी चोट्टा बन जाता है..मगर यह बात गाँठ बाँध कर रखने लायक है..हमारे लिये भी..
आगे...
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ !
बेहद अलग अंदाज में आज़ादी का ये रंग और आप का उसे लिखने तरीका अच्छा लगा
ReplyDeleteकविता की सम्वेदाना में, कितनी कठोर बात कह दी आपने...
ReplyDeleteदिल को छू गयी.
इंडिया का एक चौथाई भी अगर भारत को मिले
तो
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई न हौ
मेरे विचार से १५ अगस्त के दिन को देश स्वतंत्र हुआ था और इसका महत्व बहुत है.इसका मतलब यह नहीं की सब लोगों की आर्थिक परिस्थिति अच्छी हो जायेगी.
ReplyDeleteदेश स्वतंत्र होनेके बाद लोगों का यह दायित्व है की उसे समृध्ध बनाएँ,जिसे लोगों ने पूरा नहीं करने की जैसे कसम ही खा ली है.
bilkul sahi likha hai..
ReplyDeleteMeri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....
A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...
Banned Area News : My morning drive is great independence for me: Big B
तोहरे घरे
ReplyDeleteसावन कs हरियाली होई बाबू
हमरे घरे
महंगाई कs आंधी हौ
गरीबन के त महंगाई क लड़ाई लड़े के होई.
बाकी सब ठीक हौ .. रोटी मिली त आजादी हौ
देश के कटु सत्य को उजागर करती एक सटीक रचना.
ReplyDeleteइस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।
ReplyDeleteदेवेन्द्रजी
ReplyDeleteअभी ठीक १२ बजे मैंने आपकी पोस्ट पढ़ी है और दूर फटाको की आवाज ने अहसास दिलाया की आजादी ने दस्तक दे दी है |
मुझे तीन बार पढना पड़ा क्योकि जरा धीरे से समझ आई आपकी भाषा ||
हम सब रिक्शे वाले का दर्द समझ पाए और उससे मोल भाव करने की बजाय कलमाड़ी से जवाब मांग पाए |
और तभी आजादी का जश्न मना पाए ?
देवेंदर जी... जौन बेचारा का जीबन मनिकर्निका हो ऊ बेचारा को दशश्वमेध कहाँ लौकेगा, अऊर जिसका चारो ओर लंका हो उसको कबीर चौरा का बुझाएगा... बेचारा जिनगी का चक्रव्युह में ओझराया हुआ आदमी है तs ऊ अपना छटपटाहट के बीच आजादी कहाँ मनाएगा... बहुत सम्बेदनसील मन से लिखा हुआ कबिता है!!
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी...बहुत खूब..बनारसी होने के नाते इस अंदाज से भलीभाँति परिचित हूँ फिर भी आपने काव्यात्मक लय देकर बेहतरीन बना दिया...आज़ादी की लड़ाई तो बदस्तूर जारी है.....सुंदर पोस्ट..बधाई...स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई..प्रणाम
ReplyDeleteवाह...कमाल का सृजन किया है देवेन्द्र जी...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं.
कविता के भाव से जुड़ने के लिए के लिए सभी का आभार. इन टिप्पणियों ने मन मोह लिया......
ReplyDelete..कविता तो बस विषाद का लौंगलता है...पगा हुआ बनारसीपन की चाशनी में...
...कविता का कथ्य बरछी सी मार करता है..तो भाषा की मधुरता मल्हम लगाती है..
..इंडिया का एक चौथाई भी अगर भारत को मिले तो पंद्रह अगस्त कs लड़ाई न हौ..
..रिक्शे वाले का दर्द समझ पाए और उससे मोल भाव करने की बजाय कलमाड़ी से जवाब मांग पाए..
.... जौन बेचारा का जीबन मनिकर्निका हो ऊ बेचारा को दशश्वमेध कहाँ लौकेगा, अऊर जिसका चारो ओर लंका हो उसको कबीर चौरा का बुझाएगा...
इस टिप्पणी को बहुत बार पढ़ा लेकिन कुछ कहते नहीं बना....
ReplyDelete..मैं तो अब खुद को मोर्चा हारकर लौटे हुए सिपाही की मनोदशा में पाता हूं। क्या पन्द्रह अगस्त, क्या सोलह अगस्त। बकौल गालिब,
आगे आती थी हाले दिल पर हंसी, अब किसी बात पर नहीं आती....
...मुझे लगा, हम ही कौन सा लड़ पा रहे हैं!
bahut hi sateek abhivyakti...
ReplyDeletebhagwaan kare apki aatma yu hi bechain rahe, sath me bhatakti bhi rahe aur ham apki rachnaon ka yunhi lutfa uthaate rahen....!!!
swadheenta diwas ki haardik shubhkaamnayen!!!
sach hi kaha aapne un jaise logon ke liye to aajadi ka matlab sahi mayane me yahi hai.aur mere vichar se us rikshe waale ne shat pratishat apne man ki baat ko bilkul hi saralta ke saath sahi hi prastut kiya hai.
ReplyDeleteaapko bhi aajadi ke is parv ki hardik -shubh kamnaaye.
poonam
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,--;_/*******HAPPY INDEPENDENCE*_/*****.|*,/
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ! बढिया.
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी, बहुत अच्छी प्रस्तुति है
ReplyDeleteकविता दिल को छू गयी...
आप को भी स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभ कामनाएं!!!!
तोहरे घरे
ReplyDeleteसावन कs हरियाली होई बाबू
हमरे घरे
महंगाई कs आंधी हौ
ई देश में
सब कानून गरीबन बदे हौ
धनिक जौन करैं उहै कानून हौ..
सच है देवेन्द्र जी ... ग़रीब के लिए कैसी आज़ादी .... किस से आज़ादी ... बहुत सच रचना है ....
स्कूल में
ReplyDeleteलइकन कs
नाम .....
पांडे जी..
कविता पढ़ी...रिक्शे वाले की तकलीफ को एकदम सही उकेरा है आपने...
(लइकन).....शब्द का अर्थ समझने में दिक्कत आ रही है...
कहत हउआ
ReplyDeleteसगरो सावन कs हरियाली हौ ?
रिक्शा खींचत के प्रान निकसत हौ बाबूssss
देखा....
कितनी खड़ी चढ़ाई हौ !
एक्को रूपैय्या कम न लेबै भैया
आगे...
पंद्रह अगस्त कs लड़ाई हौ !
क्या खूब लिखन बाटे.....देवेन्द्र बाबु .....
इ बबली मईया देसवा के फोटो में खूब मेहनत किये हौं .... !!
मनु जी,
ReplyDeleteलइकन कs.. मतलब लड़कों का...
एक स्थान पर और प्रयोग किया है मैने..
उठा के गोदी बहुत प्यार से लइकन से जब पूछबs...
केकर 'लइका' हौआ बोला
पापा कs कि अम्मा कs
तोहार नाम केहू ना लेई
बोलिहें खाली अम्मा कs
भांग में बहुत मजा हौ..!
हरकीरत जी,
बबली मैया नाहीं..बबली बहीन.
काहे हमरी बहीनियाँ के मइया कहत बाटू..?
कहत हउआ
ReplyDeleteसगरो सावन कs हरियाली हौ ?
रिक्शा खींचत के प्रान निकसत हौ बाबूssss
देखा....
कितनी खड़ी चढ़ाई हौ !
क्या बात है देवेन्द्र जी.
आजादी का अर्थ उसके लिए वह दिन है जब उसे भूखा न सोना पड़े, जब उसके बच्चों को शिक्षा आसानी से उपलब्ध हो, फीस-ड्रेस के लिए तड़फना न पड़े...
ReplyDeleteAzadi ke marm ko prastut karne ke liye aap badhai ke patr hain.
चच्चा पा लगी
ReplyDeleteअब हम त बालक हई बड़का भईया और प्रबुद्ध चाचा लोगन के आगे
लेकिन आप क ब्लॉग अमिट छाप छोड गयल हौ दिलो-दिमाग पे ....अस्सी क हास्य कवि सम्मेलन याद आ गयल ......
दू चार लाईन हमहू लिखे क कोशिस कईले हई आपकर आशीर्वाद मिली त बहुत खुशी होई...हर हर महादेव ....
http://tarunktiwari.blogspot.com/
www.jaibhojpuri.com
Marvelous marvelous marvelous ....
ReplyDeleteLoved the comments too ......
vishad ka launglata was just great...